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जब गंदगी फैलाने पर मिलता था दंड

जब गंदगी फैलाने पर मिलता था दंड - When there was a punishment in Indore for spreading dirt
यह सोचकर आश्चर्य होता है कि जब इंदौर में वाहन न के बराबर थे तथा आबादी भी कम थी, उस जमाने में प्रदूषण नियंत्रण हेतु कारगर उपाय किए गए थे। उस समय गंदगी फैलाने वाले को दंडित भी किया जाता था।
 
वर्ष 1913 के आसपास शहर को प्रदूषण से मुक्त बनाने के लिए कई कारगर उपाय किए गए थे। उस जमाने में शौचालयों की गंदगी को एक स्थान पर इकट्ठा कर उसे शहर से दूर ले जाया जाता था। जूनी इंदौर के पास गंदगी को गड्‌ढों में इकट्ठा किया जाता था। उस समय यह व्यवस्था की गई थी कि जो भी सफाई कर्मचारी या मकान मालिक गंदगी फैलाने के लिए दोषी पाया जाता था, उस पर नगर पालिका की तरफ से दंड लगाया जाता था।
 
उस समय तक सफाई कर्मचारियों को नगर पालिका द्वारा नौकरी पर नहीं रखा जाता था, लेकिन बाद में उन्हें रखा जाने लगा। धीरे-धीरे नगर पालिका की आय बढ़ती गई और शहर की सफाई के लिए उसके संसाधन बढ़ते गए। सफाई के अलावा उस वक्त नगर पालिका नागरिकों की सुरक्षा तथा सुविधा के लिए अन्य कार्य भी करती थी। आवारा कुत्तों से नागरिकों को बचाने के लिए उनका पंजीयन किया जाता था। कुत्तों को पकड़कर शहर से दूर स्थानों पर छोड़ दिया जाता था।
 
मिलों का प्रदूषित पानी जमा होकर शहर में प्रदूषण न फैलाए, इसके लिए भी कारगर उपाय किए गए थे। सन्‌ 1926 में एक योजना बनाकर मिल के गंदे पानी को निकालने का उपाय किया गया था। इसी वर्ष लगभग ढाई हजार रुपए की लागत से शहर के विभिन्न क्षेत्रों में पक्की नालियां बनाई गईं। इसके अलावा नगर पालिका ने शहर के विभिन्न स्थानों से गंदगी उठाने तथा सड़कों पर पानी का छिड़काव करने के लिए मोटर-गाड़ी भी खरीदी। धूल से बचाव के लिए रोज शाम को विभिन्न मार्गों तथा कच्ची सड़कों पर पानी का छिड़काव किया जाता था।