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वैष्णो देवी : धार्मिक नहीं, आस्था की यात्रा

Vaishno Devi | वैष्णो देवी : धार्मिक नहीं, आस्था की यात्रा
यह कोई धार्मिक नहीं बल्कि अविचल, स्थिर आस्था की यात्रा है जिसमें लोग मंदिरों की नगरी के नाम से प्रसिद्ध जम्मू शहर के उत्तर-पूर्व में 70 किमी की दूरी तय करके पवित्र त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित वैष्णो देवी की पावन गुफा के दर्शनार्थ आते हैं। इस आस्था की यात्रा पर आने वालों के लिए तो यह मानसिक संतुष्टि देने वाला अनुभव होता है।

अगर किसी धर्मस्थल पर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या ही एक पैमाना हो माप का तो उत्तर भारत में श्रद्धालुओं के प्रसिद्ध केंद्र के रूप में वैष्णो देवी की गुफा का नाम सूची में सबसे ऊपर होना चाहिए। वैसे इस बात पर कोई भी विश्वास नहीं करता है कि वर्ष 1950 में जिस पवित्र गुफा के दर्शनार्थ मात्र 3000 श्रद्धालु आया करते थे, इनकी संख्या पिछले साल एक करोड़ के आंकड़े को भी पार कर गई।

सच्चाई का एक पहलू यह भी है कि 30 अगस्त 1986 में राज्य के तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन द्वारा इस तीर्थस्थल को सरकारी एकाधिकार में लेने तथा श्री माता वैष्णो देवी स्थापन बोर्ड की स्थापना के बाद ही आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में व्यापक वृद्धि हुई थी। इसके बाद तो यात्रा का रूप पूरी तरह से ही बदल गया।

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हालांकि इस धर्मस्थल की उत्पत्ति के सही दिन व वर्ष की जानकारी किसी को नहीं है, फिर भी सदियों से यह गुफा लोगों के लिए धार्मिक तथा मानसिक शांति प्राप्ति का एक मुख्य स्थान रही है। आरंभ में तो इसे जम्मू क्षेत्र के कुछ इलाकों में ही लोग जानते थे जबकि अब तो माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विदेशों से भी लोग आते हैं।

त्रिकुटा पहाड़ियों में स्थित इस पवित्र गुफा की कथा जम्मू प्रदेश के एक ऐतिहासिक किसान बाबा जित्तो, जो आप भी माता वैष्णो देवी के एक अनन्य भक्त के रूप में जाने जाते थे, से जुड़ी हुई लोक कथाओं में भी सुनी जाती है।

हमेशा बाबा जित्तो की गाथाओं में इस पवित्र गुफा का संदर्भ दिया जाता है। वैसे इस तीर्थस्थल के साथ अनेक कथाएं जुड़ी हुई हैं। लेकिन असल कथा या इतिहास आज तक मालूम नहीं हो पाया है।

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एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार - वैष्णो देवी जो एक दिव्य लड़की के रूप में जानी जाती थी। जम्मू के पास कोट कंडोली में पैदा हुई थी। जहां एक सदियों पुराना मंदिर आज भी विद्यमान है। इस मंदिर को वहीं पर बनाया गया है, जहां उन्होंने पवित्रता प्राप्त करने से पहले ध्यान लगाया था। लेकिन कुछेक पौराणिक किताबों में ही इस धार्मिक स्थल व इस स्थान का वर्णन मिलता है। जबकि त्रिकुटा पहाड़ियों के लोकगायक माता के बारे में सदियों से गाथाएं गाते रहे हैं।

हालांकि भूगर्भशास्त्री कहते हैं कि वैष्णो देवी की गुफा कई मिलियन वर्ष पुरानी है। उन्होंने यह निष्कर्ष वहां की चट्टानों का अध्ययन करने के उपरांत निकाला है।

जबकि ब्रह्मऋषियों-पुलस्तु तथा धोमया- के कथनानुसार जम्मू (जो पहले जाम्बूलोचन व फिर जम्बू के नाम से जाना जाता था) भारत के धार्मिक स्थानों में से एक महत्वपूर्ण गिना जाता है। पुष्कर,जो प्रथम स्थान पर आता है, के उपरांत इसका क्रम दूसरा है।

वैसे आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि महाकाव्य महाभारत में जम्मू के साथ वैष्णो देवी के नाम की चर्चा कहीं नहीं आती है। मगर महाकाव्य में अन्य स्थानों पर इसका संदर्भ अवश्य आता है। बताया जाता है कि जब कुरूक्षेत्र के जंग के मैदान में पांडवों व कुरूओं की सेनाएं आमने-सामने एक-दूसरे से भिड़ने के लिए आ जुटी थीं, तो तब भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से वैष्णो देवी का ध्यान करके विजय की प्राप्ति के लिए उनका आशीर्वाद लेने के लिए कहा था।

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त्रिकुटा पहाड़ियों, जो वैष्णो देवी के निवास के रूप में जानी जाती हैं, ऋगवेद तथा वेदिक काल के अन्य ग्रंथों में उनका वर्णन अवश्य आता है।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार वैष्णो देवी भगवान विष्णु की परमभक्त एवं उपासक थीं और उन्होंने कौमार्यव्रत धारण कर रखा था। भैरोनाथ तांत्रिक उनकी ओर आकर्षित था और उन्हें प्रत्यक्ष देखने का अभिलाषी था। उसने अपनी तंत्र शक्ति के द्वारा देखा कि देवी माता त्रिकुटा पर्वत की ओर जा रही थी। तांत्रिक ने उनका पीछा किया। बाण गंगा नामक स्थान पर जब माता को प्यास लगी तो उन्होंने धरती को अपने बाण से बेंध दिया और वहां से जल की धारा निकल पड़ी।

जिस स्थान पर उन्होंने विश्राम किया वहीं उनके पदचिह्न आज भी मौजूद बताए जाते हैं। इस स्थान को चरण पादुका कहते हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार इसके उपरांत माता अर्द्धकुंवारी नामक स्थान पर एक गुफा में तपस्या करने हेतु विलीन हो गईं। इसलिए इस गुफा का नाम गर्भजून के नाम से प्रचलित है। जैसे ही तांत्रिक देवी मां को ढूंढते-ढूंढते गुफा तक आया। माता ने अपने त्रिशूल से गुफा को तोड़कर बाहर निकलने का मार्ग बना लिया और दरबार स्थित पवित्र गुफा की ओर अग्रसर हुईं। यहां आकर माता ने महाकाली का रूप धारण कर लिया और अंततोगत्वा अपने त्रिशूल के वार से भैरोनाथ का शीश काट कर इतने वेग से फेंका कि वह दूर पहाड़ पर जा गिरा।

जिस स्थान पर भैरोनाथ का सिर गिरा वहीं आज भैरो का मंदिर स्थित है।
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कथा के अनुसार- गुफा के द्वार पर स्थित चट्टान भैरो का धड़ है जो पाषाण बन गया है। करुणामयी माता ने भैरोनाथ को उसके अंतिम समय में क्षमा प्रदान की और यह वरदान दिया कि आने वाले समय में जो भी भक्त मेरे दर्शनार्थ आएगा, उसकी यात्रा तभी पूरी होगी जब वह वापसी पर भैंरो के भी दर्शन करेगा।

माता की उत्पत्ति की कथाओं का सिलसिला यहीं खत्म नहीं हो जाता है। अभी हाल ही में एक नई कथा सामने आई है जो अन्य कथाओं से बिल्कुल अलग है। इस कथनानुसार- कटड़ा के नजदीक के हंसाली गांव में रहने वाले ब्राह्मण श्रीधर ने इस गुफा की खोज की थी, जिसे माता ने एक बच्ची के रूप में दर्शन देकर उसे इस गुफा के बारे में जानकारी दी थी।

फिर इसके उपरांत माता की गुफा की यात्रा आरंभ हो गई। बताया जाता है कि यह कथा करीब 700 वर्ष पुरानी है। और आज जिनकी मुरादें पूरी होती हैं वे पुनः आते हैं और अन्य को भी साथ में लाते हैं।

करीब आठ सदियों पुरानी इस गुफा के दर्शनों के लिए आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है, बल्कि दिनोंदिन उसमें वृद्धि ही होती जा रही है और आस्था रखने वाले शायद ही आज तक कभी निराश हुए हो ऐसा सुना नहीं।

इस आस्था की यात्रा की असल सच्चाई का एक पहलू यह भी है कि 30 अगस्त 1986 में राज्य के तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन द्वारा इस तीर्थस्थल को सरकारी आधिपत्य में लेने तथा श्री माता वैष्णो देवी स्थापन बोर्ड की स्थापना के बाद ही आने वाले श्रद्धालुओं की संख्यां में वृद्धि हुई थी।
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इसके बाद तो यात्रा का स्वरूप पूरी तरह से ही बदलता गया लेकिन यह बात गौरतलब है कि जिस स्थापन बोर्ड का गठन लोगों तथा आने वाले श्रद्धालुओं को सुविधाएं प्रदान करने के लिए किया गया था। आज वह पैसा कमाने वाली मशीन में बदल गया है, जिसका मकसद सिर्फ धन कमाना है और वह इस बात को नजरअंदाज कर रहा है कि उसकी नीतियों से क्षति कितनी और किसको हो रही है।

श्रद्धालुओं को मुसीबतों का सामना तीर्थस्थल के आधार शिविर कटड़ा से ही करना पड़ता है, जो आज किसी नर्क से कम नहीं है। रोचक बात यह है कि श्रद्धालुओं को दुकानदारों के हाथों तो लूटना ही पड़ता है, जबकि स्थापन बोर्ड भी किसी न किसी ढंग से उनकी चमड़ी अवश्य उतारता है। फिलहाल आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की लूट-खसोट, मानसिक प्रताड़ना और वह सब कुछ जारी है, जिसे अव्यवस्था का नाम दिया जा सकता है।

आधार शिविर कटड़ा को नर्क में बदलने के लिए स्थापन बोर्ड को अधिक जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, क्योंकि जिस कस्बे में प्रतिवर्ष एक करोड़ के करीब लोग आते हो। वहां की देखभाल न किए जाने का परिणाम यह है कि गलियां बाजारों में, तो बाजार गलियों में बदल गए हैं।

इसके अतिरिक्त कटड़ा से लेकर भवन तक के 13 किमी के रास्ते की दशा भी ‘विकास’ की कहानी आप कहती है। जिस पर पड़े गड्डे अपनी दास्तान आप सुनाते हैं। यही नहीं जिस बाणगंगा से कटड़ा के निवासियों को पानी की आपूर्ति की जाती रही है वह अब मल-मूत्र का स्रोत बन गई है, स्थापन बोर्ड की गलतियों के कारण। जबकि वह त्रिकुटा पहाड़ भी आज नंगा व विस्फोटकों के कारण सीने पर जख्म लिए हुए है जिसमें पवित्र गुफा स्थित है।


दुकानदारों द्वारा मनमर्जी के दाम वसूलना शायद परम्परा बन चुकी है, क्योंकि दुकान का ठेका हासिल करने वाला दुकानदार कहता है कि प्रतिवर्ष एक करोड़ रूपया तक किराए के रूप में देने के लिए उसे कहीं न कहीं से पैसा तो पूरा करना ही है।

जबकि आज इस यात्रा पर आने वालों के साथ सबसे बड़ी ठगी प्रसाद के रूप में बेचे जाने वाले नारियल के रूप में की जा रही है क्योंकि सुरक्षा कारणों से प्रसाद तथा अन्य चढ़ावे को गुफा के भीतर ले जाना मना है लेकिन उसकी खरीददारी पर कोई रोक नहीं है। जिससे आम आदमी बोझा उठा कर तो भवन तक ले जाता है परंतु वह प्रसाद को पवित्र गुफा की हवा तक नहीं लगवा पाता है, क्योंकि गुफा के भीतर उसका ले जाना मना है।

प्रसाद के रूप में नारियल को इसलिए बंद किया गया है, क्योंकि इस गुफा को उड़ा देने की धमकी देने वाले पंजाब और कश्मीर के उग्रवादियों ने कई बार गुफा को उड़ा देने का प्रयास किया मगर नाकाम रहे। इन प्रयासों के लिए नारियल बमों का प्रयोग किया गया।

तभी से नारियल को गुफा के भीतर नहीं ले जाने दिया जाता है परंतु स्थापन बोर्ड आज भी जानबूझ कर खतरा मोल ले रहा है, इन नारियलों के रूप में। जिनमें से कोई नारियल बम भी हो सकता है, गुफा के बाहर तक ले जाने की अनुमति देकर।

इस संदर्भ में इसे नहीं भूला जा सकता कि गुफा की रक्षा के लिए किए गए सुरक्षा प्रबंध मात्र दिखावा हैं क्योंकि कहीं कोई मेटल डिटेक्टर कार्य नहीं करता, तो कहीं सुरक्षाकर्मी लापरवाही बरत कर खतरे को न्यौता दे रहे हैं। नतीजतन दिनोंदिन पवित्र गुफा पर प्राकृतिक के साथ-साथ उग्रवादी खतरा मंडराता जा रहा है।

जबकि इसमें अहम बात यह है कि कहीं भी महिला श्रद्धालुओं की जांच नहीं की जाती है, सिवाय गुफा के द्वार पर और कोई भी महिला गुफा के द्वार तक हथगोला ले जाकर फोड़ सकती है।


गुफा की सुरक्षा करने में नाकाम रहने वाला स्थापन बोर्ड दिनोंदिन अपने कृत्यों के कारण विवाद में भी घिरता जा रहा है। कुछ साल पहले उसने सभी नियमों व कानूनों को ताक पर रख कर जो ‘ऑपरेशन शक्ति’ चलाया उसने 39 निजी दुकानों को तो ढहा ही दिया था। साथ ही तीन सौ परिवारों को बेरोजगार भी कर दिया था। जबकि वह इसके बाद कटड़ा से भवन तक सड़क निर्माण कर दो लाख अन्य लोगों को भी बेरोजगार बनाने के प्रयास कर चुका है।

माता आप बुलाती है भक्तों क
समुद्रतल से 5200 फुट की ऊंचाई पर स्थित मां वैष्णो देवी की पवित्र गुफा में अवस्थित- महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली की पिंडियों के नयनविराम और मन को सुकून देने वाले दर्शनों की खातिर इतना तो भक्तगणों को करना ही पड़ेगा कि वे 13 किमी की पैदल चढ़ाई को पार कर भवन तक पहुंचे।

और यह सच भी है कि इन दर्शनों की अभिलाषा लेकर आने वालों के लिए न ही गर्मियों की चिलचिलाती धूप और न ही ठिठुरा देने वाली सर्दी उनकी यात्रा में बाधक होती है। तभी तो जम्मू से 55 किमी दूर व समुद्रतल से 6 हजार फुट की ऊंचाई पर पहुंचते ही भक्तगणों में माता के प्रति अनंत आध्यात्मिक भावनाएं अपने आप उमड़ती हैं।



माता वैष्णो देवी के दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ तो वैसे साल भर लगी रहती है, परंतु कुछ विशेष अवसरों पर यह कई गुणा बढ़ जाती है। चाहे जमाना कितना भी आधुनिक हो जाए लेकिन माता के विषय में यह कहा जाता है कि अपने दर्शनों हेतु माता वैष्णो देवी अपने भक्तों को आप ही बुलाती है और जिसके नसीब में उनके दर्शन नहीं बंधे हों वे गुफा के बाहर से ही बिना दर्शन लौट जाते हैं। इसी कारण जाड़े की ठिठुरती रात हो या गर्मियों की चिलचिलाती धूप, भक्त माता के दर्शनों हेतु स्वयं ही खिंचे चले आते हैं।

वैष्णो देवी की यात्रा के लिए जम्मू तक पहुंचना होता है, जो हवाई, रेल एवं सड़क मार्ग द्वारा देश भर से जुड़ा है। जम्मू से कटड़ा तक की 42 किमी की यात्रा बस, टैक्सी या निजी वाहन द्वारा दो घंटों में पूरी की जा सकती है।

कटड़ा में श्रद्धालुओं के लिए विश्रामस्थल, धर्मशालाएं, होटल इत्यादि की सुविधाएं उपलब्ध हैं। कटड़ा से आगे भवन तक की 13 किमी की धार्मिक यात्रा भक्तों को पैदल ही तय करनी पड़ती है। वृद्ध,विकलांग एवं छोटे बच्चे जो पैदल यात्रा नहीं कर सकते। उनके लिए विशेष सुविधा के रूप में यहां पर खच्चर और पिट्ठू आसानी से मिलते हैं। वैष्णो देवी के लिए कटड़ा से पदयात्रा आरंभ करने से पहले बाणगंगा नदी तक पहुंचना होता है।

बाणगंगा से आगे वैष्णो देवी के मंदिर जाने के लिए दो रास्ते-एक पैदल एवं एक सीढ़ियों का मार्ग है। भक्तगण सुविधानुसार कोई भी मार्ग तय कर सकते हैं। रास्ते में कई स्थानों पर यात्रियों की सुविधा के लिए विश्राम शेड एवं अल्पाहार केंद्र भी बनाए गए हैं।



बाणगंगा से आगे डेढ़ किमी की दूरी पर एक पवित्र स्थान चरण पादुका आता है। चरण पादुका से आगे 4.5 किमी की दूरी पर माता वैष्णो देवी का अर्द्धकुंवारी मंदिर और गर्भजून गुफा स्थित है। यह गर्भजून गुफा भी दर्शनीय एवं आकर्षक है। अर्द्धकुंवारी में भी कई धर्मशालाएं हैं। भक्तगण यहां विश्राम कर सकते हैं। जबकि अर्द्धकुंवारी से आगे पहाड़ी यात्रा एकदम सीधी चढ़ाई के रूप में आरंभ हो जाती है, जो कि हाथी मत्था की चढ़ाई कहलाती है। यह अर्द्धकुंवारी से 2.5 किमी की दूरी तक है।

अर्द्धकुंवारी से आगे साढ़े चार किमी की चढ़ाई चढ़ने के बाद सांझी छत नामक स्थान आता है। इस स्थल पर पहुंचने के बाद माता के भवन तक केवल सीधा एवं उतराई वाला रास्ता है। यहां से चढ़ाई समाप्त हो जाती है। सांझी छत से 2.5 किमी की दूरी एवं समुद्र तल से 5200 फुट की ऊंचाई पर त्रिकुट पर्वत के आंचल में वैष्णो देवी का दरबार स्थित है। यही वह पवित्र स्थल है, जहां श्रद्धालुओं को माता के दर्शन होते हैं। कटड़ा से भवन तक की इस यात्रा में लगभग 6 घंटे का समय लग जाता है।

पवित्र गुफा के अंदर पिंडी दर्शन करने हेतु श्रद्धालुओं को 18 मीटर लंबी गुफा में झुककर प्रवेश करना होता है। इस गुफा में किसी भी प्रकार से सीधा सुविधानुसार खड़ा नहीं हुआ जा सकता है। श्रद्धालुओं के पैरों के नीचे शीतल जल की ठंडी धारा बहती रहती है। गुफा के अंत में महालक्ष्मी, महासरस्वती एवं महाकाली की तीन भव्य पिंडियों के रूप में माता के दर्शन कर श्रद्धालु गदगद हो उठते हैं। और वापसी पर भैरो मंदिर में अवश्य जाते हैं, क्योंकि दंतकथा यही है कि भैरो मंदिर के दर्शन के बिना तीर्थ यात्रा अधूरी है।

वैष्णो देवी कैसे जाएं :-
वायुमार्ग- अमृतसर, चंडीगढ़, दिल्ली, मुंबई, श्रीनगर तथा लेह से निकटतम हवाई अड्डे जम्मू के लिए इंडियन एयरलाइंस, जेट एयरवेज तथा मोदी लुफ्त की सीधी उड़ाने हैं। जम्मू हवाई अड्डा पुराने शहर से 7 किमी दूर स्थित है।

जम्मू शहर में स्कूटर रिक्शा, टैक्सी तथा मैटाडोर-मिनी बसें- सुविधाजनक रूप से उपलब्ध हैं। मिनी बसें सबसे सस्ता साधन हैं और स्कूटर रिक्शा व टैक्सियां मीटर से नहीं चलती अतः दूरी को देखते हुए किराया पहले ही तय कर लें।

रेल मार्ग: देश के सभी प्रमुख शहरों से वैष्णो देवी की यात्रा के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू के लिए रेल सेवा उपलब्ध है। कोलकाता, भोपाल, अहमदाबाद, दिल्ली, मुंबई, पठानकोट, मद्रास तथा कन्याकुमारी के लिए जम्मू से सीधी रेल सेवाएं हैं।

सड़क मार्ग: राष्ट्रीय राजमार्ग से कटरा देश के मुख्य शहरों से जुड़ा हुआ है। कटरा से अन्य प्रमुख शहरों के लिए प्रत्येक मौसम के लिए अच्छी सड़कें उपलब्ध हैं। कटरा के लिए सीधी बस सेवाएं भी उपलब्ध हैं।

प्रमुख शहरों की दूरी :-
अमृतसर -285 किमी
आगरा- 828 किमी
मुंबई- 2006 किमी
कोलकाता -1970 किमी
भोपाल-1379 किमी
चंडीगढ़- 478 किमी
दिल्ली- 625 किमी
जम्मू- 42 किमी
श्रीनगर- 336 किमी
मनाली- 470 किमी
लेह- 770 किमी