होली के लिए हर्बल रंगों की चाहत तो सभी की होती है, लेकिन लोगों को इन रंगों को बनाने का तरीका नहीं आता। लेकिन इस दिशा में जिम्मी मगिलिगन सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट की निदेशिका जनक पलटा ने पहल की है, जिसके तहत सनावादिया, तिलक नगर, मूसा खेड़ी, देव गुराड़िया, कम्पेल, दुधिया, उमरिया और आस पास के स्कूली छात्रों और उनके संकायों ने जनक पलटा मगिलिगन से होली के लिए प्राकृतिक रंग का प्रशिक्षण लिया।
इन प्राकृतिक रंगों को बनाने के लिए प्रकृति से प्राप्त चीजों जैसे फल, फल, पौधे, बेल आदि का प्रयोग किया गया। सब से पहले तो सेंटर की निदेशिका जनक दीदी उन्हें अपने सेंटर पर लगे प्राकृतिक फूल, गुलाब, गुड़हल व अम्बाडी के पौधे, पोई की बेलें, संतरा, अनार, पारिजात, शहतूत के पेड़ दिखाने ले गईं। इसके बाद पड़ोस से लाए गए पलाश/टेसू के फूल और चुकंदर के बारे में भी बताया, जिससे आसानी से प्राकृतिक रंग बनाए जाते हैं। इसके बाद जनक दीदी ने उनके सोलर ड्रायर में सूख रहे गुलाब, अम्बाडी की पंखुड़ियों व संतरे व अनार के छिलके दिखा कर समझाया कि सूखे रंगों के साथ होली उत्सव मनाने के लिए वे कैसे आज से (सोलर ड्रायर के बिना) सब कुछ सुखा सकते हैं।
प्राकृतिक सामग्री की जानकारी देने के बाद शुरु हुई प्राकृतिक रंग बनाने की प्रक्रिया। बहुत ही सरल तकनीकों से व्यावहारिक सत्र शुरू किया गया और सिर्फ 7 मिनट में तैयार हो गया पोई का गीला चमारिया रंग। टेसू और अम्बाडी से प्राकृतिक रंग बनाने में सिर्फ 2 मिनट लगे। पोई के फलो और टेसू के फूलों को गर्म पानी में मिलाकर जब ये रंग बनाया गया, तो बच्चे रंगों को देख कर ख़ुशी से फूले नहीं समाए।
इसी तरह गीले रंग के अलावा मुंह पर मलने वाला लाल रंग भी पोई से बनाया गया। उन्होंने बस पोई को अपने हाथों से मसल दिया और हाथों पर लग गया होली का असली रंग, जिसे देखना सभी के लिए एक जादुई अनुभव था। मेहंदी की तरह अपने दोनों हाथों पर इन प्राकृतिक रंगों को देख सभी उत्साहित थे।
जनक दीदी ने एक-दूसरे के चेहरे पर लगा कर भी दिखाया और बताया इससे चमड़ी नरम और चमकदार हो जाएगी। और तो और ये रंग बिना किसी साबुन लगाए बहुत कम पानी से धुल भी जाएंगे। जनक दीदी ने केमिकल रंगों के नुकसान भी बताए और कहा कि रासायनिक रंग बहुत महंगे और हानिकारक होते हैं। साथ ही उन के प्लास्टिक पैकेटों से भी बहुत प्रदूषण होता है। इन रंगों से त्वचा की एलर्जी होती है, आंखों और गले के लिए भी ये हानिकारक हैं। उनका कहना था कि हमारे पास पीने के लिए पानी नहीं है, रासायनिक रंगों से छुटकारा पाने के लिए कपड़े धोने में 10 गुना पानी हम कहां से लाएंगे पानी। यह बीमारी, समय की बर्बादी, ऊर्जा और पर्यावरण, मानसिक तनाव देता है। रासायनिक रंग हिंसा का कारण बनते हैं जबकि प्राकृतिक रंग प्रेम बढ़ाते हैं।
वहां मौजूद कुछ लड़कों ने केरोसीन और हानिकारक रसायनों के साथ मिश्रित रंगों के बुरे अनुभव को भी साझा किया और उनसे जान का खतरा बताया। जब लड़कियों को बोलने के लिए प्रोत्साहित किया गया, तो उन्होंने कहा कि वे होली खेलने से बहुत डरती हैं और घर में रहना पसंद करती हैं। क्योंकि दुर्व्यवहार या उत्पीड़न होने से वे बहुत असुरक्षित महसूस करती हैं। सभी सहभागियों ने इस होली को प्राकृतिक बनाने का संकल्प लिया।
विट्टी इंटरनेशनल स्कूल मुंबई के तीन युवा काव्य पंडित, कुश व लक्ष्य, टेसू के फूलों को मुंबई ले गए हैं ताकि वे वापस घर की प्राकृतिक होली खेल सकें। क्योंकि वे मेट्रो सिटी में ऐसे फूल नहीं दिखाई देते।
प्राकृतिक रंगों को बनाने का यह प्रशिक्षण गांवों और शहर के स्कूलों, कॉलेजों, सभी उम्र व लोगों के लिए खुला था, इसके लिए कोई शुल्क या पंजीकरण नहीं था। इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य अपनी-अपनी संस्था, परिवार सभी को इको-फ्रेंडली होली के रंग बनाना सिखाकर पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को बचाना है।