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इंदौर में तब नगर निगम नहीं नगर सेविका हुआ करती थी

इंदौर में तब नगर निगम नहीं नगर सेविका हुआ करती थी - Indore used to have a corporator not a municipal corporation then.
देश और राज्य की व्यवस्था को संचालित करने के मुख्य प्रशासन की भूमिका रहती है, पर स्थानीय स्तर पर कार्यों को क्रियान्वित करने के लिए स्थानीय शासन की व्यवस्था होनी चाहिए। होलकर राज्य को संचालित करने के लिए राजा प्रमुख होता था, परंतु नगर पालिका तो नगर के विकास और नगरीय समस्याओं के निदान के लिए गठित एक संस्था थी।
 
होलकर राज्य में यह स्थानीय शासन की व्यवस्था काफी समय पहले स्थापित हो चुकी थी। 1909 में नगर पालिक अधिनियम पारित होने से स्वतंत्र निकाय की स्थापना की प्रक्रिया का सूत्रपात हुआ था। अप्रैल 1914 में 20 सदस्यों की एक सलाहकार समिति का गठन किया गया।
 
अक्टूबर 1928 में नगरपालिका अधिनियम में संशोधन किया गया और इसी वर्ष ब्रिटिश भारत में प्रचलित सिद्धांत के अनुसार निर्वाचित सदस्यों की समिति की व्यवस्था नगर पालिका के लिए स्वीकार की गई।
 
30 सदस्यों की नगरपालिका की परिषद में पार्षद स्थायी, कुछ परिषद द्वारा, शासन द्वारा नियुक्त उपाध्यक्ष, परिषद द्वारा नियुक्त किया जाता था एवं नगर पालिका आयुक्त की नियुक्ति शासन द्वारा की जाती थी। सदस्यों की नियुक्ति 1-1 वर्ष के लिए की जाती थी, परिषद का कार्यकाल 3 वर्ष का होता था।
 
चूंकि निर्वाचन और चुनाव जैसे किसी लोकतांत्रिक व्यवस्था का सवाल ही नहीं था। कारण स्पष्ट है तब राजशाही व्यवस्था थी। समय-समय पर नगर निगम सीमा का विस्तार भी किया था। निगम सीमा का विस्तार 1901-02, 1909 एवं 1930 में किया गया था। 1930 में नगर पालिका सीमा का क्षेत्रफल 8.28 वर्ग मील था। 1 अगस्त 1931 को सयोगितागंज इंदौर नगर पालिका में शामिल हुआ था। विकास के लिए नगर सुधार न्यास गठित किया गया था। मनोरमागज, स्नेहलतागंज, तुकोगंज एवं पलासिया इस न्यास की योजना का प्रतिफल थे।
 
उस वक्त नगर पालिका के सीमित संसाधन थे और आय के स्रोत भी सीमित थे। 1930-31 में पालिका की आय 3,77,650 रुपए थी। 1941-42 में यह यह 9,15,414 रुपए हो गई थी।
 
देश के आजाद होने के बात मध्यभारत में गिनी-चुनी नगर पालिकाएं थीं। उन इंदौर का दर्जा उच्च था। आजाद भारत के पहले चुनाव के रूप में नगर के नागरिकों ने नगर पालिका के चुनाव में अपने मत पर प्रयोग किया था। इंदौर नगर पालिका का पहला चुनाव 19 मार्च 1950 को हुआ था। एक संयोग था कि आजादी के बाद नगर के पहले चुनाव 19 मार्च 1950 को हिन्दू नववर्ष यानी गुड़ी पड़वा थी। शुभ कार्य की शुरुआत भी नववर्ष के दिन आरंभ हुई थी। उस समय नगर पालिका के बजाय म्युनिसिपल बोर्ड या नगर सेविका कहा जाता था।
 
आजादी के बाद देश, प्रदेश या नगर में कांग्रेस का बोलबाला था। जाहिर है आजादी के आंदोलन में ज्यादातर कार्यकर्ता कांग्रेस के ही थे। अन्य दल के सदस्यों ने भी हिस्सा लिया था, पर उनकी संख्या कम थी। 1950 के नगर सेविका के चुनाव में कांग्रेस, हिन्दू सभा, कम्युनिस्ट एवं जनवादी मोर्चा ने चुनाव में हिस्सा लिया था। उस वक्त के चुनाव में एक बात यह थी कि कांग्रेस के आलावा सभी उम्मीदवार स्वतंत्र उमीदवार के रूप में जाने जाते थे।