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कहानी - इंसान की इंसानियत

कहानी - इंसान की इंसानियत - Hindi Kahani Insaniyat
प्रेम एस गुर्जर 
गांव से शहर को जाते मुख्य रास्ते पर एक घना एवं छायादार आम का पेड़ लगा हुआ था, जिसके नीचे एक बड़ा चबतूरा बन हुआ था। उस रास्ते से गुजरा हर मुसाफिर कुछ समय के लिए इस वृक्ष की छाया का आनंद जरूर लेता। पेड़ के नीचे बने आरामदायक चबतूरे पर बैठकर अपने सफर की थकान मिटाता, सुस्ताता और फिर अपने रास्ते चल देता।
 
अक्सर लोग इस पेड़ के नीचे बैठकर घंटों बातें किया करते, एक दूसरे की पीठ पीछे बुराई करते किंतु पेड़ सदैव उनकी सेवा में तत्पर रहता। उसे इंसान की बातों से कोई वास्ता नहीं था। वह स्थिर खड़ा अपनी शाखों से निरंतर अतिथियों को हवा एवं अपने पत्तों से छाया देने में कोई कसर नहीं छोड़ता।
 
वैसे तो पेड़ को लोगों की बाते सुनने का कोई शौक नहीं था, ऊपर से वह ‘प्राईवेसी’ का भी समर्थक था। एक दिन एक तोता काफी समय से उस पेड़ पर बैठा यह सब दृश्य देख रहा था। किस प्रकार से आम का पेड़ मुसाफि‍रों की सेवा में समर्पित था। तोते को एक हरकत सुझी, उसने पेड़ को छेड़ते हुए पूछा- ‘‘क्यों भाई बड़े भले बनते फिरते हो। लोगों को छाया देते हो, शीतल हवा देते हो, थके मुसाफि‍र को दो पल सुकुन के देते हो।’’
 
‘‘तो क्या हुआ?’’ तोते की बात सुन पेड़ ने उसकी तरफ ध्यान दिए बिना ही कहा।‘‘सुना है मनुष्य बड़ा कृतज्ञ प्राणी है, तो तुम्हारी सेवा के बदले कृतज्ञता से तुम्हारा भंडार तो भर देता होगा?’’ तोते ने सर खुजलाते हुए पूछा।
 
‘‘तुम कहना क्या चाहते हो ‘मिट्ठू’? ’’ पेड़ को तोते का इस तरह मजाक उड़ाना पसंद नहीं आया। उसने भी तपाक से तोते को ‘मिट्ठू’ कह कर अपना कलेजा शांत किया।
 
‘‘लगता है लोगों को शीतलता देते-देते तुम बड़े चिड़चिड़े हो गए हो यार। मैं तो मजाक कर रहा था।’’ तोते को इस प्रकार से पेड़ द्वारा चिड़ना अजीब लगा। उसने सोचा चलो छोड़ो, कहीं ज्यादा चिड़ जाएगा तो अपनी डाल हिलाकर मुझे ही भगा देगा।
 
पेड़ ने भी स्वयं को संभाला। अक्सर आस-पास के पेड़ों की बिरादरी में इस पेड़ की बड़ी इज्जत थी। सभी पक्षी उसके धैर्य की प्रशंसा करते थे। यहां तक कि सभी वृक्षों ने उसे अपना नेता भी चुन लिया था।
 
‘‘ऐसी बात नही हैं प्यारे’’ पेड़ ने शांत होकर लंबी सांस लेते हुए कहा, ‘‘लोग यहां आकर अपनी सारी मुसीबतें भूल जाते हैं। शांति से बैठकर कुछ पल बिताते हैं। खुश हो जाते हैं। यही मेरे लिए पर्याप्त है।’’ पेड़ ने कहा कि इतने में गांव के दो बुजुर्ग उसके नीचे चबूतरे पर आकर बैठ गए।
 
पेड़ एवं तोता दोनों ही चुप हो गए। पेड़ अपना पूरा ध्यान उन्हें अच्छी से अच्छी छाया देने में लगाने लगा। अपनी डालों से उन तक शीतल हवा पहुंचाने लगा। पेड़ भुल गया था कि तोता अभी भी बैठा हुआ है।
 
तोते ने सोचा ‘आखिर ये इतनी शिद्दत से मुसाफिरों की सेवा करता है, भला आज मैं भी रूककर देखूं कि लोग क्या प्रतिक्रिया करते हैं।’नीचे बैठे दोनों बुजुर्ग आपस में बातें करने लगे -‘‘आजकल मौसम का कोई ठिकाना नहीं। कब सर्दी, कब वर्षा, कब गर्मी पड़ने लग जाती है?’’एक बुजुर्ग ने अपनी जेब से पुरानी आधी जली हुई बीड़ी निकालते हुए कहा।
 
‘‘हां ! हमारे जमाने में क्या दिन हुआ करते थे। जब सर्दी पड़ती थी तो सिर्फ सर्दी ही पड़ती थी। अब देखो ना, कल ही बारिश आई थी और आज कितनी तेज गर्मी पड़ रही है।’’ दूसरे बुजुर्ग ने अपनी जेब से माचिस निकाल कर पहले की तरफ कर दी।
 
‘‘पेड़ भी अब वैसी छाया कहां देते? अब इसे ही देख लो कितना मोटा हो गया है परंतु ठीक से छाया तक नहीं दे रहा।’’ पहले वाले बुजुर्ग ने बीड़ी सुलगाकर धुआं  पेड़ की तरफ छोड़ते हुए कहा।
 
दोनों की बातें सुन पेड़ ने अपने पत्ते जल्दी-जल्दी हिलाने शुरू कर दिए।‘‘हां !’’ दूसरा बुजुर्ग उस पेड़ की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘देखो तो सही कितना घना है फिर भी ठीक से छाया नहीं दे रहा। ऐसे पेड़ तो धरती पर बोझ हैं। ’’
‘‘इसको तो काटकर लकड़ी जलाने के काम में लेना चाहिए, कितना मोटा पेड़ है?’’ दूसरे ने पेड़ के तने की तरफ देखते हुए कहा। पेड़ ने जैसे ही यह बात सुनी उसके दिल की धड़कन बढ़ गई, किन्तु उसने हवा करना जारी रखा।
 
दोनों बुजुर्ग कुछ देर तक उस पेड़ की बुराई करते रहे। तोता उनकी बातें ध्यान से सुनता जा रहा था। फिर कुछ देर बाद दोनों वहां से उठे। उनमें से एक बुजुर्ग उस पेड़ की डाल की तरफ बढ़ा जो काफी नीचे तक लटकी हुई थी। तोते को लगा अब शायद यह बुजुर्ग जाते-जाते इस पेड़ को कुछ तो धन्यवाद दे सकता है, किन्तु दूसरे ही पल उसने देखा तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई।
 
उस बुजुर्ग ने पेड़ की वह टहनी यह कहते हुए मोड़कर तोड़ दी कि ‘‘मेरी बकरियों को खिलाने के काम आएगी।’’कुछ ही देर में दोनों बुजुर्ग वहां से आगे निकल गए। पेड़ उनकी बातें सुनकर थोड़ा उदास हो गया किन्तु अभी तक धैर्य बनाए रखा। उसे अभी भी नहीं पता था कि तोता चुपके से यह सब सुन रहा था।
 
तभी अचानक एक पुरूष व एक महिला मुसाफि‍र जो दिखने में पति-पत्नी लग रहे थे, उस पेड़ के नीचे आकर बैठे। महिला बोली - ‘‘आपकी मां को समझा देना मुझसे ताने में बातें नही करे !’’ महिला की आवाज थोड़ी तेज थी, ‘‘मैं जब से ब्याह के आई हूं, तब से महारानी साहिबा के बड़े ठाठ हैं। बना बनाया खा-खाकर इस पेड़ की तरह मोटी होती जा रही है। ऊपर से ताने मारना नही छोड़ती।’’ बोलते हुए औरत की सांसे फुल गई ।
 
‘‘तुम तो शांत हो जाओ शांता की मां । तुम क्यों इस पेड़ की तरह अकडू बन रही हो? घर-परिवार में छोटी-बड़ी बातें होती रहती हैं।’’ आदमी ने पत्नी की बातों का रटा-रटाया जवाब देते हुए पेड़की तरफ देखा।
 
उसे एक आम नीचे लटकता हुआ दिखाई दिया। उसने खड़े होकर उस डाल को पकड़ा जिस पर आम लटक रहा था। जोर लगाने से आम समेत पूरी डाल टुट गई परंतु आदमी नीचे गिर पड़ा।उसकी इस हरकत को देखकर औरत बोली - ‘‘कितने बड़े हो गए हो पप्पू के पापा, पर अभी तक अकल नही आई। डाली टुटी तो कोई बात नहीं, पर अपने हाथ-पैर तोड़ देते तो।’’
 
आदमी ने गिरा आम उठाते हुए विजयी मुस्कान में कहा, ‘‘अरे तुम तो पगला गई हो। किसी जमाने में हमने पत्थर के एक निशाने से इसी पेड़ से कई आम तोड़े थे, किन्तु अब इस पेड़ में वह बात नहीं रही।’’
 
पेड़ निरंतर उनकी बातें सुनते हुए अपने पत्तों से हवा करते जा रहा था। बगल में बैठा तोता यह दृश्य चुपचाप देख रहा था। उसने स्वयं को छुपाए रखा। क्योंकि अगर पेड़ को पता चल जाए कि तोता यह सब सुन रहा है तो पेड़ कब का तोते को उड़ा दे।
 
कुछ देर पति-पत्नी लड़ते रहे, फिर उठकर वहां से चल दिए। उनके जाते ही पीछे से कुछ लड़कों का झुंड उस पेड़ की तरफ आया। सभी ने आस-पास से पत्थर उठाए एवं चुन-चुन कर पेड़ पर लगे आम के फलों पर प्रहार करना शुरू किया। एक पत्थर का किनारा तोते को छूकर निकला। तोते के ‘तोते उड़ गए’ किंतु आज उसने ठान रखी थी कि वह अंत तक डटा रहेगा।
 
लड़कों के चले जाने के पश्चात् एक चरवाहा अपनी भेड़ को चराते हुए आया। कुछ देर तक पेड़ के नीचे बैठा। जब देखा की उसकी सारी भेड़ें वही आस-पास पेड़ की छाया में सुस्ता रही हैं तो चरवाहा भी सो गया। पेड़ की शीतल छाया में उसको झपकी लग गई। तोते ने सोचा यह जरूर पेड़ का धन्यवाद देगा, इसी प्रतीक्षा में छुपकर बैठा रहा।
 
जब चरवाहे की आंखें खुली तो उसने स्वयं को तरोताजा महसूस किया। आस पास चरती अपनी भेड़ों को देखा फिर आम के पेड़ की तरफ देखा। तोते ने सोचा बस अब शुक्रिया अदा करने ही वाला है तभी अचानक चरवाहा उठ खड़ा हुआ।
 
उसने बांस की लकड़ी हाथ में ली जिसके ऊपरी छोर पर एक दराती बंधी हुई थी। लकड़ी से पेड़ के नीचे वाली टहनियों को काटने लगा एवं जोर-जोर से आवाज़ देकर अपनी भेड़ों को पास बुलाने लगा।
 
तोते से यह दृश्य देखा नहीं गया। उसने सोचा चलो जाते-जाते ही सही चरवाहा पेड़ को कृतज्ञता तो अर्पित करेगा। जब चरवाहा रवाना हुआ तो एक बार फिर पेड़ की तरफ देखा। अब तोता खुश था क्योंकि उसे पूरा यकीन हो चला था कि यह इंसान धन्यवाद जरूर देगा।
 
चरवाहे ने एक पत्थर उठाया एवं जोर से आम पर निशाना लगाया। आम नीचे गिर गया, उसने उठाया एवं मुंह लगाकर चखा, तो वह अभी भी खट्टा था। चरवाहे ने गुस्से में आकर वही आम उसी पेड़ पर दे मारा एवं आगे बढ़ गया।
 
तोते ने देखा पेड़ की आंखों से आंसू बह रहे थे पर वह अभी भी चरवाहे को हवा कर रहा था। तोते से भी अब रहा नहीं गया, वह भी रो पड़ा। इंसान की इंसानियत को देखकर।