शुक्रवार, 19 अप्रैल 2024
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विनोद वार्ता : ना ये केमिस्ट्री होती, ना मैं स्टूडेंट होता

विनोद वार्ता : ना ये केमिस्ट्री होती, ना मैं स्टूडेंट होता - vinod vatra
-धर्मेन्द्र जैन 'विरक्त'

 
ना ये केमिस्ट्री होती, ना मैं स्टूडेंट होता 
ना ये लैबोरेटरी होती, ना ये एक्सीडेंट होता 
कल प्रैक्टिकल में नजर आई एक लड़की
 
सुंदर थी, नाक थी उसकी टेस्ट ट्यूब जैसी 
बातों में उसकी, ग्लूकोज की मिठास थी 
सांसों में एस्टर की खुशबू भी साथ थी 
आंखों से झलकता था कुछ इस तरह उसका प्यार 
बिन पिए ही हो जाता था एल्कोहल का खुमार
 
बैंजीन सा होता था उसकी उपस्थिति का एहसास 
अंधेरे में होता था रेडियम का आभास 
नजरें मिलीं, रिएक्शन हुआ 
कुछ इस तरह प्यार का प्रॉडक्शन हुआ 
लगने लगे उसके घर के चक्कर ऐसे 
न्यूक्लियस के चारों तरफ इलेक्ट्रॉन हों जैसे 
उस दिन हमारे टेस्ट का कन्फर्मेशन हुआ 
जब उसके डैडी से हमारा इंट्रोडक्शन हुआ
 
सुनकर हमारी बात वो ऐसे उछल पड़े 
इग्नीशन ट्यूब में जैसे, सोडियम भड़क उठे 
बोले, होश में आओ, पहचानो अपनी औकात 
आयरन मिल नहीं सकता कभी गोल्ड के साथ 
यह सुनकर टूटा हमारे अरमानों भरा बीकर
 
और हम चुप रहे बेंजल्डिहाइड का कड़वा घूंट पीकर 
अब उसकी यादों के सिवा हमारा काम चलता न था 
और लैब में हमारे दिल के सिवा कुछ जलता न था 
जिंदगी हो गई असंतृप्त हाइड्रोकार्बन की तरह
और हम फिरते हैं आवारा हाइड्रोजन की तरह।