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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 14 अक्टूबर 2024 (12:58 IST)

हिन्दी निबंध : शरद पूर्णिमा

Sharad Purnima Essay : हिन्दी निबंध : शरद पूर्णिमा - sharad purnima essay 2024
sharad purnima: शरद पूर्णिमा हिन्दुओं का एक प्रसिद्ध त्योहार माना गया है। आश्‍विन मास में आने वाली शारदीय नवरात्रि के बाद की इस माह पड़ने वाली पूर्णिमा को ही 'शरद पूर्णिमा' कहा जाता है। यह तिथि दिन भगवान विष्णु, मां लक्ष्मी और चंद्र देव को समर्पित है। इसके अन्य नाम कोजागिरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी हैं। इसके अन्य नाम कोजागिरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी हैं। 
 
शरद पूर्णिमा पर होता है लक्ष्मी पूजन : माता लक्ष्मी का जन्म शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था, ऐसी मान्यता होने के कारण भी देश के कई हिस्सों में शरद पूर्णिमा को लक्ष्मी पूजन तथा कई जगहों पर कोजागौरी लोक्खी/ देवी लक्ष्मी की पूजा की जाती है। नवरात्रि के दिनों में देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना, स्तुति के बाद अगले वर्ष की आर्थिक रूप से संपन्न होने की कामना से शरद पूर्णिमा के दिन सायंकाल में धन की देवी मां लक्ष्मी तथा श्री नारायण की पूजा होती है।

इस दिन  मंदिरों में भी विशेष पूजा-अर्चना होती है। जहां तक पूजन विधि की बात है तो इसमें रंगोली और उल्लू ध्वनि का विशेष स्थान है। इस दिन मां लक्ष्मी को 5 तरह के फल व सब्जियों के साथ नारियल भी अर्पित किया जाता है। पूजा में लक्ष्मी जी की प्रतिमा के अलावा कलश, धूप, दुर्वा, कमल का पुष्प, हर्तकी, कौड़ी, आरी/ छोटा सूपड़ा, धान, सिंदूर तथा नारियल के लड्डू प्रमुख रूप में नैवेद्य के रूप में अर्पित किए जाते हैं। 
 
धार्मिक नजर से शरद पूर्णिमा का महत्व : शरद पूर्णिमा को ही चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से संपूर्ण और पृथ्वी के सबसे पास भी होता है। द्वापर युग में जब भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ, तब माता लक्ष्मी भी राधा रूप में अवतरित हुईं थीं। और शरद पूर्णिमा के दिन ही भगवान श्री कृष्ण और राधा की अद्भुत रासलीला का आरंभ माना जाता है। शरद पूर्णिमा का शैव भक्तों के लिए भी विशेष महत्व है। मान्यतानुसार भगवान शिव और माता पार्वती के बड़े पुत्र कुमार कार्तिकेय का जन्म भी इसी दिन हुआ था। इसी कारण से इसे कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। 
 
शरद पूर्णिमा और खीर का संबंध : शरद पूर्णिमा की रात्रि के बारे में मान्यता है कि आश्विन शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन चंद्रमा से अमृत वर्षा होती है। इस दिन आकाश में चंद्रमा हल्के नीले रंग का दिखाई देता है। कहते हैं कि इस दिन रात में खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखकर सुबह उसका सेवन करने से सभी रोग दूर हो जाते हैं। इस दिन पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में कुंवारी कन्याएं स्नान के पश्चात सूर्य और चंद्रमा की पूजा करती हैं। माना जाता है कि इससे उन्हें योग्य पति की प्राप्त होती है। अनादिकाल से चली आ रही इस प्रथा का निर्वाहन आज भी किया जाता है। आरोग्य और अमृत्व पाने की चाह में एक बार फिर खीर को शरद पूर्णिमा की चंद्र की रौशनी में रखकर प्रसाद के रूप में इसका सेवन किया जाता है।

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