तकनीक की मिसाल - जंतर मंतर
दिल्ली के कनॉट प्लेस पर स्थित जंतर मंतर वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है। यह दिल्ली के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। जंतर मंतर में लगे 13 खगोलीय यंत्र राजा सवाई जयसिंह ने स्वयं डिजाइन किए थे। जंतर मंतर में लगे तमाम यंत्रों की मदद से ग्रहों की चाल का अध्ययन किया जाता था।
यह स्मारक भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है। दिल्ली का जंतर मंतर समरकंद, उज्बेकिस्तान के अनुसंधान से प्रेरित है। यहाँ हर साल पर्यटकों के अलावा दुनियाभर से बड़ी संख्या में वास्तुविद, इतिहासकार और वैज्ञानिक भी आते हैं। इसके निर्माण में ६ साल का समय लगा था।गुलाबी शहर जयपुर के संस्थापक, प्रसिद्घ राजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने 18वीं सदी में भारत में अलग-अलग जगहों पर पाँच अंतरिक्षीय अनुसंधान केन्द्र बनवाए थे। दिल्ली का जंतर मंतर इस कड़ी में बनवाया गया पहला अंतरिक्षीय अनुसंधान केन्द्र है। यह वाराणसी, जयपुर, मथुरा और उज्जैन में बने अनुसंधान की अपेक्षा सबसे बड़ा और बेहतर ढंग से संरक्षित है। इस ऐतिहासिक स्थल का संबंध भारतीय ज्योतिष से भी है, क्योंकि यहाँ से सूर्य-चंद्र और अन्य ग्रह-नक्षत्रों की गतिविधि और समय नापने का काम किया जाता था।
इसका नाम असल में 'यंतर मंतर' है, लेकिन जंतर मंतर ही ज्यादा प्रचलित है। दिल्ली में इसका निर्माण 1724 में करवाया गया था। मुगल बादशाह मुहम्मद शाह के शासनकाल में हिन्दू और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थिति को लेकर बहस छिड़ गई थी। इसे रोकने के लिए ही सवाई जयसिंह ने जंतर मंतर का निर्माण करवाया।