कविता : जगमगाता दीया
ऊंची अट्टालिकाएं, रंग-बिरंगी छटा
रौशनी की बिखेरती
करती त्यौहार को अमीर
निहारते लोग
ऊंची अट्टालिकाओं को
देखकर बुनते हैं सपने
रंग बिरंगी छटा बिखेरने के
दूसरी तरफ मकान में
जगमगाता दीया
मानों दिखावे की दुनिया में
हार-सा गया हो
मगर टिमटिमाने का
हौंसला नहीं खोया
पास यूं भी पलट जाता
पानी आने और रौशनी चले जाने से
ऊंची अट्टालिकाएं
पर लगा हो जैसे ग्रहण
निहारने वाले लोग अब
उस मकान को निहार रहे
जिसमें जल रहा दीपक
ये बता रहा था पतंगे को,
त्योहारों में भले ही पैसा
दिखावे में अपनी भूमिका निभाता हो
परंतु गरीबी में मन में संतोष का उजाला
अंधेरे के ग्रहण को दूरकर
झोली खुशियों की भर जाता
मुझे ये तो खुशी है कि
कम से कम तुम तो
मेहमान बनकर
मेरे घर आए
त्यौहार की शुभकामना देने