कविता : प्रेम की पाती
संजय वर्मा "दृष्टि "
प्रेम की पाती लेकर आता डाकिया
पुकारता नाम मेरा
हिरनी-सी चपलता लिए
कर जाती चौखट को पार
लगा लेती दिल से प्रेम की पाती ।
छुपकर पढ़ती ढाई अक्षर प्रेम को
जोड़ लेती ख्वाबों से रिश्ते
भर लेती मन में हौंसला,जमाने से नहीं डर का
वो सामने आते तो, होंठ थरथराने लगते
तब ऐसा लगता
मानों शब्दों पर लगा हो जैसे कर्फ्यू
बस आंखे ही कर जाती प्रेम का इजहार ।
जब नींद खुली तो लगा जैसे
एक ख्वाब देखा था प्रेम का
अब कोई नहीं लाता प्रेम की पाती