औरत होने के लिए...!
-माहीमीत
कितने पशेमान कपड़े पहने है, उस आसमानी लड़की ने।जोफुदक रही है आसमान की छाती पेझूम रही हैं मेहताब के सूफ़ी गीतो सेखेल रही हैं आकाशगंगा के अनगिनत खिलौनों से।एक दिन जिसे जमीं की कूचा आकेबनना है कल की संघर्षशील औरतपहनना है हया के मैले कुचले कपड़े खेलना है नंगी लाशों के खिलौनों सेहोना है हवस के दरिंदों के हवाले जीना है घूट घूट के मरना है सहम सहम के।आखिर क्यूं समझ नहीं पाती एक औरत दुनिया के पाशविक जादु कोक्यूं पढ़ नहीं पाती है, मिरात के पीछे छिपी संगीन तस्वीरों को क्यूं बन जाती है, एक औरत संघर्ष की प्रतिमूर्तिक्यूं ताउम्र जुझती रहती हैअपने अस्तित्व के लिए औरतऔरत क्यूं अपने आंचल की आखरी खुशी भी बांट देती है असंख्य लोगों कोऔर क्यूं औरत एक दिन हार के लौट जाती है अपनी उसी अफ़लाक दुनिया में।कितनी असीम ज़हमत सहती है औरतझोंक देती है कई सदियांनाप देती है अनंत आसमानों कोतय करती है फ़लक से जमीं की दूरी।हाय! कितनी दूरी नापती है, कितना संघर्ष करती है एक औरत औरत होने के लिए।