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हाथी भैया कहां चले..
थैले जैसा पेट तुम्हारा, हाथी भैया कहां चले।जंगल से तुम कब आए हो, बहुत दिनों के बाद मिले।पेड़ यहां अब नहीं बचे हैं, डालें कहां हिलाओगे।पत्तों का भी कहां ठिकाना, अब बोलो क्या खाओगे।नहीं नलों में पानी आता, नदिया नाले हैं सूखे।रहना होगा हाथी भैया, तुम्हें यहां प्यासे भूखे।कई शिकारी सर्कस वाले, पीछे पड़े तुम्हारे हैं।पता नहीं किस पथ के नीचे दबे हुए अंगारे हैं।अगर तुम्हें रहना है सुख से, जंगल में वापस जाओ।ले खड़ताल मंजीरा भैया, राम नाम के गुण गाओ।