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Last Updated : सोमवार, 31 जनवरी 2022 (17:17 IST)

कौन थे दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे, कन्नड़ साहित्य में क्‍या था उनका योगदान

कौन थे दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे, कन्नड़ साहित्य में क्‍या था उनका योगदान - Dattatreya Ramachandra Bendre, Kannad writer, kannad sahitya,
(जन्म- 31 जनवरी, 1896, कर्नाटक, - निधन 26 अक्टूबर, 1981, महाराष्ट्र)
दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे कन्नड़ भाषा के प्रसिद्ध कवि थे। उन्होंने कन्नड़ काव्य को सम्मान दिलवाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। उनका प्रथम कविता संग्रह प्रकाशित होने से पूर्व ही समाज ने उन्हें एक कवि के रूप में अंगीकार कर लिया था।

दत्तात्रेय जी के विशिष्ट योगदान को देखते हुए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ (1958) और ‘पद्मश्री’ (1968) भी प्रदान किया गया था।

दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे का जन्म 31 जनवरी, 1896 को धारवाड़, कर्नाटक में हुआ था। उनके बचपन का अधिकांश समय अभावों में व्यतीत हुआ था। जब वे सिर्फ 12 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। इनके पिता और साथ ही दादा भी संस्कृत साहित्य के ज्ञाता थे। बेंद्रे ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा धारवाड़ में ही अपने चाचा की मदद से प्राप्त की थी। उन्होंने अपनी हाई स्कूल की परीक्षा सन 1913 में पास की।

बेंद्रे ने अपने व्यवसायिक जीवन का प्रारम्भ ‘विक्टोरिया हाई स्कूल’, धारवाड़ से एक अध्यापक के रूप में किया। उन्होंने डीएवी कॉलेज’, शोलापुर में 1944 से 1956 तक एक प्रोफ़ेसर के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद वे धारवाड़ में ‘ऑल इण्डिया रेडियो’ के सलाहकार भी बने।

दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे को उत्तराधिकार में दो संपदाएं मिली थीं- ‘संस्कारिता’ और ‘विद्याप्रेम’। ‘

बालकांड’ शीर्षक कविता में उन्होंने अपने बाल्यकाल के दिनों की कुछ छवियां उकेरी हैं। आस-पास के किसी भी घर में संपन्नता न थी, फिर भी सब ओर एक जीवंतता थी। सभी प्रकृति के हास और रोष के साथ बंधे हुए थे। उसी के ऋतु-रंगों और पर्वों के साथ तालबद्ध थे। सामाजिक या पारिवारिक हर कार्य के साथ गीत जुड़े रहते थे।

भक्त व भिखारी, नर्तकिए, स्वांगी और फेरी वाले तक अपने-अपने गीत लिए आते और इन गीतों की रंगारंग भाषा उनकी लयों की विविधता दत्तात्रेय रामचन्द्र के बाल मन पर छा जाती। 1932 में उनका प्रथम कविता संग्रह प्रकाशित होने से पहले ही समाज ने उन्हें अपने कवि के रूप में अंगीकार कर लिया था।

कन्नड़ भाषा के साथ-साथ अन्य कई भाषाओं के लिए भी अपना योगदान देने वाले दत्तात्रेय रामचन्द्र बेंद्रे का 26 अक्टूबर, 1981 को महाराष्ट्र में निधन हो गया।
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