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यशधारा : महिला रचनाकार विशेषांक मील का पत्थर

यशधारा : महिला रचनाकार विशेषांक मील का पत्थर - Book Review
शब्दों से श्रृंगारित भावों की धारा "यशधारा" में महिला रचनाकार की 44 रचनाओं का समावेश कर, यशधारा के संपादक डॉ. दीपेंद्र शर्मा ने इसे महिला रचनाकारों के लिए महिला जगत को दिया जाने वाला विलक्षण सम्मान का प्रतीक बताया है। भोज शोध संस्थान की यह सम्माननीय पहल निसंदेह प्रशंसनीय है। इसी तारतम्य में विशेष संपादकीय अभिव्यक्ति प्रो. रेखा सिंघल ने ठीक कही -
 
"जब किसी किताब का संस्करण महिला रचनाकारों ने रचा हो तो उसका तो कहना ही क्या? क्योंकि नारी तो शब्द भाव और अर्थ की त्रिवेणी है। उसके द्धारा रचे काव्य भाव-विचार की परंपरा एवं संस्कृति झरने सी लगती है। डॉ. अंजुल कंसल कनुप्रिया ने प्रकृति के विभिन्न रंगों का अपनी रचना में बखूबी से शब्द भाव को ढाला है -"आसपास जब से खुले, बसंत के स्कुल /पढ़े प्रीत का पहाड़ा, मौलसिरी के फूल"। श्रीमती ज्योति प्रकाश खत्री - 'जरा हट के तू दुनिया से अलग पहचान पैदा कर/नहीं भूले से भी दिल में मगर अभिमान पैदा कर" हौंसला अफजाई की बात व पहचान बनाने हेतु एक साहस भी गजल के माध्यम से दी गई है। श्रीमति सीमा असीम - "न जाने कौन रही यूं, निशानी छोड़ कर गुजरे /है नदिया सा सफर अपना, न हम गुजरे न हम ठहरे " गजल में प्रेम की कशिश एक अंतर्मन को तलाशता मर्म भाव गजल को बेहतर बनाता है। 
 
श्रीमति शशि पुरवार -"आंख पथराई उदर की/आग जलती है /मंजिलों से बेखबर /बदजात चलती /जिंदगी दम तोड़ती /गुमनाम झाड़ी में" नारी के संघर्ष की व्यथा को बताती जिंदगी की मंजिल वाकई कठिन होती है, जो कि वर्तमान के सच को बयां करती है। अनुभूतियों और दर्द को पेश किया है, जो काबिले तारीफ है। डॉ.चंद्र सावता - "जीना मरना बस रह गया, उसके लिए एक समान /भवन टूटे पर घर न टूटे, एक यही था अरमान "नारी की दशा के विभिन्न पहलुओं पर "वह औरत" में चिंतनीय विचार प्रकट किए। श्रीमति वीणा सिंह -'कौन है जो हवा के झोंके सा आता है /छू के तन को मेरे /एक सिहरन सी छोड़ जाता है" काव्य के इस सौंदर्य - बोध को परखने के लिए पुनीत ह्रदय की आवश्यकता है। श्रीमति श्रीति राशिनकर - 'संतोष की लकीर छा जाती है /पिता के चेहरे पर /बच्चे की पहली सीढ़ी /चढ़ने पर' जीवन के यथार्थ का चित्रण काव्य रचना में बेहतर तरीके से किया, जो मन को छू जाता है और यह मानव जीवन में तकरीबन सभी को प्राप्त होता है यानि संतोष धन। 
 
डॉ. मंजुला आर्य - "जिंदगी आग है, जिंदगी फाग है / जिंदगी साधना है, और है आराधना/बनके जोगन जगत में मीरा सी फिरे" जिंदगी का यही रूप जिंदगी के विभिन्न पहलुओं का दर्शन कराता है व जिंदगी में एक नए रंग भी भरता है। डॉ. वंदना कुशवाह - "छोटा सा सपना "काव्य रचना में पॉलीथिन पर प्रतिबंधित करने की मांग को बेहतर तरीके से रखकर प्रदूूषण मुक्त वातावरण बनाने की पहल की है। सुश्री वाणी दवे - लघुकथा के जरिए सेवानिवृत उपरांत कार्य की महत्ता और व्यक्ति की कार्य शैली के प्रभावी रूप की पहचान की, जो संदेश परक होकर मन को छू जाने वाली लघुकथा बन पड़ी। 
 
श्रीमती देवयानी नायक- सेना के जवानों के प्रति अटूट श्रद्धा व् देश भक्ति की भावना जगाती पंक्तियां" यह राष्ट्र  की सुरक्षा एवं समृद्धि की पहचान /इनसे रोशन है देश इनको पूजता सारा जहान "। श्रीमति रंजना फतेपुरकर - 'महकती हवाएं भी /किसी की छुअन का /अहसास दिला देती है /कभी हौले से कुछ कहती है /कभी खामोशी ओढ़ लेती है "प्रकृति की सुंदरता में दासता के रंग भरती कविता में कशिश की छवि स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। कविता दासतां का सुंदर रूप  प्रतिबिंबि‍त हुआ है। 
 
श्रीमति अनीता मुकाती (आनंद) - " खुश्बू की तरह तेरे पहलू में बिखर जाऊं /एक तेरा ख्याल आए शरमाऊं संवर जाऊं "  ख्यालों का सजीव चित्रण भी करतीं उस की सृजनात्मक सोच की एक कशिश पैदा कर खवाबों को सच करने की अदम्य क्षमता रखती। कवित्री, शायरी में के क्षेत्र में अपनी शसक्त पहचान बनाने वाली और मंच पर टीवी, आकाशवाणी की सक्रिय भूमिका निभाने वाली रचनाकार से सभी भली-भांति परिचित है। 
 
श्रीमति अमृता भावसार- गीत विधा में निपुर्ण रचनाकारा ने 'गीत' रचना में महिलाओं को हक की परिभाषा, वात्सल्य भावना, त्याग के मायने बताकर फैशन में सराबोर नग्नता दिखाई दे, ऐसे वस्त्रों पर अंकुश लगाने पुनीत बात रखी है, जिससे रचना संदेश परक बन गई है। श्रीमती अनीता मंडलोई -"स्वालंबी हूं, न अबला हूं न बेचारी हूं /गर्व है खुद पर कि में भारत की नारी हूं " नारी शक्ति स्त्री ही तो निडरता का साक्षात रूप होती है। बस साहस की बुलंदियों पर हौंसलों का मकसद बरकरार रखना होगा, ताकि सही मायने में सम्मान की अधिकारी बन सके। महिला सशक्तिकरण और भी मजबूत बने इस हेतु महिलाओं की सक्रियता की भूमिका होना चाहिए ताकि समाधान एवं मुश्किलों का सामना करने हेतु वे हर कठिनाइयों का सामना निडर होकर कर सके साथ ही अपने हक की परिभाषा को सही मायने में पा सके। 
 
श्रीमती आभा चौधरी - "देश की सुरक्षा के लिए, दिया तूने बलिदान /रो-रो करके बेटा मेरा, हुआ बुरा हाल "हमारी तिरंगे के प्रति  चेतना और संवेदना को जागृत करती हैं साथ ही बलिदान और आसरा के मतलब भी समझाती है। शहीदों को नमन करती रचना में देश भक्ति के दर्शन कराती है, वहीं वर्तमान हालातों की स्थिति को बयां करती है। श्रीमती सोनल पंजवानी - 'टूटे एहसास ने /जुड़ना सिखाया है मुझे /लम्हों के फिसलने ने /जूझना सिखाया है मुझे/ इसे एहसास ही रहने दो /इस जज्बात को पास ही रहने दो /हर पल तुम्हें महसूस हो/ उस पल को साथ ही रहने दो " में अधूरा एहसास की तस्वीर महसूस के आईने से साफ दिखाई देती है। पढ़ने वालों को यह दर्द दिलों में जरूर जा लगता होगा, साथ ही एहसास भी जीना सिखाता है, प्रमाणित होता है। 
 
श्रीमति  गरिमा मेहता - 'विनम्रता" क्या होती है और आज अधिकतम प्रतिभावान होते हुए भी मनुष्य में न्यूनतम विनम्रता तो होनी ही चाहिए, यह भाव लघुकथा के माध्यम से प्रदान किए जो की हर एक को जीवन में अपनाना ही चाहिए। श्रीमति दुर्गा पाठक - "आप विश्व दॄष्टि /मैं सूक्ष्म चिराग फिर भी मन सोच उठा / मैं सांध्य दीप जल उठा / हे दिनकर आप तनिक विश्राम कर लो "दीप की महिमा को रचना में बेहतर तरीके ढाला है। दीप से जुड़े विचारों को शब्दों शिल्पी की तरह तराश कर उन्होंने रचना में एक आकार निर्मित किया। श्रीमती कोमल वाधवानी ने "प्रेरणा " "बहाना" लघुकथा में एक कटाक्ष किया है- दीदी, गलती मेरी नहीं। सरकार ने कानून ही गलत बनाया है, महिलाओं को नौकरी में आरक्षण, जिसके कारण मेरे समान पुरुष भी बेरोजगार हो गए हैं। "बेरोजगारी की व्यथा पर वर्तमान हालातों का सटीक चित्रण कर निठल्ले शब्द में ऊर्जा का समावेश किया। 
 
श्रीमति कविता विकास -शब्द और अर्थ के मायनों की तुलनात्मक उदाहरणों से काव्य रचना को सरोबार कर समझने की क्षमता की ओर इशारा किया, वहीं बिना अर्थ वाले शब्दों को परे किया। श्रीमती ज्योति जैन - "भाषा "रचना में "मुस्कराहट, प्यार व स्पर्श की भाषा/ क्योंकि भाषा दीवार नहीं /सेतु होती है। " भाषा की दशा और दिशा बिगाड़ने वाले लोगों को इन कविताओं के अर्थों से ज्ञान मिले तो शुद्ध भाषा का रूप प्राप्त होकर नफरतों की दीवार तोड़ी जा सके, यदि भाषा को सेतु बनाया जाकर उस पर अपना स्नेह अर्पित किया जाए। सब को अपनी भाषा प्यारी लगती है, बस एक दूसरे की भाषा को समझने में जाग्रति रूपी पुल पर चलना याद होना चाहिए। बेहतर रचना है। 
 
श्रीमति रूचि सक्सेना -"एक दूसरे के बिना दशा का वर्णन वाकई अधूरा होता है चाहे प्रकृति, मानव, जीव-जंतु का हो। बेहाल जीवन की कल्पना से सृजनता,  विलुप्ति की कगार पर पहुंचती वहीं मिलान सजीवता की वापसी करता है, यही भाव कविता में समावेशित है। श्रीमती सुषमा दुबे -"टेक केयर "रिश्तों में आये बदलाव को बखूबी पेश किया, वहीं नजरअंदाज से टेक केयर में एक पक्षीय की दशा को लघुकथा में रखा।  
  
श्रीमति प्रतिभा श्रीवास्तव - बर्थ दे पार्टी में बच्चों की तोड़ फोड़ की प्रवृत्ति को देखते हुए हिंसक होने की कल्पना की यह अपने-अपने मन की उपज है, जबकि बच्चों की स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है मौज मस्ती करना। बच्चों के उत्साह को हिंसक भविष्य में होने के सपने देखना अनुचित है। श्रीमति बंदना खेड़े - खंडित आस्थाएं मालवी बोली लिए आकांक्षाओं स्मृतियों को संजोती, दादी की कहावतों के सहारे धन और तन को बेहतर तरीके से प्रतिपादित कर खंडित आस्थाएं का संस्मरण वाकई मन को छू गया । श्रीमती मीरा जैन - लघुकथाकार में इनका नाम सर्वोपरि माना जाएगा । लघुकथा का सर "अरे बेटा, तुम दादाजी के अकेलेपन की चिंता बिल्कुल मत करो, इन्हें तो कोई नहीं चाहिए " वृद्धा अवस्था में अकेलेपन क्या होता है व उन्हें साथ न रखने की अग्रिम सोच मन में अश्रु के भाव भर गई। यह ही वर्तमान के हालात हैं जिन्हें गहराई से समझना होगा, ताकि अकेलेपन को दूर कर उन्हें वृद्धा आश्रम भेजे जाने की प्रवृत्तियां जन्म ना ले। 
 
सुश्री मनीषा मन - हर सितम जा जा के डोलती है आंखे /खामोश हो के भी बोलती है आंखे " रचना मन के मर्म को स्पर्श करती हैं। आंखों के विचार, चेतना और संवेदना को जागृत करने की क्षमता रखते है। श्रीमति अलका जैन - उधारी पर गहरा कटाक्ष किया। सर पर उधारी का कर्ज और शोक इस तरह पुरे किया जाना यानि घर बार बेच तीर्थ करना कहावत की स्पष्ट झलक दिखलाई पड़ती है। श्रीमती विनीता सिह चौहान - "कुछ करने का दृढ़ निश्चय हो/मन में ऊर्जा अतिशय हो /काम ऐसा कर जाओ /जग में तुम्हारा एक परिचय हो / बीते जीवन अनुशासन में /एक दीप जलन अपने जीवन में " अनुशासन की प्रेरणा प्रदान करने वाली गीत की पक्तियां भावनात्मक शैली दीप को माध्यम बनाकर सुंदर अभिव्यक्ति प्रदान की है। 
 
डॉ. हेमलता चौहान खुश्बू - बरसों तलक जीती रही /पतझड़ की तरह / इस जीवन को अबके बरस तुम आए हो " इंतजार  का प्रतिफल तुम्हारे आने से मुकद्दर भी बदल देता है कविता का सार है। श्रीमति प्रतिभा शिंदे - नन्हा बीज काव्य रचना में बीज से वृक्ष बनने तक और उसकी उपयोगिता को बड़े ही अच्छे ढंग से दर्शाया  है, वहीं वृक्ष को न काटे जाने संबंधी हिदायतें भी दी हैं, जो की प्रेरणादायी है। श्रीमति ज्योत्स्ना सिंह- भक्ति भाव से परिपूर्ण कविता में गो सेवा और राज धर्म निभाने का संदेश दिया एक नयापन काव्य रचना में झलकता है। 
 
श्रीमति अर्पणा शर्मा - नारी का साकार रूप और महिला दिवस पर महिलाओं का मान समाज में रहे अक्षुण्ण की बात उठाई है जो की सही भी है । श्रीमती आशागंगा शिरढोणकर -"कही यह उस अजन्मी लावारिस छोड़ दी गई- मारने के लिए जिंदा गाड़ दी गई या फिर भाई के सामने सहमी-सहमी, निरीहता से जीने वाली बेटी की आह तो नहीं ?"बेटी की आह क्या होती है। लघुकथा में समझाया है। श्रीमति मंजुला भूतड़ा - "मां सम्मुख न हो फिर भी /होने का आभास ही होता /वही मुझे तो पग -पग पर / जीने का सम्बल देता " मां की दुआ, मां का कहना, मां शब्द को पूजनीय बनाता है वहीं नेक राह पर इंसान को चलना सिखलाता है। 
 
सुश्री साहिबा व्यास- हमारी लाडली बेटी हिंदी में कई रंग भरे हैं, वही साहित्य उपासकों की बेटी बन हिंदी का मान बढ़ाया। भाषा के हित में बेहतर कविता बनी है । 
श्रीमती अनीता सक्सेना - पास में बैठे एक सज्जन बोले बेटा। थैंक्स तो तुम्हें दादाजी को देना चाहिए, यदि उनके पैर पर न गिरता तो, तुम्हारा मोबाईल टूट ही जाता। लड़का शर्मिदा हो गया लेकिन बुजुर्ग दादाजी मुस्कुरा कर बोले, कोई बात नहीं बेटा। चाहे मोबाईल टूटता या मेरा पैर, खर्च तो दोनों में बराबर ही आता न।"  टूटने का खर्च लघुकथा में समझाइश एक हितकारी प्रयोग रहा।
 
श्रीमति विभा जैन- "नारी " सेवा त्याग, ममता की मिठास, रिश्तों की धुरी,मोम की गुड़िया, देवियां, मधुरतम राग आदि नारी में कई गुण हैं, जो सर्वत्र प्राचीन समय से ही पूजनीय रहीं। बस सदा सब के मन में नारी के प्रति सम्मान के भाव सदैव जाग्रत रहे। नारी के पक्ष में बेहतर कविता रची। यशधारा में सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संरचना में रची बसी विकृतियों, समस्याओं और जटिलताओं में स्त्री विमर्श के विभिन्न पहलुओं को पहचान वही नारी शशक्तिकरण की और उनके हक़ की परिभाषा की विभिन्न रचनाओं के जरिए पहचान कराई। निसंदेह सफलताओं की और अग्रसर होगा यही शुभकामनाएं है।
पुस्तक : यशधारा  
प्रकाशक : भोज शोध संस्थान धार 
संपादक : डॉ दीपेंद्र शर्मा 
मूल्य : 50 रूपए                                   
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