शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By Author राकेशधर द्विवेदी

हिन्दी कविता : किसान

हिन्दी कविता : किसान - Poem on Farmers in Hindi
देखता हूं नित दिन मैं एक इंसान को
धूप में जलता हुआ शिशिर में पिसता हुआ
वस्त्र है फटे हुए पांव हैं जले हुए
पेट-पीठ एक है बिना हेल्थ जोन गए हुए।
 

 
 
 
खड़ी फसल जल रही
सूद-ब्याज बढ़ रही
पुत्र प्यासा रो रहा दूध के इंतजार में
 
फटी बिवाई कह रही 
दीनता की कहानी
शब्दों के अभाव में
जो रह गई बेजुबानी
 
जीवन निस्सार संगीत है
भविष्य भी भयभीत है
रो रहा वर्तमान है
सामने अंधकार है
 
कष्ट में वह पूछता है
कर्मफल कब पाऊंगा?
या यूं ही संघर्ष करता
परलोक सिधार जाऊंगा।