बुधवार, 25 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. साहित्य
  3. आलेख
  4. Jinhe Jurm e Ishq Pe Naz Tha
Written By

पंकज सुबीर के नए उपन्यास 'जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था' का विमोचन

पंकज सुबीर के नए उपन्यास 'जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था' का विमोचन - Jinhe Jurm e Ishq Pe Naz Tha
'एक रात की कहानी में सभ्यता समीक्षा है ये उपन्यास'- डॉ. प्रज्ञा
 
शिवना प्रकाशन द्वारा आयोजित एक गरिमामय साहित्य समारोह में सुप्रसिद्ध कथाकार पंकज सुबीर के तीसरे उपन्यास 'जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था' का विमोचन किया गया। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कथाकार, उपन्यासकार तथा नाट्य आलोचक डॉ. प्रज्ञा विशेष रूप से उपस्थित थीं।
 
 
श्री मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के सभागार में आयोजित इस समारोह में अतिथियों द्वारा पंकज सुबीर के नए उपन्यास का विमोचन किया गया। इस अवसर पर वामा साहित्य मंच, इंदौर की ओर से पंकज सुबीर को शॉल, श्रीफल तथा सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। मंच की अध्यक्ष पद्मा राजेन्द्र, सचिव ज्योति जैन, गरिमा संजय दुबे, किसलय पंचोली तथा सदस्याओं द्वारा पंकज सुबीर को सम्मानित किया गया।
 
 
स्वागत भाषण देते हुए कहानीकार व उपन्यासकार ज्योति जैन ने कहा कि पंकज सुबीर द्वारा अपने नए उपन्यास के विमोचन के लिए इंदौर का चयन करना हम सबके लिए प्रसन्नता का विषय है, क्योंकि उनका इंदौर शहर से लगाव रहा है और यहां के साहित्यिक कार्यक्रमों में भी वे लगातार आते रहे हैं। इस उपन्यास का इंदौर में विमोचन होना असल में हमारे ही एक लेखक की पुस्तक का हमारे शहर में विमोचन होना है।

 
इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. प्रज्ञा ने कहा कि नई सदी में जो लेखक सामने आए हैं, उनमें पंकज सुबीर का नाम तथा स्थान विशिष्ट है। वे लगातार लेखन में सक्रिय हैं, उनकी कई कृतियां आ चुकी हैं और पाठकों द्वारा सराही भी जा चुकी हैं।
 
पिछला उपन्यास 'अकाल में उत्सव' किसानों की आत्महत्या पर केंद्रित था, तो यह नया उपन्यास 'जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था' सांप्रदायिकता की चुनौतियों से रू-ब-रू होता दिखाई देता है। इस उपन्यास के बहाने पंकज सुबीर ने उन सारे प्रश्नों की तलाश करने की कोशिश की है जिनसे हमारा समय इन दिनों जूझ रहा है।
 
 
सांप्रदायिकता की चुनौती कोई नया विषय नहीं है, बल्कि यह समूचे विश्व के लिए आज एक बड़ी परेशानी बन चुका है। पंकज सुबीर ने इस उपन्यास में वैश्विक परिदृश्य पर जाकर यह तलाशने की कोशिश की है कि मानव सभ्यता और सांप्रदायिकता- ये दोनों पिछले 5,000 सालों से एक-दूसरे के साथ-साथ चल रहे हैं, इसमें कोई नई बात नहीं है।
 
पंकज सुबीर ने यह उपन्यास बहुत साहस के साथ लिखा है। इस उपन्यास को लेकर किया गया उनका शोध कार्य, उनकी मेहनत इस उपन्यास के हर पन्ने पर दिखाई देती है। उपन्यास को पढ़ते हुए हमें एहसास होता है कि इस एक उपन्यास को लिखने के लिए लेखक ने कितनी किताबें पढ़ी होंगी और उनमें से इस उपन्यास के और सांप्रदायिकता के सूत्र तलाशे होंगे।
 
मैं यह ज़रूर कहना चाहूंगी कि एक पंक्ति में 'यह उपन्यास एक रात में की गई सभ्यता समीक्षा है'। एक रात इसलिए, क्योंकि यह उपन्यास एक रात में घटित होता है। उस एक रात के बहाने लेखक ने मानव सभ्यता के 5,000 सालों के इतिहास की समीक्षा कर डाली है। यह एक ज़रूरी उपन्यास है जिसे हम सबको ज़रूर पढ़ना चाहिए।
 
उपन्यास के लेखक पंकज सुबीर ने अपनी बात कहते हुए कहा कि इस उपन्यास को लिखते समय बहुत सारे प्रश्न मेरे दिमाग़ में थे। सांप्रदायिकता एक ऐसा विषय है जिस पर लिखते समय बहुत सावधानी और सजगता बरतनी होती है। ज़रा-सी असावधानी से सब कुछ नष्ट हो जाने की आशंका बनी रहती है।
 
इस उपन्यास को लिखते समय मेरे दिमाग़ में बहुत सारे पात्र थे, बहुत सारे चरित्र थे। इतिहास में ऐसी बहुत सारी घटनाएं थीं, जिन घटनाओं के सूत्र विश्व की वर्तमान सांप्रदायिक स्थिति से जुड़ते हुए दिखाई देते हैं। मैं उन सबको इस उपन्यास में नहीं ले पाया। फिर भी मुझे लगता है कि मैंने अपनी तरह से थोड़ा प्रयास करने की कोशिश की है, बाकी अब पाठकों को देखना है कि मैं अपने प्रयास में कितना सफल रहा हूं।
 
 
शिवना प्रकाशन के महाप्रबंधक शहरयार अमजद खान ने पधारे हुए सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। अतिथियों को स्मृति चिह्न रेखा पुरोहित तथा किरण पुरोहित ने प्रदान किए। कार्यक्रम का संचालन संजय पटेल ने किया।
 
इस अवसर पर बड़ी संख्या में इंदौर, देवास, सीहोर तथा उज्जैन से पधारे हुए साहित्यकार उपस्थित थे।