मंगलवार, 26 मार्च 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. इस्लाम धर्म
  4. Ashura 2018
Written By

यौमे-ए-आशुरा : क्या है इसका महत्व और कर्बला में क्यों मनाया जाता है मुहर्रम, जानिए...

यौमे-ए-आशुरा : क्या है इसका महत्व और कर्बला में क्यों मनाया जाता है मुहर्रम, जानिए... - Ashura 2018
कर्बला कहां है, क्या है इसकी कहानी : - इराक की राजधानी बगदाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है- कर्बला। यहां पर तारीख-ए-इस्लाम की एक ऐसी नायाब जंग हुई, जिसने इस्लाम का रुख ही बदल दिया। इस कर्बला की बदौलत ही आज दुनिया के हर शहर में 'कर्बला' नामक एक स्थान होता है जहां पर मुहर्रम मनाया जाता है।
 
हिजरी संवत के पहले माह मुहर्रम की 10 तारीख को (10 मुहर्रम 61 हिजरी अर्थात 10 अक्टूबर 680) मुहम्मद साहिब के नवासे हजरत हुसैन को इराक के कर्बला में उस समय के खलीफा यजीद बिन मुआविया के आदमियों ने कत्ल कर दिया था। इस दिन को 'यौमे आशुरा' कहा जाता है।
 
कहते हैं कि कर्बला में एक तरफ 72 और दूसरी तरफ यजीद की 40,000 सैनिकों की सेना थी। 72 में मर्द-औरतें और 51 बच्चे शामिल थे। हजरत हुसैन की फौज में कई मासूम थे, जिन्होंने यह जंग लड़ी। हजरत हुसैन की फौज के कमांडर अब्बास इब्ने अली थे। उधर यजीद की फौज की कमान उमर इब्ने सअद के हाथों में थी।
 
क्या हैं जंग का कारण : इस्लाम के पांचवें खलीफा अमीर मुआविया ने खलीफा के चुनाव के वाजिब और परम्परागत तरीके की खिलाफत करते हुए अपने बेटे यजीद को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया, जो जुल्म और अत्याचारों के लिए मशहूर था।
 
यजीद ने अपनी खिलाफत का ऐलान कर अन्य लोगों के अलावा हजरत हुसैन से भी उसे खलीफा पद की मान्यता देने के लिए कहा गया। इमाम हुसैन ने ऐसा करने से इनकार कर दिया और इसी इनकार की वजह से कर्बला पर युद्ध का मंजर छा गया और हुसैन शहीद हो गए। इसी कारण हजरत हुसैन को शहीद-ए-आजम कहा जाता है।
 
हजरत हुसैन ने मुट्ठीभर लोगों के साथ अपने जमाने के सबसे बड़े जालिम और ताकतवर शासक के खिलाफ बहादुरी और सब्र के जो जौहर दिखलाए, उसे दुनिया कभी नहीं भूल सकती। इस हादसे की याद में मुहर्रम मनाया जाता है। दरअसल यह कोई त्योहार नहीं, मातम का दिन है। हजरत हुसैन की शहादत यह पैगाम देती है कि इनसान को हक व सचाई के रास्ते पर चलना चाहिए।
 
इस जंग के बाद ही न मालूम कैसे शिया और सुन्नी दो अलग वर्ग बन गए। धीरे-धीरे शहादत का यह दिन सिर्फ शियाओं के महत्व का ही क्यों रह गया यह भी मालूम नहीं, जबकि हुसैन साहिब ने तो जुल्म और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाई थी किसी सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ नहीं।
 
यौमे आशुरा यानी मोहर्रम माह की दस तारीख, इस दिन को पूरे विश्व में बहुत अहमियत, अज्मत और फजीलत वाला दिन माना जाता है। 
ये भी पढ़ें
डोल ग्यारस : श्री कृष्ण का जलझूलनी व्रत कैसे मनाएं..पढ़ें कथा