रेडियो : ट्यूनिंग प्रॉब्लम
निर्माता : रवि अग्रवाल निर्देशक : ईशान त्रिवेदी संगीतकार : हिमेश रेशमिया कलाकार : हिमेश रेशमिया, शहनाज़ ट्रेज़रीवाला, सोनल सहगल, ज़ाकिर हुसैन, राजेश खट्टर1
घंटा 50 मिनटरेटिंग : 2/5‘रेडियो’ का सबसे बड़ा माइनस पाइंट अभिनेता हिमेश रेशमिया हैं। गर्लफ्रेंड से वे रोमांस कर रहे हों या गाना गा रहे हों या फिर कॉमेडी कर रहे हों, सदा उनका चेहरा एक सा रहता है और वो भी उदासी से भरा। चेहरे पर उनके बारह बजे रहते हैं। पाँच मिनट के म्यूजिक वीडियो में तो आप उन्हें सह सकते हैं, लेकिन पूरी फिल्म में हिमेश का यह चेहरा झेल पाना मुश्किल हो जाता है।‘रेडियो’ को मॉडर्न और युथफूल लुक दिया गया है और इसे फेसबुक, ऑरकुट, ट्विटर पर चिपकी रहने वाली पीढ़ी को ध्यान में रखकर बनाया गया है, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह जनरेशन अभिनेता के रूप में हिमेश को पसंद करती है? कहानी है विवान (हिमेश रेशमिया) नामक आरजे की, जो रेडियो के जरिये लोगों की निजी समस्याओं के हल बताता है, लेकिन खुद के जीवन में उलझा हुआ है। पत्नी पूजा (सोनल सहगल) से उसका तलाक हो गया है क्योंकि दोनों का मानना है कि वे अच्छे दोस्त बन सकते हैं, लेकिन पति-पत्नी नहीं। जिस दिन तलाक होता है उसी शाम को विवान की मुलाकात शनाया (शहनाज ट्रेजरीवाला) होती है। कुछ दिनों में तकरार दोस्ती में बदल जाती है। विवान के शो की रेटिंग गिरने लगती है और अपने शो को बचाने के लिए विवान, शनाया को ऐसी मिस्ट्री गर्ल बनाता है जो रेडियो के जरिये उसे प्यार करती है। शनाया सचमुच विवान को चाहने लगती है। विवान का भी ऐसा ही हाल है, लेकिन पूजा के प्रति भी उसके दिल में सॉफ्ट कॉर्नर है, जो उसकी जिंदगी में लौट आई है। कन्फ्यूज विवान आखिर में इस निर्णय पर पहुँचता है कि वो वास्तव में शनाया को प्यार करता है। इस सरल कहानी को निर्देशक ईशान त्रिवेदी ने कॉम्प्लिकेटेड तरीके से पेश किया है। उन्होंने फिल्म को किताब की तरह 15 अध्यायों में बाँट दिया है और हर अध्याय का नाम दिया है। उन्होंने यह तरीका फिल्म की खामियों (कमजोर कहानी और हिमेश का अभिनय) को छिपाने के लिए अपनाया है। ऐसा लगता है कि उन्होंने ढेर सारे टुकड़ों को जोड़ दिया जो निश्चित क्रम में नहीं हैं। यह प्रस्तुतिकरण प्रयोगात्मक और अच्छा है, लेकिन ज्ररूरी नहीं है कि सभी को पसंद आए। हिमेश रेशमिया का संगीत बेहतरीन है। मन का रेडियो, तेरी मेरी दोस्ती, जिंदगी जैसे एक रेडियो जैसे कुछ गीत मधुर हैं, लेकिन फिल्म में इन गीतों को ज्यादा फुटेज नहीं दिया गया है, जिससे इस हिट संगीत के साथ न्याय नहीं हो पाया है। अभिनय में ज्यादातर कलाकारों ने निराश किया है। सोनल सहगल ने पूरी कोशिश की लेकिन बात नहीं बन पाई। परेश रावल ने बेहूदा चुटकलों से उबाया है। ज़ाकिर हुसैन ने ओवर एक्टिंग की है। शहनाज ट्रेजरीवाला का अभिनय ठीक कहा जा सकता है। फिल्म की हर फ्रेम को खूबसूरत बनाया गया है और आर्ट डॉयरेक्टर ने इसके लिए खासी मेहनत की है। संपादन में कई प्रयोग किए गए हैं और हर सीन में कई कट हैं। कुल मिलाकर यह ‘रेडियो’ फाइन ट्यून नहीं हो पाया है।