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Last Modified: शनिवार, 8 नवंबर 2014 (20:05 IST)

गांव को खुशहाल बनाती हैं छोटी नदियां

गांव को खुशहाल बनाती हैं छोटी नदियां - river
-विवेक त्रिपाठी
 
निःसन्देह नदियों को मानव-सभ्यता के विकास में अहम भूमिका होती है। इनके संरक्षण को धर्म से जोड़ा गया। यह माना गया कि इस भावना के अनुसार आने वाली पीढ़ी नदियों का महत्व समझेगी। उसके प्रवाह में बाधक नहीं बनेगी। इसी प्रकार कुछ दूरी तक प्रवाहित होने वाली छोटी नदियों का भी महत्व कम नहीं होता। इसे उस गांव-शहर के लोग अच्छी तरह से समझते हैं, जहां छोटी नदियां बहती हैं। इसके किनारे पशुओं को आश्रय मिलता है, उनके लिए पानी और चारे की कमी नहीं होती सिंचाई में सहायता मिलती।
 
नदी और सरोवर प्राकृतिक धरोहर हैं, इन्हें बचाने की जिम्मेदारी मानव समाज की है। यदि निजी स्वार्थ के चलते लोगों ने समझदारी न दिखाई तो इन धरोहरो से हाथ धोना पड़ सकता है। इसका उदाहरण है। फतेहपुर के द्वाबा क्षेत्र से निकलने वाली ससुर खदेरी नदी विकासखंड तेलियानी के ठिठौरा के पास उद्‍गम माना जाता है।
 
यह नदी लगभग 42 ग्रामों की समीओं को छूती हुई विकासखंड के सैदपुर ग्राम के पास यमुना नदी में मिलती है। यह नदी 42 ग्राम के लगभग 1,32903 की जनसंख्या को लाभान्वित करती है। कालांतर में इस नदी से हजारों हेक्टेयर कृषि सिंचित होती थी। कुछ स्थानीय लोगों का यह भी मत है कि यह नदी अखनई झील से निकलकर जनपद के विकासखंड भिटौरा, हसवा, हथगाम एवं ऐरायां के ग्रामों को छूती हुई इलाहाबाद के संगम तट से लगभग चार किलोमीटर पहले ग्राम विरामपुर के पास सरस्वती घाट पर यमुना नदी में मिलती है। 
 
अब आलम यह है कभी न सूखने वाली नदी गर्मी के दिनों में पानी के लिए तरसती है। बरसात में यह उग्र रूप धार ण करने वाली नदी अब नाले के रूप में सिमट गई है। इसकी मुख्य वजह नदी के क्षेत्रफल को छोटा किया गया। तथा उसके जल प्रवाह का पानी नहरों आदि में उपयोग किया जाने लगा है। नदी के किनारे लोगों ने अतिक्रमण शुरू कर दिया है। खेती भी धड़ल्ले से की जा रही है। जिससे नदी छोटी होती जा रही है। उसमें बरसाती नालों को गिरने की जगह रोका जा रहा है। इसे अगर तत्काल रोका नहीं गया तो एक दिन इस नदी का पूरा अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। सरकार ने गंगा और यमुना नदियों को बचाने की मुहिम तो तेज की है। साथ में छोटी-छोटी नदियों को बचाने के लिए प्रयास किया जाना चाहिए। नदियों के किनारे अतिक्रमण से ही उत्तराखंड की बाढ़ ने विकराल रूप धारण किया था।
 
छोटी नदियों को बचाने के लिए उनके प्रवाह को नियमित रूप से चलने देना चाहिए। इसकी जल धारा को तनिक भी अवरुद्ध करना नहीं करना चाहिए। नदियों के किनारे अतिक्रमण बिलकुल नहीं किया जाना चाहिए। जलप्रवाह रुकने से प्रदूषण भी फैलेगा। नदियों को अस्तित्व को बचाने के लिए स्थानीय नगरिक और किसानों को जागरुक किया जाना चाहिए।
 
ऐसी नदियों को पुनर्जीवित करके छोटे किसानों का भला किया जा सकता है। अभी सरकार एक योजना शुरू करने जा रही है, जिससे उद्योग में आने वाला कचरा रोका जाएगा। ईटीपी (इफ्यूलेंट ट्रीटमेंट प्लांट) के जरिये इसे रोकने की योजना प्रदूषण बोर्ड ने बनाई है। 
 
नदियों का पानी नहर में जाने से रोकना होगा। तभी धारा निरंतर प्रवाहित होगी। प्रदूषण आदि के संकटों से नदियों को बचाने के लिए अलग रोडमैप तैयार करना होगा। ऐसा हुआ तो छोटी नदियां एक बार फिर जीवन संचार की संवाहक बनेंगी। सिंचाई की सुविधा बढ़ेगी। पशुओं को जल मिलेगा, चारे की उपलब्धता बढेग़ी। ग्रामीण खुशहाली के लिए ऐसा करना होगा।