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Last Updated : शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2022 (12:34 IST)

ठुमरी, ख्‍याल से लेकर अभंग तक, आज तक नहीं हुआ पं भीम सेन जोशी जैसा कोई शास्‍त्रीय संगीत का उस्‍ताद

ठुमरी, ख्‍याल से लेकर अभंग तक, आज तक नहीं हुआ पं भीम सेन जोशी जैसा कोई शास्‍त्रीय संगीत का उस्‍ताद - Bhimsen Joshi, Birth Anniversary, classical singing,
क्‍लासिकल संगीत की जब भी बात होती है सबसे पहले पंडि‍त भीमसेन जोशी का नाम आता है। भजन हो, अभंग हो या कोई शास्‍त्रीय राग।  कर्नाटक संगीत हो या हिंदुस्‍तानी संगीत। भीम सेन जोशी इन विधाओं के उस्‍ताद माने जाते हैं। आज पंडि‍त भीम सेन जोशी का जन्‍मदिन है, आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ दिलचस्‍त बातें।

कर्नाटक के गड़ग में 4 फरवरी 1922 को भीमसेन जोशी का जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम गुरुराज जोशी था, जो कि स्थानीय हाई स्कूल हेडमास्टर और कन्नड़, अंग्रेजी और संस्कृत के विद्वान थे।

भीमसेन जोशी को संगीत विरासत में मिला था, क्‍योंकि उनके परिवार में तकरीबन सभी संगीत से जुड़े रहे हैं। भीमसेन जोशी किराना घराने के शास्त्रीय गायक थे।

उन्होंने महज 19 साल की उम्र से ही गाना शुरू कर दिया था। और तो और वो पूरे सात दशकों तक शास्त्रीय गायन करते रहे। भीमसेन जोशी ने न सिर्फ कर्नाटक को बल्कि पूरे हिंदुस्तान को अपनी गायन शैली से गौरवान्वित किया है।

देश दुनि‍या में संगीत और गायन को लेकर भारत का नाम करने के लिए भीमसेन जोशी को भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा उन्हें पद्म विभूषण, पद्म भूषण और इसके अलावा कई और अवॉर्ड्स से भी सम्मानित किया जा चुका है।

भीमसेन जोशी की गिनती देश-विदेश में लोकप्रिय हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के महान गायकों में गिनती की जाती है। भीमसेन जोशी की संगीत में रुचि बचपन से ही थी। वो किराना घराने के संस्थापक अब्दुल करीम खान से बहुत ही ज्यादा प्रभावित थे।

साल 1932 में वो गुरु की तलाश में अपने घर से निकल गए थे। जिसके बाद अगले दो वर्षों तक वो बीजापुर, पुणे और ग्वालियर में रहे। ग्वालियर में उन्होंने उस्ताद हाफिज अली खान से भी संगीत की शिक्षा ली। अब्दुल करीम खान के शिष्य पंडित रामभाऊ कुंडालकर से उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शुरुआती शिक्षा ली।

साल 1936 में पंडित भीमसेन जोशी एक जाने-माने खयाल गायक थे। उन्हें खयाल के साथ-साथ ठुमरी और भजन में भी महारत हासिल था। भीमसेन जोशी ने दो शादियां की थीं। उनकी पहली पत्नी सुनंदा कट्टी थी, जिनके साथ उनकी शादी साल 1944 में हुई थी। सुनंदा से उन्हें 4 बच्चे हुए, राघवेंद्र, उषा, सुमंगला और आनंद।

1951 में उन्होंने कन्नड़ नाटक ‘भाग्य श्री’ में उनकी सह-कलाकार वत्सला मुधोलकर से शादी कर ली थी। लेकिन उन्होंने अपनी पहली पत्नी को न तो तलाक दिया था और न ही उनसे अलग हुए थे। वत्सला से भी उन्हें 3 बच्चे हुए, जयंत, शुभदा और श्रीनिवास जोशी। समय बीतने के साथ ही उनकी दोनों पत्नियां एक ही साथ रहेने लगीं और दोनों परिवार भी एक हो गए। लेकिन बाद में जब उन्हें लगा कि ये ठीक नहीं है तो उनकी पहली पत्नी अलग हो गई और लिमएवाडी, सदाशिव पेठ, पुणे में किराये के मकान में रहने लगीं।

भीमसेन जोशी ने साल 1941 में महज 19 साल की आयु में स्टेज पर अपनी पहली प्रस्तुति दी थी। उनका पहला एल्बम 20 साल की उम्र में निकला था जिसमें कन्नड़ और हिंदी के कुछ धार्मिक गीत थे।

इसके दो साल के बाद ही वो मुंबई में एक रेडियो कलाकार के तौर पर काम करने लगे थे। पंडित भीमसेन जोशी ने कई फिल्मों के लिए भी गाने गाए जिनमें तानसेन, सुर संगम, बसंत बहार और अनकही शामिल हैं। भीमसेन जोशी ने कई रागों को मिलाकर कलाश्री और ललित भटियार जैसे नए रागों की भी रचना की। 24 जनवरी 2011 को उनका देहांत हो गया। लेकिन आज भी उनका नाम संगीत के इतिहास में बेहद अदब के साथ लिया जाता है।
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