होली गीत : होली की 2 कविताएं...
फागुन : रंग-गुलाल भरी पिचकारी
फागुन लाग अंग फड़कत है,
खेलन आयो होली रे।
रंग-गुलाल भरी पिचकारी,
भिगा दियो मेरी चोली रे।
पकड़ कलाई मेरी मरोड़ी,
रगड़ दियो दोनों गाल।
रंग-बिरंगी हो गई मैं तो,
कियो बुरा ये हाल।
सखी-सहेली मिल करके अब,
करती जोरा-जोरी रे।
रंग-गुलाल भरी पिचकारी,
भिगा दियो मेरी चोली रे।
उधर लड़कों की टोली आई,
हो गई उनसे भेंट।
इधर-उधर सखिया सब भागी,
एक ने लिया चहेट।
पाय अकेले कहन लगा कि,
रगडूंगा आज हे गोरी रे।
रंग-गुलाल भरी पिचकारी,
भिगा दियो मेरी चोली रे।
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मोहे मत मारो ननद पिचकारी...
मोहे मत मारो ननद पिचकारी
देखात नहीं तुमका है पांव भारी
सर्दी लग जाए बुखार आय जाए
पकड़ लेगी मोहे तगड़ी बीमारी।
पेट में लल्ला डोल रहा है
बुआ-बुआ तोहे बोल रहा है
जल्दी से आएगी लल्ले की बारी
सर्दी लग जाए बुखार आय जाए
पकड़ लेगी मोहे तगड़ी बीमारी।
जाय दुवारे उधम मचाओ
मान जाओ रानी हमें न सताओ
जवानी में ज्यादा न काटो तरकारी
सर्दी लग जाए बुखार आय जाए
पकड़ लेगी मोहे तगड़ी बीमारी।
तुम्हरे भइया से जल्दी बोलूंगी
तुम्हरा रिश्ता जल्दी जोडूंगी
सजाओगी ससुरे में जाय फुलवारी
सर्दी लग जाए बुखार आय जाए
पकड़ लेगी मोहे तगड़ी बीमारी।