E=mc2: आइंस्टीन का सिद्धांत जिसके सूत्र से बना 'एटम बम'
गुजरे वक्त के महान वैज्ञानिकों ने ऐसे सिद्धांत बनाए है कि बाद में उनकी मदद से कई अविष्कार हो गए। यह अविष्कार आगे चलकर दुनिया के लिए वरदान भी साबित हुए और विनाश भी। अल्बर्ट आइंस्टीन का भी एक ऐसा ही सिद्धांत है जिसके सूत्र से एटम बम बनाने की राह खुली थी। ऐसा माना जाता है कि आइंस्टीन के एक सिद्धांत की एटम बम बनाने में मदद ली गई।
आइए जानते हैं उस सिद्धांत के बारे में आखिर क्या है आइंस्टीन का वह सिद्धांत।
सबसे पहले समझते हैं कि आखिर यह सिद्धांत है क्या। दरअसल, E का मतलब है ऊर्जा, जो किसी भी इकाई में स्थित है यानी एक परमाणु से लेकर ब्रह्मांड के किसी भी पिंड में। m का मतलब द्रव्यमान है और c का मतलब प्रकाश की गति (करीब 186,000 मील प्रति सेकंड) से है।
इस सूत्र का अर्थ यह हुआ कि किसी भी इकाई के कुल द्रव्यमान को यदि प्रकाश की गति के वर्ग से गुणा किया जाए तो उस इकाई की कुल ऊर्जा मालूम की जा सकती है।
आइंस्टीन ने थ्योरी यह दी थी कि ऊर्जा और द्रव्यमान सापेक्ष हैं यानी सापेक्षता के इस विशेष सिद्धांत का दावा था कि ऊर्जा को द्रव्यमान और द्रव्यमान को ऊर्जा में बदला जा सकता है।
वक्त गुजरने के साथ इस थ्योरी को लेकर कई शोध और रिसर्च होती रही है। लेकिन 21वीं सदी में वैज्ञानिकों ने इसके सिद्ध होने का दावा किया। आइंस्टीन के थ्योरी देने के करीब 113 साल बाद फ्रेंच, जर्मन और हंगरी के वैज्ञानिकों ने भी 2018 में पुष्टि की थी कि प्रयोगों में यह सूत्र प्रामाणिक सिद्ध हुआ।
विज्ञान की दुनिया में आइंस्टीन की इस थ्योरी के चर्चा में आने के बाद अमेरिका में न्यूक्लियर पावर स्टेशनों में इसके सूत्र को एक्सिक्यूट करने की योजनाएं बनाई जाने लगी थी।
रिएक्टरों के भीतर सबएटॉमिक कणों यानी न्यूट्रॉन्स के साथ यूरेनियम के परमाणुओं के संघटन संबंधी प्रयोग किए गए। अणुओं के विखंडन के इस प्रयोग खासी ऊर्जा रिलीज़ होना पाया गया। 'मास डिफेक्ट' की थ्योरी के तहत यह दावा किया गया कि आइंस्टीन के सिद्धांत के अनुसार आप मिसिंग मास यानी द्रव्यमान को ऊर्जा में रूपांतरित होने के तौर पर समझ सकते थे।
बाद में न्यूक्लियर फिज़न संबंधी प्रयोग में यह आइंस्टीन का यह सिद्धांत मददगार साबित हुआ। एटम बम के लिए काम शुरू हो चुका था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भौतिकशास्त्री हेनरी डीवोल्फ स्मिथ ने अमेरिकी सरकार के लिए जो रिपोर्ट तैयार की, उसमें आइंस्टीन के इस सूत्र का ज़िक्र किया गया। चर्चा हुई कि मैनहैटन प्रोजेक्ट में एटम बम किस तरह तैयार किया जा रहा था। वही एटम बम जो हिरोशिमा और नागासाकी के के लिए विनाश साबित हुआ।
यह भी कहा जाता है कि इस मैनहैटन प्रोजेक्ट से आइंस्टीन के खुद जुड़े थे, लेकिन सिक्योरिटी संबंधी क्लीयरेंस न मिलने के चलते उनकी इस प्रोजेक्ट में मौजूदगी न के बराबर ही थी। हालांकि यह तो कहा ही जाता है कि एटम बम बनाने में आइंस्टीन के इस सिद्धांत के सूत्र का उपयोग किया गया।