दिवाली के पांच पर्वों की श्रृंखला का पहला पर्व है धनतेरस। धार्मिक आधार पर स्वास्थ्य का ऐसा महापर्व शायद ही कहीं होता है? धनतेरस इस कारण से अनोखा पर्व है। धन-धान्य के साथ अच्छे आरोग्य की कामना का पर्व। लक्ष्मीजी का आगमन इस संदेश के साथ शुरू होता है- सर्वे संतु निरामया। शास्त्र और व्यवहार में लक्ष्मीजी के अनेक रूप मिलते हैं।
दिवाली लक्ष्मीजी का पर्व है। लक्ष्मीजी का स्वभाव, चंचल है। वह किसी एक स्थान पर अधिक समय नहीं रहता है। लेकिन धनतेरस पर लक्ष्मीजी के स्थायी भाव की पूजार्चना होती है। धन क्या है? इसकी महत्ता बताने के लिए ही महालक्ष्मी धनत्रयोदशी, धनतेरस और धन्वंतरि के रूप में हमारे सामने आती हैं।
लक्ष्मीजी के स्वागत व सत्कार की बेला है और पंच पर्वों की श्रृंखला का पहला पर्व सामान्य भाव से हम रुपए-पैसे को ही यह धन मान लेते हैं। व्यवहार में भले ही ऐसा हो, लेकिन लक्ष्मीजी को यह नहीं भाता। वह चंचल है, स्निग्ध है और ज्योतिर्मयी है, वह भवानी है, वह कल्याणी है, वह योगमाया है, वह योगमायी है।
भगवान विष्णु जहां सारे संसार का पालन करते हैं, तो लक्ष्मीजी उसे पालन के हेतु है, माध्यम है, धन बिना कुछ नहीं? सेहत ही नहीं तो धन कहां? चरित्र ही नहीं, तो धन कहां? धर्म दस लक्षणों की निधि है। शास्त्रों ने लक्ष्मीजी के आठ स्वरूप बताए हैं।
ब्रह्मपुराण के अनुसार आदिलक्ष्मी से ही अंबिका, लक्ष्मी से ही सरस्वती की उत्पत्ति हुई है। पूरी सृष्टि रज और तमोगुण की प्रतीक है। महालक्ष्मी रज की प्रतीक हैं। महाकाली तमोगुण और सरस्वती सत्व गुणों की प्रतीक हैं। धन, भवन, वाहन, स्त्री, कन्या, यश, एकता, सद्बुद्धि आदि रूपों में लक्ष्मीजी का वास है। शास्त्रों में अष्ट लक्ष्मी का वर्णन मिलता है।
लक्ष्मी मां का पहला वास धातु में कहा गया है। धातु मुद्रा के रूप में वास होने से धनतेरस दिवाली का पहला पर्व हो गया है। भगवान धन्वंतरि का प्रादुर्भाव होने से धनतेरस वैज्ञानिक पर्व बन गया है। समुद्र मंथन के समय अमृत कलश लेकर प्रकट हुए भगवान धन्वंतरि की पूजा वस्तुत: अपने स्वास्थ्य का चिंतन ही है।
भगवान धन्वंतरि ने सौ प्रकार की चिकित्सा की है। इसमें एक की काल मृत्यु है। सभी से निदान और चिकित्सा से बचा जा सकता है। इसके अतिरिक्त जीव-जंतुओं, प्रकृति-प्राणियों से लेकर शल्य चिकित्सा तक भगवान धन्वंतरि के वैज्ञानिक विभूषण हैं। आयुर्वेद इसी का प्रतीक है। जड़ी-बूटियां चिकित्सा पद्धति।
धार्मिक आधार पर वन-संपदा और जड़ी-बूटियों पर भी लक्ष्मीजी का वास है। स्वस्थ शरीर ही सबसे बड़ी पूंजी है। धनतेरस पर इसी कारण आयु, यश-वैभव, गृह, धन-धान्य, धातु आदि सभी प्रकार की पूजा होती है।
यम देवता की पूजार्चना करके रात को घर के बाहर एक दीपक भी जलाया जाता है। कामना की जाती है कि यम देवता हमारे परिवार पर कृपा करना। कथानक भी है कि यही ऐसी रात है, जब यम देवता भी कृपा करते हैं। खुशहाली सेहत के अमर संदेश के साथ लक्ष्मीजी का आगमन हमारी सांस्कृतिक परंपराओं की अमूल्य निधि है। युग और काल मे बाद भी अमृत कलश का रहस्य कायम है।
धन्वंतरि की पूजार्चना और विभिन्न खरीदारी करके हम लक्ष्मीजी के स्वागत के लिए अपने आपको तैयार करते हैं। महालक्ष्मी के पूजन में इन पांच का विशेष महत्व है।
पंच पल्लव : बड़, पीपल, आम, बरगद, गूलर,
पंचरत्न- हीरा, मोती, पुखराज, नीलम, पन्ना
पंच धातु: सोना , चांदी, तांबा, पीतल, कांसा
पंच धान : मूंग, जौ, गेहूं, मूंग उड़द, तिल
सिद्धिदात्री लक्ष्मीजी के स्वरूप, धन, सौभाग्य, सौंदर्य, संपदा, सत्ता ऐश्वर्य, आरोग्यता, ऊर्वरता और मंगल प्रदाता हैं।