बच्चों की कविता : कुहू-कुहू गाती कोयल.
- डॉ. परशुराम शुक्ल
भारत और निकट देशों में,
यह पक्षी मिल जाता।
खेत, बाग, जंगल, मैदानों,
में आवास बनाता।
सर से पूंछ तलक नर काला,
पीली चोंच निराली।
मादा का रंग गहरा भूरा,
बिन्दी चित्ती वाली।
शाम-सवेरे भोजन करता,
फूल बेरियां खाता।
और कभी छोटे सांपों पर,
अपना दांव लगाता।
मौसम आते ही बसंत का,
जमकर शोर मचाता।
पीछा करता मादाओं का,
कुहू-कुहू यह गाता।
नीड़ देख कौए का मादा,
उसमें अण्डे देती।
कौआ सेता अण्डे बच्चे,
कोयल कभी न सेती।
साभार - देवपुत्र