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Written By ND

शून्य से साम्राज्य का निर्माण

शिवाजी जयंती पर विशेष

शून्य से साम्राज्य का निर्माण -
- ज्योत्स्ना भोंडव
किसी भी राष्ट्र का इतिहास तब तक पूर्ण नहीं होता, जब तक वह सुसंगठित रूप से जनसाधारण की भावनाओं, मनोकामनाओं व उम्मीदों से ओतप्रोत न हो। ऐसा कम ही देखने में आता है कि सामूहिक लक्ष्य की भावना के लिए किसी प्रांत के लोग एक ही डोर में बँध गए हों और यह गौरव महाराष्ट्र के लोगों को हासिल हुआ, जहाँ छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम कायम है।

छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने समय में जिन समस्याओं का सामना किया, वे आज के दौर से हटकर रहीं। उनके सामने था सर्वत्र फैला मुगल साम्राज्य। ऐसे बलवान साम्राज्य को अपने सब्र से मात दी। इस पराक्रम का उस समय के इतिहास में खास जिक्र है।

धर्म की बात हो या कोई और, शिवाजी की नीति सदैव उदारता की ही रही। उनके स्वभाव में जरा भी संकुचितता नहीं थी। उनमें उदारता का यह गुण न होता तो चाहे कितनी भी वीरता और पराक्रम क्यों न दिखाया होता, तब भी इतिहास ने उन्हें महापुरुष के बतौर कभी गौरवान्वित न किया होता। यह उनकी वीरता, पराक्रम और युद्धनीति ही नहीं, वरन उदारता का सम्मान है।

कोई भी बड़े से बड़ा अस्तित्व तब तक महानता का दावेदार नहीं हो सकता, जब तक कि जनशक्ति उसके साथ न हो। शिवाजी महाराज की महानता का रहस्य इसी में छिपा है कि उन्हें जनसमूह का प्यार हासिल रहा। उनकी शक्ति जनसमूह की शक्ति थी। शिवाजी महाराज जिस विराट इतिहास का हिस्सा हैं, वह जनसमूह की राष्ट्रीय भावनाओं का इतिहास है।

उन्होंने उस दौर में जात-पाँत के भेदभाव को मिटाया जिस वजह से राष्ट्रीय एकता की भावनाओं को ताकत मिली। उनके समय ब्राह्मण और शूद्र के बीच कोई भेदभाव न था जिसने धार्मिक आंदोलन से राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले लिया। इसके चलते शिवाजी महाराज की लोकप्रियता के साथ सुसंगठित राष्ट्रीयता की नई विचारधारा परवान चढ़ी।

शिवाजी महाराज के समय में भी उन्हें नीचा दिखाने के लिए कहा जाता था कि वे सिर्फ हिन्दुओं के या सिर्फ महाराष्ट्र के नेता थे, जबकि उन्होंने अपनी सेना में धर्म-अधर्म, वर्ण से कभी किसी को शामिल करने से इनकार नहीं किया।

इनसान की कार्यक्षमता और कार्यकुशलता का विचार शिवाजी को हमेशा रहा। यही उनकी महानता का प्रमाण है और कामयाबी का रहस्य भी। शिवाजी के पश्चात हिन्दुस्तान में जितने भी महापुरुष हुए, उनके सामने भी यही यथार्थ चित्र था और उन्होंने भी इसी व्यापक नजरिए से देखने की कोशिश की।

नेता कार्यकुशल है इसके मायने यह कतई नहीं कि वह बहुत विद्वान हो। कई बार यह भी देखने में आया है कि अतिविद्वान नेता हो तो कारोबार का सर्वनाश भी हुआ है। यही वजह है कि नेता की शिक्षा, ज्ञान या जानकारी की कसौटी इस मामले में लागू नहीं होती।

यहाँ वे जननेता में व्यावहारिक नजरिए से इर्द-गिर्द की घटनाओं को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की काबिलियत के साथ काम करने वालों को अच्छी तरह से परखते। उन पर उनकी काबिलियत के मुताबिक जिम्मेदारी सौंपने की सही सूझबूझ का होना निहायत जरूरी है, जिसके लिए चाहिए कि वह जात-पाँत, धर्मभेद, वंशवाद को कतई सहारा न दे।

भेदभाव से परे काबिलियत के मुताबिक लोगों को काम सौंपने से हमेशा कामयाबी मिलती है, क्योंकि तब अधिकारवाद में असंतोष के कारण पैदा होने वाले संघर्ष की कोई गुंजाइश नहीं होती और शिवाजी महाराज के नेतृत्व की सबसे बड़ी यही खासियत रही।

अच्छे नेतृत्व के लिए सिर्फ लोगों की काबिलियत को परखना ही काफी नहीं, वरन उनसे काम लेने की चतुराई का होना भी बेहद जरूरी है जिसे देखने-समझने के लिए बौद्धिक, शारीरिक और मानसिक दर्द सहने की ताकत भी चाहिए। जिन लोगों पर यह जिम्मेदारी सौंपी जाती है, वे उस निर्णय को सही अंजाम तक पहुँचा पाएँगे या नहीं?

...और शिवाजी महाराज अपनी मेहनत, लगन और परिश्रम से प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद शून्य से साम्राज्य का निर्माण कर सके। वे गुणों के बेहद पारखी रहे। जिस व्यक्ति में फिर चाहे वह किसी भी क्षेत्र का ही क्यों न हो, उन्हें कोई खास गुण नजर आया नहीं कि वे उसे सम्मान और आदर ही नहीं देते, वरन्‌ उसके गुणों का स्वराज्य के विकास हित में उपयोग भी करा लेते थे।

उन्होंने अपने मकसद की कामयाबी के लिए जिन मित्रों या लोगों को चुना, उन्होंने भी अपनी जान की बाजी लगा उनके विश्वास को सिद्ध किया। इससे उनकी इनसानों को परखने की सही परख का पता चलता है।