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Last Modified: मंगलवार, 14 अप्रैल 2020 (19:07 IST)

HDFC के अध्यक्ष पारेख का रियल्टी खातों के एकमुश्त पुनर्गठन पर जोर

HDFC के अध्यक्ष पारेख का रियल्टी खातों के एकमुश्त पुनर्गठन पर जोर - HDFC Chairman Parekh insists on outright restructuring of realty accounts
मुंबई। HDFC के अध्यक्ष दीपक पारेख ने मंगलवार को दबाव झेल रहे रियल एस्टेट कंपनियों के खातों के एकबारगी पुनर्गठन पर जोर देते हुए कहा कि इस क्षेत्र की मदद करने के लिए एनपीए मानदंडों में राहत देते हुए उसे 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन कर देना चाहिए।
 
गौरतलब है कि रियल एस्टेट क्षेत्र कोरोना वायरस महामारी के चलते लगाए गए प्रतिबंधों से काफी हद तक प्रभावित हुआ है। पारेख ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए रियल एस्टेट सेक्टर के प्रतिनिधियों को संबोधित करते हुए कहा कि जब तक दबाव वाले खातों का पुनर्गठन नहीं किया जाता है, वित्तीय संस्थानों के लिए इस क्षेत्र को अतिरिक्त नकदी मुहैया करना कठिन होगा।

इस वीडियो कॉन्फ्रेंस का आयोजन रियल एस्टेट डेवलपर्स संघों- नारेडको और क्रेडाई द्वारा किया गया था। पारेख ने कहा कि इस बारे में आरबीआई से पहले ही सिफारिश की जा चुकी है। 
 
उन्होंने कहा ‘आज, ज्यादातर डेवलपर एक तनावपूर्ण स्थिति में हैं और उनमें से कई एनपीए हैं या एनपीए बन जाएंगे। इसलिए, सबसे पहले हमें आरबीआई को यह भरोसा दिलाना होगा कि उद्योग के भविष्य के हित में हमें पुनर्गठन की अनुमति देनी होगी। एक बार जब आप पुनर्गठन कर लेंगे तो हम आपको (रियल एस्टेट डेवलपर) अतिरिक्त धन दे सकते हैं।’

उन्होंने कहा कि कानूनी शिकंजे में फंसने से बेहतर है कि पुनर्भुगतान की समयसीमा पर फिर बातचीत हो। पारेख ने कहा कि आरबीआई को कुछ समय के लिए एनपीए मानदंडों के तहत वर्गीकरण की अवधि को वर्तमान 90 दिनों से बढ़ाकर 180 दिनों तक कर देना चाहिए।
 
एचडीएफसी के अध्यक्ष ने कहा, ‘यह बेहद जरूरी है, वर्ना सभी ऋण देने वाले संस्थानों में बड़े पैमाने पर गैर-निष्पादित ऋण होंगे और बड़े पैमाने पर प्रावधान किए जाएंगे। उन्हें नुकसान होने लगेगा और रेटिंग एजेंसियां ​​सभी की रेटिंग घटा देंगी और यह एक वास्तविक आपदा होगी, व्यवसाय ढह जाएंगे।’
 
उन्होंने कहा कि यदि एनपीए नियमों में एक बार के लिए पुनर्गठन और राहत देते हुए 180 दिन का समय दिया जाता है तो बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थान डेवलपर को लंबे समय के लिए कर्ज दे सकेंगे। 
 
उन्होंने यह भी कहा कि मौजूदा परिवेश में माद्रिक नीति में उठाए गए कदमों का आगे उसी तरह से राहत पहुंचाना उतने प्रभावी ढंग हो पाना मुश्किल है। (भाषा) 
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