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Written By DW
Last Updated : मंगलवार, 11 अप्रैल 2023 (19:11 IST)

मैक्रों की टिप्पणी से असहज यूरोप, जर्मनी के विदेशी नीति विशेषज्ञ ने की आलोचना

मैक्रों की टिप्पणी से असहज यूरोप, जर्मनी के विदेशी नीति विशेषज्ञ ने की आलोचना - Europe uncomfortable with Emmanuel Macron's comment
-ओएसजे/एनआर (डीपीए, रॉयटर्स, एएफपी)
 
जर्मनी के विदेशी नीति विशेषज्ञ ने ताइवान विवाद पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की टिप्पणी की आलोचना की है। मैक्रों का कहना है कि यूरोप को ताइवान विवाद में नहीं कूदना चाहिए। जर्मन नेता नॉबर्ट रोएटगन के मुताबिक चीन और ताइवान के मुद्दे से यूरोप को दूर रहने की सलाह देकर मैक्रों खुद को अलग-थलग कर रहे हैं।
 
जर्मनी की विपक्षी पार्टी सीडीयू के नेता रोएटगन ने मंगलवार को डॉएचलांडफुंक रेडियो से बातचीत में कहा कि मैक्रों खुद को यूरोप में भी अलग-थलग कर रहे हैं। वे यूरोपीय संघ को कमजोर कर रहे हैं और वे बीजिंग में यूरोपीय आयोग की तरफ से कही गई बात का भी एक तरह से उल्टा कह रहे हैं।
 
यूरोपीय आयोग से उनका मतलब यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फोन डेय लायन से है। यूरोपीय आयोग की प्रमुख फोन डेय लायन और फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रों अप्रैल की शुरुआत में 3 दिन की बीजिंग यात्रा पर थे। बीजिंग से लौटने पर एक फ्रांसीसी अखबार से बातचीत करते हुए मैक्रों ने कहा कि ताइवान के मुद्दे पर यूरोपीय संघ को किसी ब्लॉक का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। उनका इशारा अमेरिका और चीन ब्लॉक से था।
 
ताइवान की खाड़ी में इस वक्त तनाव चरम पर है। ताइवानी राष्ट्रपति की अमेरिका यात्रा से बीजिंग इतना नाराज हुआ है कि उसने सैन्य अभ्यास कर 3 दिन तक ताइवान की घेराबंदी कर दी।
 
यूरोप के अलग सुर
 
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से अमेरिका, यूरोप का सबसे बड़ा रणनीतिक साझेदार है। शीतयुद्ध के दौरान भी यूरोप की सुरक्षा की गारंटी एक तरह से अमेरिका के जिम्मे थी, हालांकि चीन के मुद्दे पर यूरोप में उभरते अलग सुर वॉशिंगटन को कुछ हद तक निराश कर रहे हैं।
 
ताजा उदाहरण फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों की टिप्पणी का है। बीते 2 दशकों में चीन, यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्थाओं के लिए इंजन साबित हुआ है। ऐसे में यूरोपीय देश कारोबार और सैन्य टकराव में बदलते विकल्पों से परेशान हो रहे हैं। मार्च में हिन्द-प्रशांत क्षेत्र के लिए नियुक्त यूरोपीय संघ के विशेष दूत रिचर्ड टिबेल्स ने कहा कि ईयू, इलाके में अपने साझेदारों के साथ संयुक्त सुरक्षा अभियान बढ़ाएगा। साथ ही वह सूचनाएं भी साझा करेगा।
 
इस मुद्दे पर यूरोपीय संघ और यूरोप की सरकारें ज्यादा कुछ नहीं बोल रही हैं। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया बार-बार यह चिंता जता चुके हैं कि चीन अपने एशियाई दोस्तों की मदद से गोपनीय सैन्य अड्डे के लिए करार कर सकता है। कंबोडिया इसका उदाहरण है। अमेरिका का दावा है कि कंबोडिया का रीम नेवल बेस, हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन का पहला विदेशी सैन्य अड्डा बन चुका है।
 
फिलीपींस और अमेरिका का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास
 
एशिया में चीनी सेना के बढ़ते प्रभाव के बीच समंदरों में आवाजाही के अधिकार का मुद्दा केंद्र में है। ताइवान के साथ साथ विवाद की जड़ में दक्षिण चीन सागर भी है। सेना की ताकत के जरिए चीन ने दक्षिण चीन सागर के कई द्वीपों को अपने नियंत्रण में ले लिया है। वियतनाम और फिलीपींस चीनी सेना के इस विस्तारवाद से बुरी तरह नाराज हैं।
 
फिलीपींस तो इस वक्त अमेरिका के साथ सबसे बड़ा संयुक्त सैन्य अभ्यास भी कर रहा है। अमेरिका और फिलीपींस का कहना है कि ज्वॉइंट मिलिट्री एक्सरसाइज काफी पहले से तय की गई थी। फरवरी 2023 में वॉशिंगटन और मनीला के बीच एक नई रक्षा संधि हुई।
 
इस संधि के तहत दक्षिण चीन सागर के विवादित इलाके के पास अमेरिका 4 नए नौसैनिक अड्डे बनाएगा। ये अड्डे फिलीपींस की मंजूरी से बनाए जा रहे हैं। इनमें से 3 लुजोन द्वीप के उत्तर में ताइवान के पास हैं। फिलीपींस और दक्षिण चीन सागर के आसपास का इलाका दुनिया के सबसे अहम जलमार्गों में है। हाल के वर्षों में चीनी सेना के आक्रामक रुख से वहां तनाव है।
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