सोंठ और अदरक एक ही पदार्थ के दो रूप हैं। गीले रूप में यह अदरक कहलाती है और सूखने पर यही सोंठ हो जाती है।
अदरक और सोंठ का उपयोग मसालों और घरेलू दवाओं के रूप में भी व्यापक तौर पर किया जाता है। यह वात रोगों की उत्तम औषधि है।
सोंठ उष्णवीर्य, कटु, तीक्ष्ण, अग्निदीपक, रुचिवर्द्धक पाचक, कब्जनिवारक तथा हृदय के लिए हितकारी है। वातविकार, उदरवात, संधिशूल (जोड़ों का दर्द), सूजन आदि रोगों में अत्यंत लाभदायक है।
सोंठ के दैनिक प्रयोग किस तरह किए जा सकते हैं, यह जानकारी हम यहां दे रहे हैं-
* कांजी में सोंठ का चूर्ण डालकर पीने से आमवात (गठिया-जोड़ों का दर्द) में आराम मिलता है। सोंठ एवं हरड़ चूर्ण मधु में मिलाकर चाटना अथवा सोंठ एवं गोरख मुण्डी का कल्क अथवा तिल एवं सोंठ का कल्क खाना अथवा सोंठ, हरड़ एवं गिलोय का क्वाथ (काढ़ा) शुद्ध गूगल मिलाकर गरम-गरम पीना चाहिए। इससे कमर दर्द, कंधे का दर्द, घुटने का दर्द एवं पीठ दर्द दूर हो जाता है।
* भुनी हींग 10 ग्राम, चव्य 20 ग्राम, विडनमक 30 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, काला जीरा 50 ग्राम और पोहकर 60 ग्राम लेकर कपड़छान चूर्ण बनाकर रख लें। 2-3 ग्राम चूर्ण प्रतिदिन सुबह-शाम सेवन करें। यह वातनाशक और गठिया रोग निवारक है।
* इसके अलावा हींग, हरड़, पीपल, पीपलामूल, काली मिर्च, जीरा आदि ऐसे मसाले हैं आपके रसोईघर में, जो वातरोग, गठिया, जोड़ों का दर्द, जोड़ों की सूजन आदि की रामबाण औषधि है। कुछ ऐसे ही दर्द निवारक नुस्खे यहां दिए जा रहे हैं, जिनका लाभ आप उठा सकते हैं।
* हरड़, सोंठ तथा अजवायन समभाग लेकर चूर्ण बनाएं और तक्र, गरम जल अथवा कांजी के साथ सेवन करें। इसके सेवन से गठिया एवं जोड़ों की सूजन से मुक्ति मिलती है।
* लहसुन, सोंठ तथा संभालू का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया तथा आमवात का शमन होता है। यह गठिया रोग की उत्तम औषधि है।
* सोंठ, रास्ना, गिलोय, एरण्डमूल का क्वाथ बनाकर पीने से सर्वांगव्यापी आमवात तथा जोड़ों, अस्थियों एवं मांसपेशियों का दर्द दूर होता है।
* सोंठ एवं कचूर का कल्क पुनर्नवा के क्वाथ के साथ खाने से आमवात का नाश होता है।
* सोंठ का चूर्ण बनाकर रख लें। इसे रास्ना सप्तक क्वाथ (रास्ना, गिलोय, आमलतास, देवदारु, गोखरू, एरण्डमूल तथा पुनर्नवा) के साथ खाने से जंघा, ऊरु, पसली, कमर एवं पीठ का दर्द शांत हो जाता है।
* सोंठ का चूर्ण 10 ग्राम लेकर कांजी के साथ सेवन करने से गठिया का दर्द दूर होता है।
* सेंधा नमक और अजवायन समभाग लेकर चूर्ण बनाएं। 20-20 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम दही का पानी, कांजी, छाछ, घी अथवा गरम जल के साथ सेवन करें। इससे जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, आमवात, वायु गोला, मूत्राशय के रोग, कब्ज, उदर रोग आदि का शमन होता है। इसे वैश्वानर चूर्ण कहते हैं। यह वात रोगों का नाशक है।
* अजमोद, काली मिर्च, पीपल, वायविडंग, देवदारु, चित्ता, सोया, सेंधा नमक, पीपलामूल, सभी 40-40 ग्राम, सोंठ तथा विधारा 400-400 ग्राम, हरड़ 200 ग्राम- सभी द्रव्यों का बारीक चूर्ण बना लें। फिर सभी औषधियों के बराबर गुड़ मिलाकर 10-10 ग्राम की गोलियां बना लें। 1-1 गोली सुबह-शाम गरम जल के साथ सेवन करें। इसके प्रयोग से गठिया, साइटिका (हाथ-पैर की उंगलियों के जोड़ों का दर्द), कमर का दर्द- जकड़न, पीठ दर्द, जंघा रोग, जोड़ों की सूजन आदि रोग उसी तरह भाग जाते हैं जैसे सूर्योदय होने पर अंधकार।
साथ ही इसके सेवन से भूख लगती है। स्वास्थ्य प्राप्त होता है। यौवन स्थिर रहता है, असमय बाल सफेद नहीं होते। इसके अतिरिक्त और भी बहुत से लाभ हैं। इसे 'अजमोदादि चूर्ण वटी' कहते हैं।
* तिलों को भूनकर दूध में बुझा दें। फिर इस तिल के बराबर तीसी लेकर दूध से पीस लें। इसे गठिया रोग से पीड़ित स्थान पर लेप करें। इससे दर्द व सूजन दूर होगी।
* गिलोय, सोंठ तथा धनिया 10-10 ग्राम का क्वाथ बनाकर पीने से वातरक्त, आमवात तथा अन्य वात रोग शांत होते हैं।
* तालमखाना एवं गिलोय के क्वाथ में बलानुसार पीपल (3 से 10-20 तक) पीसकर 21 दिन पीने से गठिया रोग से मुक्ति मिल जाती है, परंतु रोगी पथ्य से रहे।
* मुलेठी का चूर्ण 10 ग्राम, तिल का तेल 20 ग्राम तथा बकरी का दूध 40 ग्राम मिलाकर पीने से वात रक्त (गठिया) रोग शांत हो जाता है।