शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By Author शरद सिंगी

एक कूटनीतिक विजय है मोदीजी की यूएई यात्रा

एक कूटनीतिक विजय है मोदीजी की यूएई  यात्रा - Modi UAE tour
शायद आपको स्मरण होगा कि इस वर्ष 25 अप्रैल के अंक में मैंने पाकिस्तान और अरब देशों (विशेषकर सऊदी अरब और यूएई) के बीच बिगड़े रिश्तों के बारे में लिखा था। पाकिस्तान, अरब देशों द्वारा प्रदत्त सहायता से कई बार विषम आर्थिक स्थितियों से बाहर निकला है। इन्हीं देशों ने नवाज शरीफ, बेनजीर भुट्टो और जनरल मुशर्रफ जैसी हस्तियों को समय-समय पर आश्रय दिया अन्यथा ये लोग या तो जेलों में यातना भोग रहे होते या फांसी पर लटका दिए जाते। 
इन्हीं अरब देशों को इस वर्ष जब सैनिक सहायता की जरूरत पड़ी तो पाकिस्तान ने मुंह फेर लिया। तभी से अरब देश पाकिस्तान से नाराज हैं। और तो और, उस समय यूएई के विदेश मंत्री ने तो सारी राजनीतिक मर्यादाओं को ताक में रखकर पाकिस्तान को देख लेने की धमकी तक दे डाली थी।
 
इस संदर्भ को ध्यान में रखते हुए यदि मोदी की यूएई यात्रा एवं यूएई के साथ संयुक्त वक्तव्य को देखें तो उनका कूटनीतिक अर्थ अधिक स्पष्ट समझ में जाएगा। मोदी ने अपने सार्वजनिक भाषण में बिना किसी का नाम लिए वह सब कुछ कह डाला, जो एक दबंग प्रधानमंत्री द्वारा किसी आपराधिक प्रवृत्ति रखने वाले राष्ट्र के लिए बोला जाना चाहिए, साथ ही महत्वपूर्ण बात यह रही कि पाकिस्तान पर आरोप उसी के निकट मित्र और रहनुमा रहे राष्ट्र की धरती से लगाए गए। इस तरह निश्चित रूप से पाकिस्तान के घावों पर मिर्ची मलने का काम मोदी ने कर दिया। 
 
अब तो यह एक निर्विवादित यथार्थ है कि पाकिस्तान आज ऐसे अंधेरे कुएं में गिर पड़ा है, जहां से उसे बाहर निकालने वाला कोई नहीं। आज पाकिस्तान के पास चीन के अतिरिक्त कोई आसरा नहीं किंतु चीन भी अब पाकिस्तान की करतूतों पर कितने दिन साथ देगा, यह देखने वाली बात होगी। दूसरी ओर संयुक्त बयान तो सीधे-सीधे पाकिस्तान की हरकतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है।
 
कड़े शब्दों में किसी तीसरे देश की भर्त्सना करने से सामान्यतः राष्ट्र दूर रहते हैं किंतु इतने स्पष्ट संकेतों में पाकिस्तान पर आतंकी गतिविधियों को प्रश्रय देने का आरोप लगाना भारत की कूटनीतिक विजय है। यही नहीं, जो बातें संयुक्त वक्तव्य का हिस्सा न बन सकीं, वे और भी अधिक महत्वपूर्ण हैं।
 
आतंकवाद के विरुद्ध दोनों देशों के बीच साझा कार्रवाई पर सहमति बनी है। साथ ही जल, थल और वायुसेना के संयुक्त अभ्यास की घोषणा भी हुई। इसका सीधा अर्थ है भारत और यूएई की सेना के बीच में सीधा संपर्क और भारतीय सेना की उपस्थिति अरब राष्ट्र में। यह तो बात साफ है कि यदि भारतीय फौज यूएई की सेना के साथ अपने रिश्ते जोड़ती है तो पाकिस्तानी सेना से यूएई की सेना को सारे संबंध तोड़ना होंगे। 
 
यह भी एक सुखद नीतिगत मोड़ है कि अबूधाबी, संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा समिति में भारतीय दावे पर समर्थन करने को भी तैयार है जिसे कुछ समय पहले तक असंभव माना जाता रहा है। भारतीय कूटनीति यहां अपने चरम पर दिखी क्योंकि भारत, पाकिस्तान का एक अहम स्तंभ निकालने व ढहाने में कामयाब हुआ है। अब चीन के आलावा उसके पास कोई और संबल नहीं बचा है।
 
युद्ध में एक गलत चाल जान-माल को हानि पहुंचा सकती है किंतु कूटनीति में एक गलत कदम पूरे राष्ट्र को मुसीबत में डाल देता है। अपनी मित्रता का दम भरने वाले पाकिस्तान ने जब अरब देशों की जरूरत के वक्त विश्वासघाती पीठ दिखाई तभी स्पष्ट हो गया था कि पाकिस्तान ने एक कूटनीतिक अपराध कर स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है और अरब देशों को भारत की झोली में डाल दिया है। (उन दिनों यूएई के अखबार अपनी नाराजी कठोरतम शब्दों में प्रकट करते रहे)।
 
अरब देशों के साथ भारत की मित्रता इतनी आसान भी नहीं है। मध्य-पूर्व में शक्ति के 3 केंद्र हैं। अरब देश, इसराइल और ईरान। ये तीनों आपस में दुश्मनी का एक त्रिकोण बनाते हैं। 2 दुश्मन देशों के बीच मित्रता का संतुलन बनाए रखना एक मुश्किल काम होता है किंतु यहां तो 3 हैं जिनके बीच भारतीय कूटनीति को संतुलन बनाना एक बहुत बड़ी चुनौती रहेगी। इनमें से कोई राष्ट्र ऐसा नहीं जिससे भारत संबंध बिगाड़ना चाहेगा।
 
आने वाले कुछ महीनों में प्रधानमंत्री सऊदी अरब एवं इसराइल की यात्रा तो करेंगे ही, पर ईरान पर भी उनकी नजर बनी रहेगी। ऐसे में भारतीय कूटनीति की हर कदम पर परीक्षा होगी। भारत के पक्ष में केवल एक ही बात है कि यह अपनी मित्रता के बल पर तीनों राष्ट्रों पर, एक टेबल पर वार्ता करने का मित्रवत एवं स्वार्थरहित दबाव डाल सकता है। अन्य किसी महाशक्ति की बात ये देश सुनने वाले नहीं, क्योंकि उन सभी के स्वार्थ इस क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। 
 
इसमें संदेह नहीं कि भारत ने अपने आपको एक बहुत ही अच्छी स्थिति में ला खड़ा किया है, जहां से वह एशिया में शांति बहाली का नेतृत्व कर सकता है। यह एक सुखद सत्य है जिसे सभी पक्षों को स्वीकार करना चाहिए कि भारत की कूटनीति स्वहितों की रक्षा के लिए सही दिशा में आगे बढ़ रही है।