वेदों में लक्ष्मी आह्वान
देवी श्री का आगमन कैसे हो
पद्मानने पद्मिनी पद्मपत्रे पद्मप्रियेपद्मदलायताक्षि विश्वप्रिये विश्वमनोनुकूलेत्वत्पादपद्मं मयि सन्निधस्त्व।। हे लक्ष्मी देवी,आप कमलमुखी,कमलपुष्प पर विराजमान,कमल दल के समान नेत्रों वालीकमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं। सृष्टि के सभी जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं,आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं।आपके चरण सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।विपुल ऐश्वर्य, सौभाग्य, समृद्धि और वैभव की अधिष्ठात्री देवी श्री महालक्ष्मी का पूजन, अर्चन, वंदन स्तवन का पर्व है दीपावली। दीपावली के अगणित दीपों के प्रकाश में विष्णुप्रिया महालक्ष्मी का आह्वान किया जाता है।अनुपम सौंदर्य और आरोग्य को देने वाली श्री महालक्ष्मी का दीपोत्सव की उजली बेला में आगमन भला कौन नहीं चाहेगा? हमारी संस्कृति में इस पर्व को अति विशिष्ट स्थान प्राप्त है और इस पर्व में महालक्ष्मी का महत्व अतुलनीय है। समुद्र मंथन के पश्चात् श्री लक्ष्मी अवतरण से ही इस दैदीप्यमान त्योहार की कहानी आरंभ होती है।ऋग्वेद के दूसरे अध्याय के छठे सूक्त में आनंद कर्दम ऋषि द्वारा श्री देवी को समर्पित वाक्यांश मिलता है। इन्हीं पवित्र पंक्तियों को भारतीय जनमानस ने मंत्र के रूप में स्वीकारा है। '
ऊँ हिरण्य वर्णा हरिणीं सुवर्णरजस्त्रामचंद्रा हिरण्यमयी लक्ष्मी जात वेदो म्आवह।अर्थात् हरित और हिरण्यवर्णा,हार, स्वर्ण और रजत सुशोभितचंद्र और हिरण्य आभादेवी लक्ष्मी का,हे अग्नि, अब तुम करो आह्वान इसी मंत्र की आगे सुंदर पंक्तियाँ हैं'
तामं आवह जात वेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम्यस्या हिरण्यं विदेयंगामश्वं पुरुषानहम्अश्वपूर्वा रथमध्यांहस्तिनाद प्रमोदिनीम्श्रियं देवी मुपव्हयेंश्रीर्मा देवी जुषताम।।इसका काव्यात्मक अर्थ किया जाए तो इस तरह होगा कि'
करो आह्वान हमारे गृह अनल, उस देवी श्री का अब,वास हो जिसका सदा और जो दे धन प्रचुर,गो, अश्व, सेवक, सुत सभी,अश्व जिनके पूर्वतर, मध्यस्थ रथ,हस्ति रव से प्रबोधित पथ,देवी श्री का आगमन हो,यही प्रार्थना है!