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Last Updated : मंगलवार, 12 सितम्बर 2023 (14:34 IST)

सारागढ़ी का युद्ध, 10 हजार पठानों के साथ जब लड़े सिर्फ 21 सिख

सारागढ़ी का युद्ध, 10 हजार पठानों के साथ जब लड़े सिर्फ 21 सिख - Battle of Saragarhi
Battle of saragarhi: भारतीय पंजाब के अमृतसर स्वर्ण मंदिर से कुछ ही किलोमीटर दूर है 'सारागढ़ी मेमोरियल गुरुद्वारा'। यह गुरुद्वारा उन 21 बहादुर सिख सैनिकों की याद में बना है जिन्होंने 10000 पश्तून ओरजकाई अफरीदी कबीले के लोगों से लड़ाई लड़ी थी। 12 सितंबर 1897 को आज उस लड़ाई की 126वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है। आओ जानते हैं लड़ाई के कारण और मुख्य बिंदू।
 
लड़ाई का कारण : 12 सितंबर, 1897 को, कोहाट (जो अब पाकिस्तान में खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत है) के गैरिसन शहर से करीब 40 मील दूर सारागढ़ी नाम की एक छोटी सी जगह पर ब्रिटिश चौकी पर करीब 10,000 ओरज़काई-अफरीदी कबीले के लोगों ने हमला कर दिया। कहते हैं कि ये सभी पश्तून यानी पठान थे। उस दौर में रूसी सेना और अफगान कबीलों दोनों से भारत को खतरा था। ब्रिटिश भारत और अफगानिस्तान के बीच के सीमांत क्षेत्र पर अशांति बढ़ती जा रही थी। अपने क्षेत्र को बचाने के लिए यह लड़ाई लड़ी गई।
 
21 योद्धा और 10 हजार हमलावर : लॉकहार्ट और गुलिस्तान के मुख्य किलों के बीच स्थित यह चौकी बहुत महत्वपूर्ण चौकी थी। यहां से दूर तक संदेश पहुंचाए जाने की व्यवस्था भी थी। यह दोनों किले एक-दूसरे को संदेश ना भेज सकें इसलिए सबसे पहले हमलावरों ने सारागढ़ी को घेर लिया। यहां सिर्फ 21 सिख सैनिक तैनात थे। सारागढ़ी का बचाव करते हुए, बंगाल इन्फेंट्री की 36वीं (सिख) रेजिमेंट के 21 बहादुर सैनिकों ने इस बड़े हमले के खिलाफ जमकर लड़ाई लड़ी। तैनात सैनिकों का नेतृत्व एक अनुभवी हवलदार इशर सिंह कर रहे थे।
 
इतनी भारी संख्या का सामना करने के बावजूद, योद्धाओं ने उत्तर-पश्चिम सीमांत प्रांत की ऊबड़-खाबड़ पहाड़ियों में बहादुरी और समझदारी से लड़ाई लड़ी और चौकी का बचाव किया। इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि मात्र 21 सैनिकों ने 10 हजार हमलावरों से लड़ाई लड़ी हो। 
 
कम संख्या होने के बावजूद, जांबाज सिखों ने हमले के विरुद्ध चौकी की रक्षा करते हुए युद्ध को देर तक जारी रखने की रणनीति अपनाई ताकि आसपास के दो किलों को युद्ध की तैयारी करने का पर्याप्त समय मिल जाए क्योंकि इशर सिंह और उनकी टीम को पता था कि सारागढ़ी के बाद, शत्रु उन दो किलों पर हमला करेंगे। अपने सैनिकों के साथ हालात पर चर्चा करने और आम सहमति पर पहुंचने के बाद, हवलदार सिंह ने अपने सिग्नलर गुरुमुख सिंह से जवाब में 'समझ गया' संदेश भेजने को कहा।
 
अफगानियों के सभी प्रयास हो गए असफल : 21 सिखों की लड़ाई देखकर अफगानी हैरान थे। उन्होंने सिखों को संदेश दिया की आत्मसमर्पण कर दोगे तो उन्हें सुरक्षित मार्ग दिया जाएगा, लेकिन हवलदार इशर सिंह ने अपनी जगह से एक इंच भी हिलने से इनकार कर दिया। इसके बाद शत्रुओं ने किले की दीवारों के नीचे खुदाई करना शुरू कर दी। इसके बाद उन्होंने धुआं फैलाने के लिए आसपास की झाड़ियों में आग लगा दी ताकि सिख सैनिकों को कुछ भी नजर न आए। लेकिन उनकी रणनीति असफल हुई और सिख सैनिक घंटों तक लड़ते रहे। फिर जब सिखों के बाद गोला बारूद खत्म हो गया तो शत्रुओं ने किले की एक दीवार का हिस्सा ढहा दिया और चौकी को पार करने लगे। 
Battle of Saragarhi
आमने-सामने की लड़ाई : हर सिख अब अभिमन्यु की तरह लड़ाई लड़ रहा था। गंभीर रूप से घायल इशर सिंह ने कमाल की वीरता का एक अंतिम प्रदर्शन किया और अपने बचे हुए सैनिकों को चौकी की इमारत के अंदरूनी हिस्सों में पीछे हटने के लिए कहा और खुद बाहर खड़े रहे। इशर सिंह और दो अन्य जांबाज घायल सिपाहियों ने आमने-सामने की लड़ाई में जमकर मुकाबला किया और अंतिम सांस तक लड़ते-लड़ते शहीद हो गए।
 
जब तक पश्तून अफगानी किले में घुसने में कामयाब हुए, तब तक गुरुमुख सिंह सहित केवल 5 सिख जीवित बचे थे। गुरुमुख सिंह ने सारागढ़ी से फोर्ट लॉकहार्ट को अंतिम संदेश भेजा- 'मुझे यहां से हटने और लड़ाई में शामिल होने की अनुमति दें। उन्हें तुरंत जवाब मिला: 'अनुमति है।'
 
बटालियन में सबसे छोटे महज 19 साल की उम्र के गुरुमुख सिंह ने अकेले ही करीब 20 अफगानियों को अपनी संगीन (एक तरह का हथियार) से मौत के घाट उतारकर, बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गया। सात घंटे की लड़ाई के अंत में, सारागढ़ी के सभी 21 सिख वीरगति को प्राप्त हो गए। लेकिन उन्होंने अपने गोला-बारूद का भरपूर तरीके से उचित समय पर उपयोग करते हुए सैंकड़ों लोगों को मारा अंत में आमने सामने की लड़ाई में 100 से ज्यादा शत्रुओं को मार गिराया और दोनों ब्रिटिश किलों को तैयारी करने का पूरा समय दिया।
 
ब्रिटिश संसद में स्टैंडिंग ओवेशन : ब्रिटिश भारतीय सेना के तत्कालीन कमांडर-इन-चीफ ने उन वीर सैनिकों की वीरता को दुनियाभर में प्रचारित किया और वीरता की काफी तारीफ की। ब्रिटिश संसद ने शहीदों को स्टैंडिंग ओवेशन देने के लिए 1897 के अपने सत्र को बीच में ही रोक दिया, महारानी विक्टोरिया ने उन भारतीय वीर सपूतों की प्रशंसा करते हुए कहा- ''यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि जिन सेनाओं के पास बहादुर सिख हैं, वे युद्ध में हार का सामना नहीं कर सकते। 21 बनाम 10,000, आखिरी आदमी तक, आखिरी समय तक।'
 
उस दौर में उन सभी 21 शहीदों को विक्टोरिया क्रॉस के बराबर इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट क्लास III से सम्मानित किया गया। हर साल, भारतीय सेना की सिख रेजिमेंट भी 12 सितंबर को 'सारागढ़ी दिवस' के रूप में मनाती है।
 
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