बाल कविता : जंगल में होली
ना जाने क्यों कर रहा
हा-हा ही-ही शेर।
गीदड़ चीते पर रहा-
अपनी आंख तरेर॥
व्यर्थ कुलांचे भर रहा
नीला रंगा सियार।
औंधे मुंह भालू पड़ा
रहा ठहाके मार॥
चंचल हिरनी व्यर्थ ही
रोए मुंह को फाड़।
गप्प लड़ाए लोमड़ी
करती तिल का ताड़॥
हाथी गुमसुम बैठकर
ताक रहा क्या दूर।
आज सुबह से मस्त हो
नाच रहा लंगूर॥
जंगल का हर जानवर,
रचे अनोखे स्वांग।
होली पर खरगोश ने
इन्हें पिला दी भांग॥
- अशोक 'अंजुम'