हिन्दी कविता : दर्द
पेन का ढक्कन यदि गुम हो जाए
मन बेचैन हो जाता है
आमदनी कई गुना हो
और सोच कि दूसरा खरीद लेंगे
मगर अपनापन तो अपनापन ही रहता
कितने शब्द तराशे
कितना ही लेखा-जोखा लिखा
ताउम्र तक पेन ने
संग तुम्हारे दुःख सुखों के संग
वो तुम्हारा मर्म जानती
मगर कह नहीं पाती
वो विचारों से करती रहती संघर्ष
जैसे स्त्री ससुराल की उत्पीड़नता को
कभी नहीं बताती अपने बाबुल को
झूठी हंसी लिए खुश रहती
गुम होने का तो दर्द पूछा जा सकता
मगर, डूबने कादर्द किस्से छिपाए
डूबने /गुम हो जाने का दर्द सामान होता
मगर गुमी हुई चीजें अक्सर मिल जाती
डूबी हुई की केवल मिलती है यादें
और मिलते वेदना के स्वर
जो बाटे जाते हैं एक कहानी की तरह
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी