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Written By ND

आतंक ही देश की विकट समस्या

- शरद उपाध्याय

Terror | आतंक ही देश की विकट समस्या
ND

वे हमेशा कुछ न कुछ करते रहते हैं। आखिर देश के जिम्मेदार मंत्री जो ठहरे। और करें भी क्यों न, देश के प्रति उनकी जिम्मेदारी जो बनती है। आजकल मंत्री बनना कितनी परेशानी की बात है। इतने सारे राज्य हैं, ढेरों समस्याएं हैं, कहां-कहां देखें।

अब सब पूछते हैं कि क्या हो रहा है। तो भई हम तो बहुत सोच रहे हैं। चारों ओर निगाहें दौड़ाते हैं। लोग महंगाई को रो रहे हैं। अब वहां भी प्रयास कर रहे हैं। आंकड़ों को दुरुस्त कर रहे हैं। मुद्रास्फीति दर पर कड़ा नियंत्रण रखे हुए हैं।

पर हमने देखा तो हमें यही लगा कि आतंक ही देश की मुख्य समस्या है। आज हर व्यक्ति आतंक में जी रहा है। किसी के पास नौकरी नहीं है तो वह इस आतंक में है कि रोजी-रोटी कैसे चलेगी। जिसके पास नौकरी है, यही सोच रहा है कि यह लगातार कैसे चलेगी। अब हमीं को लो। अब हमारे पास कुर्सी है, सत्ता है, पद है पर फिर भी हम आतंक में हैं। मंत्री पद आज है, कल नहीं रहे। सत्ता में आज हैं, कल नहीं रहें। आतंक की समस्या बड़ी विकट है।

लोग महंगाई का रोना रोते हैं पर भैया महंगाई है तो क्या हुआ, इसके तो ढेरों उपाय हैं। महंगी ही खरीद लो। या कम मात्रा में खरीद लो या फिर बाबा रामदेव की शिक्षाओं पर चलो। कम खाओ या व्रत, उपवासों का सहारा लो। खाओ ही मत। शरीर और आत्मा दोनों का ही उद्धार होगा।

लेकिन आतंक का कोई क्या करे। वह सबसे विकट समस्या है। हमें परम कुर्सीमय सत्ता तक इस आतंक को पहुंचने से रोकना है। हम हमेशा इसी पर चिंतन करते रहते हैं। लोग आरोप लगाते हैं कि हम कश्मीर पर नहीं सोच रहे। नक्सलवादी समस्या हमारे ध्यान में नहीं है। अब इन लोगों को कौन समझाए कि हम स्वयं कितने आतंकित हैं। हमसे ज्यादा तो कोई सोचता ही नहीं है।

ND
अब दिन-रात शोध कर हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि आतंक का कोई रंग होता है। हमने फौरन पकड़ भी लिया कि भगवा रंग ही आतंक के मूल में है। इसी के कारण हम एक बार सत्ता से बाहर रहे थे।

अब हम तो मान बैठे हैं लेकिन हम सभी को मनवाना चाहते हैं कि देखिए आतंक को समझिए। भगवा रंग ही मूल जड़ है। प्राचीनकाल से ही यह रंग संन्यासियों के अधिकार में है। इसीलिए तो हमने बिलकुल ध्यान नहीं दिया। नहीं तो राजनीति में हमारी पार्टी का 'अप्वाइंटमेंट' तो सबसे पुराना है। हम ही ले लेते। क्या हमें कोई रोक सकता था। पर हमने सोचा कि भई संन्यासी लोगों को सत्ता से क्या लेना-देना। इससे तो माइनॉरिटी वालों के वोट भी कटते हैं।

पूरा गणित करके ही हमने इसे नहीं लिया और पीछे से भाई लोगों ने इस पर कब्जा जमा लिया और सत्ता की दावेदारी ठोंक दी। अब इसे लेकर कोई सत्तामयी दर्शन का पाठ पढ़ाए तो हमें बर्दाश्त नहीं होता।