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मिल-जुलकर रहने की सीख देती कविता : यह सबको समझातीं नदियां...

मिल-जुलकर रहने की सीख देती कविता : यह सबको समझातीं नदियां... - Best River Poems
बहुत दूर से आतीं नदियां,
बहुत दूर तक जातीं नदियां। 
थक जातीं जब चलते-चलते, 
सागर में खो जातीं नदियां। 


 
गड्ढे, घाटी, पर्वत, जंगल,
सबका साथ निभातीं नदियां। 
मिल-जुलकर रहना आपस में,
यह सबको समझातीं नदियां। 
 
खेत-खेत को पानी देतीं, 
तट की प्यास बुझातीं नदियां। 
फसलों को हर्षा-हर्षाकर, 
हंसती हैं, मुस्कातीं नदियां। 
 
घाट कछारों और पठारों,
सबका मन बहलातीं नदियां। 
सीढ़ी पर हंसकर टकरातीं, 
बलखातीं, इठलातीं नदियां। 
 
गर्मी में जब तपता सूरज, 
बन बादल उड़ जातीं नदियां। 
पानी बरसे जब भी झम-झम, 
रौद्र रूप धर आतीं नदियां। 
 
जब आता है क्रोध कभी तो,
महाकाल बन जातीं नदियां। 
जंगल, पशु, इंसान घरों को,
बहा-बहा ले जातीं नदियां। 
 
सूखे में पर सूख-सूखकर, 
खुद कांटा बन जातीं नदियां। 
पर्यावरण बचाना होगा, 
चीख-चीख चिल्लातीं नदियां।