शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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चाणक्य नीति : धर्म क्या है?

चाणक्य नीति : धर्म क्या है? - Chanakya niti in hindi
धर्म के बारे में चाणक्य के विचार... 
 

 


आचार्य चाणक्य ने सार्वजनिक रूप से धर्म के संबंध में अपने विचार दिए हैं। यहां उन्होंने किसी धर्म की निंदा या प्रशंसा नहीं की है। उनके विचार प्रत्येक धर्मावलंबी के लिए उपयोगी है। धर्म क्या है? धर्म कैसा हो? मानवता का कितना गहरा संबंध है? आइए जानते हैं आचार्य चाणक्य की नजर से... 
 
चाणक्य कहते है मैं तीनों लोकों के स्वामी भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूं। अनेक शास्त्रों से राजनीत‍ि विषय की बातों को उद्धृत कर जन-जन के हित के लिए कहता हूं। इस कार्य में विष्णु मेरी सहायता करें, मुझे शक्ति प्रदान करें।
 
चाणक्य के सर्वश्रेष्ठ सुविचार 

* मनुष्य के हृदय में देवता निवास करते हैं। साधारण बुद्धि वालों के लिए मूर्ति ही देवता है और समदर्शियों के लिए सब स्थान में देवता दिखाई पड़ते हैं। समान भाव से व्यवहार रखने वालों को कण-कण में भगवान नजर आते हैं। उनके लिए समस्त संसार ही ईश्वरमय है।
 
 

 

* दान, अध्ययन आदि कर्म से दिन को सार्थक बनाना चाहिए। किसी एक श्लोक के आधे को अथवा उस आधे में से भी आधे को प्रतिदिन मनन करना उचित है। 
 
कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को कुछ-न-कुछ करते रहना चाहिए। दान एवं अध्ययन में अपना समय अवश्य लगाना चाहिए। थोड़ा-थोड़ा करके ही बहुत कुछ याद किया जा सकता है। प्रतिदिन कम-से-कम इतना ही करके मनुष्य बहुत कुछ याद कर सकता है।
 
* जिसको धर्म-अर्थ, काम-मोक्ष ‍इनमें से कोई एक भी फल न मिला हो, उस मनुष्य का मानव रूप में जन्म लेना केवल मरने के लिए है। उस मनुष्य का जन्म लेना ही व्यर्थ है। 
 
 

 


* जब तक शरीर स्वस्थ है, तब तक पुण्य कर्म कर लो। वरना मृत्यु आ जाने पर प्राण का अंत हो जाएगा। तब कुछ भी पुण्य अर्जित नहीं कर पाओगे। मनुष्य को समय रहते उसका लाभ उठाना चाहिए। 
 
* यहां सबकुछ सत्य पर निर्भर है। सत्य ही सनातन है। सत्य के अलावा शेष सब मिथ्या है। मनुष्य को सदा सत्य का ही सहारा लेना चाहिए। केवल एक सत्य के बल पर ही कोई भी मनुष्य वह जीवन के हर क्षेत्र में विजय प्राप्त कर सकता है।