शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By WD

कविता : तीनों बंदरों से बोलो

कविता : तीनों बंदरों से बोलो - Hindi Poetry
आलोक सिंह
तीनों बंदरों से बोलो की वह अब बदल जाएं भी
वक़्त गया है बदल बोलो सुधर जाएं भी
अब नहीं होगा कुछ भी अगर ऐसे ही शांत रहे
गांधी तू भी उठा लाठी तो मंजर बदल जाएं भी

 
बुरा ना देखो मगर देखो तो बोलो भी
बुरा ना सुनो अगर सुनो तो बोलो भी
बुरा ना कहो,अगर कोई कहे तो रोको भी
एक गाल पे चपत लगाए तो पूछो भी
कब तलक शराफत का मुखौटा पहनोगे भी
देख लो तुम भी तो, शरमाओगे भी
हाय ये क्या हो रहा, सोच के घबराओगे भी
था कौन सही जिसने मारा तुम्हें या तुम खुद
हो रही दोनों पर राजनीति ,बताओ तुम भी..