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Written By DW
Last Updated : बुधवार, 31 जनवरी 2024 (09:32 IST)

आसान नहीं है भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने की कवायद

आसान नहीं है भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने की कवायद - exercise of fencing the India-Myanmar border is not easy
-प्रभाकर मणि तिवारी
 
fencing the India-Myanmar border: भारत की केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर से लगी म्यांमार की सीमा पर भी बांग्लादेश की तर्ज पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने का फैसला किया है। तमाम विरोधों को दरकिनार करते हुए केंद्र सरकार ने मणिपुर से लगी मोरे सीमा पर दस किलोमीटर लंबी बाड़ लगाने का काम 'सीमा सड़क संगठन' (बीआरओ) को सौंप दिया है।
 
पूर्वोत्तर इलाके में स्थित राज्यों के कुछ मुख्यमंत्रियों और आदिवासी संगठनों के भारी विरोध के कारण केंद्र की यह कवायद आसान नहीं नजर आ रही है। इसके साथ ही इलाके की जटिल भौगोलिक स्थिति भी इस काम में सबसे बड़ी बाधा के तौर पर उभर सकती है।
 
'मुक्त आवाजाही समझौते' यानी फ्री मूवमेंट रेजीम (एफएमआर) के तहत अब तक भारत और म्यांमार के नागरिक बिना पासपोर्ट और वीजा के महज एक परमिट के सहारे एक-दूसरे की सीमा में आ-जा सकते हैं। इसके कारण दोनों तरफ के नागरिकों को दूसरे देश की सीमा में 16 किलोमीटर दूर तक जाकर वहां अधिकतम दो सप्ताह रहने की अनुमति रही है।
 
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने हाल में असम में कहा था कि केंद्र सरकार ने अब तक खुली भारत-मिजोरम सीमा पर भी बांग्लादेश की तर्ज पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने का फैसला किया है। इसके साथ ही म्यांमार के साथ दशकों पुराने मुक्त आवाजाही समझौते को भी खत्म कर दिया जाएगा।
 
पूर्वोत्तर के 4 राज्यों- अरुणाचल प्रदेश (520 किमी), नगालैंड (215 किमी), मणिपुर (398 किमी) और मिजोरम (510 किमी)- की कुल 1,643 किमी लंबी सीमा म्यांमार से लगी है। इसमें से 1,472 किमी लंबी सीमा की शिनाख्त का काम पूरा हो गया है। मोरे में बाड़ लगाने का काम भी शुरू हो गया है।
 
केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि म्यांमार से लगी पूरी सीमा पर अत्याधुनिक स्मार्ट बाड़बंदी की प्रक्रिया शीघ्र शुरू होगी। इसमें 4 से 5 साल का समय लगने की संभावना है। बाड़ लगाने का काम पूरा होने के बाद सीमा पार से आने वाले लोगों के लिए भारत का वीजा लेना अनिवार्य होगा।
 
फैसले की वजह
 
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि सरकार के इस फैसले की दो तात्कालिक वजहें हैं। पहली यह कि म्यांमार में सैन्य तख्तापलट के बाद सीमावर्ती इलाकों में म्यांमार की सेना और विद्रोही गुटों में हिंसक झड़पें बढ़ी हैं और इसका असर भारतीय इलाकों में भी पड़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, म्यांमार में जारी हिंसा के कारण कम से कम 20 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं। इसकी वजह से करीब 40 हजार लोगों और पुलिस व सैन्य अधिकारियों ने भाग कर पड़ोसी मिजोरम और मणिपुर में शरण ली है।
 
दूसरी वजह यह है कि बीते साल मई में मणिपुर में शुरू हुई हिंसा के पीछे भी म्यांमार से आने वाले उग्रवादियों और सशस्त्र गुटों को जिम्मेदार ठहराया गया है। दरअसल, पूर्वोत्तर के 4 राज्यों की म्यांमार से लगी सीमा के दोनों ओर रहने वाले लोग एक ही जाति और संस्कृति के हैं। इसलिए सीमा पार से आने वाले लोग आसानी से स्थानीय आबादी में घुलमिल जाते हैं। मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह शुरू से ही इन लोगों को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं।
 
मुक्त आवाजाही समझौता
 
बर्मा (अब म्यांमार) के भारत से अलग होने के बाद सीमा के विभाजन में गड़बड़ियों के कारण कई जनजातियां दो देशों की सीमा में बंट गईं। इनमें कई गांव तो ऐसे थे जो आधे भारत में थे और आधे बर्मा में। देश की आजादी के बाद केंद्र सरकार को महसूस हुआ कि अलग-अलग देश में रहने के कारण एक ही जनजाति के लोगों के जीवन और रहन-सहन में कई तरह की दिक्कतें आ रही हैं। इसे ध्यान में रखते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 26 सितंबर, 1950 को एक गजट अधिसूचना के जरिए पासपोर्ट नियमों में संशोधन करते हुए दोनों देशों के नागरिकों को बिना पासपोर्ट और वीजा के एक-दूसरे के देश में 40 किमी भीतर तक आने की छूट दे दी।
 
इसके बाद अगस्त, 1968 में इसमें संशोधन करते हुए परमिट प्रणाली लागू की गई यानी दूसरे देश में जाने वालों को परमिट लेना पड़ता था। आवाजाही के लिए अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और मिजोरम में तीन अधिकृत गेट बनाए गए। यह व्यवस्था कोई 4 दशक तक चली। लेकिन 80 और 90 के दशक में पूर्वोत्तर राज्यों में उग्रवाद तेज होने के कारण आवाजाही की सीमा 25 किमी से घटाकर 16 किमी कर दी गई, लेकिन इस मुद्दे पर कोई अधिकृत समझौता नहीं होने के कारण सरकार ने एक सहमति पत्र तैयार किया और 11 मई, 2018 को दोनों देशों में इस पर हस्ताक्षर कर इसे औपचारिक जामा पहनाया।
 
मणिपुर सरकार ने कोविड शुरू होने के बाद वर्ष 2020 से ही एफएमआर को स्थगित कर दिया है। मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने बीते साल 23 सितंबर को ही केंद्र सरकार से एफएमआर को खारिज कर अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बाड़ लगाने का काम पूरा करने का अनुरोध किया था।
 
फैसले का विरोध
 
केंद्र के इस फैसले का इलाके में काफी विरोध हो रहा है। मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदूहोमा ने हाल में कहा था कि म्यांमार सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने का फैसला स्वीकार्य नहीं होगा। उन्होंने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश सचिव एस जयशंकर से मुलाकात कर उनको भी अपने विचारों से अवगत कराया है।
 
वे 'जो या चिन' समुदाय के एकीकरण की वकालत करते रहे हैं। लालदूहोमा की दलील है कि ब्रिटिश शासकों ने भारतीय इलाके से बर्मा को काट कर अलग कर दिया था। इससे इलाके में रहने वाले मिजो समुदाय के लोग भी दो देशों की सीमा में बंट गए थे।
 
नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो कहते हैं, 'इस फैसले से पहले स्थानीय लोगों से सलाह-मशविरा जरूरी है, नगालैंड की सीमा भी म्यांमार से सटी है और सीमा के दोनों ओर नगा जनजाति के लोग रहते हैं। मेरा घर सीमा के एक ओर है और खेत दूसरी ओर, ऐसे में बातचीत के जरिए एक स्वीकार्य फार्मूला बनाना होगा।'
 
मणिपुर के हिंसाग्रस्त चूड़ाचांदपुर जिले के सबसे प्रमुख आदिवासी संगठन इंडीजीनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने भी म्यांमार सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने और मुक्त आवाजाही समझौता रद्द करने के फैसले का विरोध किया है। उसने कहा है कि संगठन इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा।
 
राज्य का एक कुकी संगठन 'द कुकी इन्पी मणिपुर' भी इस फैसले का विरोध कर रहा है। उसने कहा है कि सरकार का यह फैसला चिंताजनक और इससे इलाके की जटिल समस्याएं हल नहीं होंगी। संगठन ने केंद्र से इस फैसले पर पुनर्विचार की भी अपील की है।
 
राजनीतिक विश्लेषक एल. देवेंद्र सिंह कहते हैं, 'पूर्वोत्तर के 4 राज्यों से म्यांमार की जो सीमा लगी है उसके दोनों ओर एक ही जनजाति के लोग रहते हैं और उनमें बेटी-रोटी का रिश्ता है। ऐसे में बाड़बंदी जैसा फैसला उन पर जबरन थोपने की प्रतिक्रिया उग्र हो सकती है। केंद्र को इस मामले में सभी पक्षों के साथ बातचीत के जरिए सहमति बना कर ही आगे बढ़ना चाहिए।'(फोटो सौजन्य : प्रभाकर मणि तिवारी, डॉयचे वैले)
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