...तो नहीं गड़बड़ाएगा 'गणित'
-वृजेन्द्रसिंह झाला
वैदिक गणित विशेषज्ञ रघुवीरसिंह सोलंकी से बातचीत वैदिक गणित के विशेषज्ञ रघुवीरसिंह सोलंकी का मानना है इसके सूत्रों की मदद से बड़े से बड़े सवाल का हल चुटकी बजाते ही किया जा सकता है। कठिन प्रतियोगिता के दौर में इस तकनीक से न सिर्फ समय की बचत होती है बल्कि विद्यार्थी के मन से गणित का डर भी दूर होता है और वह तनावमुक्त बनता है। वे कहते हैं कि वैदिक गणित के विधिवत प्रशिक्षण से विद्यार्थी गणित के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा सकते हैं।राजस्थान समेत देश के अन्य हिस्सों में वैदिक गणित पर 50 से ज्यादा कार्यशालाएं आयोजित कर 6000 से ज्यादा शिक्षकों और विद्यार्थियों को प्रशिक्षित कर चुके सोलंकी कहते हैं कि वैदिक गणित के सूत्रों से सवालों के हल बहुत ही सरलता और शीघ्रता से निकलते हैं। बड़ी संख्याओं का गुणा, भाग, वर्ग, वर्गमूल, घन, घनमूल आदि वैदिक गणित के आसान फार्मूलों से तत्काल संभव है। उनका दावा है कि कुछ विशेष परिस्थितियों में तो यह कंप्यूटर से भी तेज है। वैदिक विधि सरल होने के साथ ही रोचक भी है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय कोटा (राजस्थान) में रिसोर्स पर्सन के रूप में कार्यरत सोलंकी कहते हैं कि वैदिक गणित के सूत्रों से सवालों का हल निकालने से समय व कागज दोनों की बचत होती है। इससे विद्यार्थियों की स्मरणशक्ति भी बढ़ती है, जिससे उनका बौद्धिक विकास होता है और कठिन लगने वाला गणित उनके लिए आसान हो जाता है।उन्होंने कहा कि वर्तमान संदर्भ में इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसे पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। इसके लिए वे राजस्थान में लगातार अभियान चला रहे हैं। इसके लिए पोस्टकार्ड अभियान के साथ ही उन्होंने प्रधानमंत्री और मानव संसाधन विकास मंत्री को पत्र भी लिखे हैं। केन्द्रीय मंत्री डी. पुरंदेश्वरी ने उन्हें वैदिक गणित को पाठ्यक्रम में शामिल करने का आश्वासन दिया है। उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश सरकार हाल ही में वैदिक गणित को पाठ्यक्रम में शामिल करने की घोषणा कर चुकी है।वैदिक गणित के जनक शंकराचार्य : वैदिक गणित को पुनर्जीवित करने का श्रेय गोवर्धन पीठ, पुरी के शंकराचार्य स्वामी भारती कृष्ण तीर्थ को है। उन्होंने करीब आठ वर्ष (1911 से 1919) तक वेदों का गहन अध्ययन किया और वैदिक गणित के गूढ़ रहस्यों को उजागर किया। सोलह सूत्रों के माध्यम से स्वामीजी ने गणित विषय को आसान बनाने में अहम भूमिका निभाई है। आश्चर्यजनक रूप से यह भारतीय विद्या पश्चिमी देशों में भी तेजी से लोकप्रिय हो रही है।
वैदिक गणित के सोलह सूत्र : 1. एकाधिकेन पूर्वेण, 2. निखिलं नवतश्चरमं दशतः, 3. ऊर्ध्वतिर्यग्भ्याम्, 4. परावर्त्य योजयेत्, 5. शून्यं साम्यसमुच्चये, 6. (आनुरूप्ये) शून्यमन्यत्, 7. संकलनव्यवकलनाभ्याम्, 8. पूरणापूरणाभ्याम्, 9. चलनकलनाभ्याम्, 10. यावदूनम्, 11. व्यष्टिसमष्टिः, 12. शेषाण्यंकेन चरमेण, 13. सोपान्त्यद्वयमंत्च्यम्, 14. एकन्यूनेन पूर्वेण, 15. गुणितसमुच्चयः और 16. गुणकसमुच्चयः।
मैजिक ऑफ 9
वैदिक गणित में 10 की घात की संख्या (1, 10, 100, 1000 आदि) महत्वपूर्ण हैं। जब संख्याएं इन आधार संख्याओं के जितना ज्यादा नजदीक हों तो गणना करना उतना ही आसान होता है। जब दो संख्याओं में से एक संख्या केवल अंक 9 से ही बनी हो (जैसे 9, 99, 999 आदि) तब इन संख्याओं से गुणा या भाग करने पर बिना किसी संख्या का पहाड़ा बोले फटाफट उत्तर प्राप्त किया जा सकता है और यह बच्चों को किसी जादू से कम नहीं लगता।
किसी भी संख्या का अंक 9 से बनी संख्याओं से गुणा करने करने में वैदिक सूत्र- एकन्यूनेन पूर्वेण उपयोगी है। (पूर्व संख्या से एक कम की क्रिया द्वारा)
स्थिति-1
गुण्य अंक संख्या = गुणक अंक संख्या
(गुण्य संख्या) (गुणक संख्या)
7237456320 x 9999999999 (दोनों संख्याओं में दस-दस अंक)
=72374563192762543680 (उत्तर)
सूत्रानुसार पूर्व संख्या में से एक कम किया, जिससे उत्तर का आधा हिस्सा (7237456319) मिल गया। बाकी आधा हिस्सा (दायां हिस्सा) प्राप्त करने के लिए बाएं हिस्से के अंकों को 9 में से घटाकर (जैसे 9-7=2, 9-2=7, 9-3=6 आदि) गुणनफल प्राप्त किया। इस प्रकार बिना पहाड़ा बोले हम बड़ी से बड़ी संख्याओं का गुणनफल आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।
स्थिति-2
गुण्य अंक संख्या <गुणक अंक संख्या
4325455 x 9999999999 = 43254549995674545 उत्तर
पूर्व की भांति संख्या में से एक कम कर उत्तर का बायां हिस्सा (4325454) प्राप्त करते हैं। अब गुणक संख्या में गुण्य अंक संख्या से तीन अंक (999) अधिक हैं तो उन्हें उत्तर के मध्य भाग में लिख देते हैं। शेष अंक प्राप्त करने के लिए पूर्व की भांति बाईं ओर के अंकों को क्रमश: 9-9 (दाईं ओर के अंक) में से घटाते हैं- (जैसे 9-4=5, 9-3=6, 9-2=7 आदि)। इस प्रकार बिना किसी परेशानी के हमें आसानी से गुणनफल प्राप्त हो जाता है।
इसी तरह वैदिक गणित का करिश्मा भाग संक्रिया में भी है। जब किसी संख्या में अंक 9 से बनी संख्याओं का भाग देते हैं तो सूत्र निखिलम द्वारा बड़ी आसानी भागफल प्राप्त किया जा सकता है।
9 एक अंक की संख्या है इसलिए पहले एक अंक (2) को लिखते हैं, अब इसमें अगला अंक (1) जोड़कर (2+1=3) भागफल का दूसरा अंक 3 प्राप्त किया। 3 में अगला अंक 1 जोड़कर तीसरा अंक 4 प्राप्त किया। इस प्रकार नए योग को अगले अंक में जोड़ते हुए भागफल के क्रमश: सभी अंक प्राप्त कर लेते हैं। भागफल में इकाई अंक से पहले दशमलव लगाकर अंतिम अंक पर बार (-) लगाते हैं।