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इंदौर की राजनीति में युवा नेतृत्व का उदय

इंदौर की राजनीति में युवा नेतृत्व का उदय - Rise of youth leadership in Indore politics
स्थानीय निकाय के चुनावों की घोषणा होते ही सत्ता एवं प्रमुख विपक्षी दल के शीर्ष नेतृत्व ने इस बार युवा नेताओं को तव्वजो देने का मन बार-बार जाहिर किया। वास्तव में यह होना भी चहिए ताकि हर दल में नए चेहरों को मौका मिले। यदि हम इंदौर की राजनीति के इतिहास को देखें तो करीब 6 दशक पहले नगर में युवा नेतृत्व का सूरज उदय हो चुका था।
 
1950 के दशक में होलकर विज्ञान महाविद्यालय की घटना तो आज भी प्रदेश में इस महाविद्यालय के पूर्व छात्रों को स्मरण होगी। जुलाई 1954 में होलकर विज्ञान महाविद्यालय में प्राचार्य श्री हरजीवन घोष सेवानिवृत्त हो गए। चूंकि वे उस दौर के छात्रों में काफी लोकप्रिय शिक्षको में थे, तो छात्रों ने उनके सेवा कार्यकाल में वृद्धि की मांग को लेकर आंदोलन किया जिसमें कॉलेज के सभी युवा वर्ग के छात्र और उनके नेता इसमें शामिल थे।
 
16 जुलाई 1954 से कॉलेज के छात्र प्राचार्य के कार्यकाल में वृद्धि की मांग को लेकर हड़ताल पर चले गए। उस वक्त मध्यभारत की राजधानी इंदौर थी। आंदोलनरत छात्रों की भीड़ ने तब सचिवालय (वर्तमान में मोती बंगला जिला कोर्ट का भवन, एमजी रोड) के समक्ष प्रदर्शन किया। छात्रों की भीड़ तत्कालीन शिक्षामंत्री नरसिंहराव दीक्षित से मिलने की मांग करने लगी।
 
कुछ छात्र नेता शिक्षामंत्री से मिले भी, परंतु छात्रों की भीड़ ने जबर्दस्ती भवन में प्रवेश की कोशिश की। छात्रों की इस अनुशासनहीनता के कारण लाठीचार्ज किया गया। छात्र इस लाठीचार्ज से नाराज हो गए और यह विवाद बढ़ता ही गया। 20 जुलाई 1954 को छात्रों के समूह ने सचिवालय भवन और न्यायालय भवन में तोड़फोड़ और आगजनी कर दी, तब पुलिस को गोलीचालन करना पड़ा। नगर में विवाद के चलते कर्फ्यू लगाना पड़ा।
 
इंदौर के इतिहास में पहली बार कर्फ्यू लगाया गया था। मध्यभारत राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री मिश्रीलाल गंगवाल और गृहमंत्री मनोहरसिंह मेहता इंदौर के ही थे। इस घटना के बाद नगर में कई छात्रों और उनके नेताओं को गिरफ्तार किया गया। इस घटना की प्रदेशभर में काफी आलोचना हुई। सरकार ने इस घटना की जांच के लिए कैलाशनाथ वांचू के नेतृत्व में जांच आयोग गठित किया जिसने अप्रैल 1955 में रिपोर्ट सौंप दी।
 
इस आंदोलन द्वारा नगर को कई छात्र नेताओं ने अपनी नेतृत्व क्षमता से अवगत कराया और यह एक संयोग रहा कि 1955 के नगर पालिका और 1958 के नगर निगम चुनाव में सर्वाधिक युवा नेतृत्व मैदान में अपना भाग्य आजमा रहा था और युवाओं को नगर के मतदाताओं ने भारी समर्थन दिया और उन्हें विजयी बनाया।
 
युवा नेताओं में नरेंद्र पाटोदी, सुरेंद्र नाथ गुप्ता, नारायण प्रसाद शुक्ल, सरदार शेर सिंह, कन्हैयालाल यादव, गोपीकृष्णा गोहर, बालकृष्ण गोहर और यज्ञदत्त शर्मा के नाम प्रमुख थे।
 
इस तरह नगर की राजनीति में युवा वर्ग के आगमन का आरंभ वर्ष 1955 से हो गया था। 2022 के निगम चुनावों में भी युवा वर्ग को महत्व देने की बात कही जा रही है। जाहिर है आज से करीब 65 वर्ष पूर्व युवा नेतृत्व का स्वप्न यह नगर देख चुका है।