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बाल कविता : सूरज का डोला
चिड़ियों ने जब चूं-चूं बोला,पूरब ने अपना मुंह खोला।उदयाचल अपने कंधे पर,ले आया सूरज का डोला।पीपल पर कोयल चिल्लाई,तब कौओं को भी सुध आई।कांव-कांव कहकर चिल्लाए,उठो सबेरा जागो भाई।फूलों पर भौंरे मंडराए,लगी भूख है रस मिल जाए।जीने का आधार चाहिए,थोड़ा-सा ही बस मिल जाए।गाय रंभाने लगी सार में,खड़ा बिजूक हंसा हार में।नौकर सारे लगा दिए हैं,मालिक ने फिर से बिगार में। चौराहों पर खड़ी हो गई,वरदी में बच्चों की टोली।आओ बच्चो जल्दी बैठो,जाना है शाला, बस बोली।