शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By WD

आओ, धरती को सहला दे प्यार से (नेपाल त्रासदी)

आओ, धरती को सहला दे प्यार से (नेपाल त्रासदी) - Poem on Nepal tragedy
डॉ. गरिमा संजय दुबे 
 
उनकी मुस्कुराहटों में खिलती थी जिंदगी 
बेखबर था खतरों की आहटों से बचपन 
क्योंकि साथ थे मां-बाप-भाई-बहन 
इंसान को शायद और कुछ चाहिए भी नहीं 
पर बड़ा ली है जरूरतें,
कर लिए हैं खड़े इच्छाओं के पहाड़ ,
खोद डाली है महत्वाकांक्षाओं की खदानें,
जिनका बोझ धरती नहीं सह पाती 
बदलती है करवट और हल्का कर देती है 
अपने सीने का बोझ ,
पर हल्का कहां होता है बोझ?

वह आ बैठता है मासूमों की आंखों में 
आंसू, पीड़ा और खौफ बनकर ,
जो किस करवट से हल्का होगा 
नहीं मालूम, 
कहते हैं धरती बैचैन है 
बदलती रहेगी करवटें,
बढ़ता रहेगा मासूम आंखों में खौफ 
आओ धरती को सहला दे प्यार से,
 ताकि कम हो सके उसकी बैचेनी,
लगा दे उसके घावों पर भी मरहम,
कर दे उसका बोझ कुछ हल्का
ताकि हमारे सीने न हो फिर से भारी...