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Last Updated : शनिवार, 28 मई 2016 (16:37 IST)

इंदौर : एक उभरता हुआ आधुनिक शहर जो पारंपरिक भी है

इंदौर : एक उभरता हुआ आधुनिक शहर जो पारंपरिक भी है - lok sabha speaker sumitra mahajan Indore
-सुमित्रा महाजन
इंदौर की 'ताई' और लोकसभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन ने चार दशक से भी अधिक समय तक इंदौर को बदलते हुए देखा है। इंदौर संसदीय सीट से आठ बार चुनी गईं श्रीमती महाजन खुद भी इन परिवर्तनों की वाहक रही हैं। शहर के बारे में टाइम्स ऑफ इंडिया में लिखे एक लेख में उन्होंने शहर के भावी विकास, इसकी ऐतिहासिक सुंदरता और सांस्कृतिक लोकाचार के साथ-साथ शहर की अंतर्निहित आत्मा को अक्षुण्ण बनाए रखने का आग्रह किया है।
इंदौर को अक्सर मिनी बॉम्बे (छोटा मुंबई) कहा जाता है क्योंकि इन दोनों ही शहरों में स्थानीय मामलों में व्यावसायिक गतिविधियों का बहुत प्रभाव है, लेकिन मैं अनुभव करती हूं कि इंदौर अपने आप में इंदौर है। किसी अन्य शहर की इस प्यारे और ऐतिहासिक शहर के साथ तुलना अनुचित होगी। इंदौर एक बहुत ही संभावनाशील शहर है और एक कस्तूरी मृग की भांति इसे अपनी दुर्लभ विशेषताओं और सामर्थ्य के बारे में जानकारी नहीं है।
 
यह वह शहर है जो कि मुझे भावनात्मक और आध्यात्मिक तौर पर महान विदुषी अहिल्या देवी के करीब लाया और इसने मुझे उनके जीवन दर्शन और शासन करने की प्रेरणास्पद कला का अध्ययन करने का करने का अवसर दिया। इसने मुझे लोकसभा में लगातार आठ अवसरों पर अपना प्रतिनिधित्व करने का दुर्लभ सम्मान दिया। अपने सार्वजनिक जीवन में प्रवेश करने के तीन-चार दशकों में लोगों ने मुझे अपना आशीर्वा‍द और स्नेह दिया और इस दौरान शहर भी बढ़ता रहा। जनसंख्या और भौगोलिक दृष्टि से यह कई गुना बढ़ गया है और इसने नई समस्याओं को भी जन्म दिया है।
 
हालांकि इस लम्बी राजनीतिक यात्रा के दौरान में इंदौर के सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक उतार-चढ़ावों को मुझे नजदीक से देखने का मौका मिला। इसलिए शहर को लेकर मेरी एक भावना है और एक निजी राय भी है कि यह भविष्य में किस तरह विकसित हो। पिछले समय में जो विकास हुआ वह तो हो चुका है, लेकिन इसकी भविष्य के विकास का रास्ता वैज्ञानिक और एक निश्चित दिशा में हो और इसलिए इसके नियोजित और संतुलित होने की जरूरत है।
 
दीर्घकालिक संदर्भों में केवल बुनियादी जरूरतों का विकास एक शहर को सजीव बनाए रखने के लिए कभी भी पर्याप्त नहीं होगा। शहर के नए और पुराने लोगों को समान रूप से इसके सांस्कृतिक लोकाचार, इसकी ऐतिहासिक सुंदरताओं और इसकी अंतर्निहित आत्मा का सम्मान करना चाहिए। पर जहां तक सड़कों, फ्लाई ओवर, अस्पतालों, खेल के मैदानों, झीलों, पार्कों और औद्योगिक तथा सार्वजनिक सुविधाओं, जैसे बस स्टैंड्स, मॉल्स, रेलवे स्टेशन और हवाई अड्‍डे आदि किसी भी शहर को बढ़ने के लिए अनिवार्य हैं और इसके साथ ही, युवाओं को रोजगार के अवसर भी पैदा हों। प्रत्येक शहर के बाशिंदे एक ऐसा सुखी और शांत जीवन चाहते हैं जो कि विश्वस्तरीय सुविधाओं के साथ हो।
 
इसलिए मैंने इन क्षेत्रों में काम किया और लम्बे समय तक विपक्षी दल में होने के कारण संसद में अपने निर्वाचन क्षेत्र की बेहतर संयोजकता (कनेक्टिविटी) सुनिश्चित करने के लिए आवाज उठाई। कई वर्ष पहले केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्रालय द्वारा बाईपास रोड की स्वीकृति मेरी पहली बड़ी उपलब्धि थी क्योंकि यह इंदौर के लिए सुयोग्य भेंट थी। इसके बाद जब मुझे केन्द्रीय राज्यमंत्री का ओहदा मिला तब मैंने मुंबई से इंदौर तक गैस पाइपलाइन बिछवाने को सुगम बनवाया। इसके बाद हवाई अड्‍डे का विस्तार और रेलवे नेटवर्क की बढ़ोतरी हमेशा ही मेरी प्राथमिकता रही। शहर के जागरूक नागरिकों को यह सब पता है।   
 
क्या एक शहर को मात्र इसलिए एक 'सफल' या 'सक्षम' शहर कहा जा सकता है क्योंकि इसमें गगनचुम्बी इमारतें, सड़कें, अस्पताल और बाजार हों? नहीं, वास्तव में एक शहर को सफल होने के लिए हमें एक कार्य संस्कृति विकसित करनी पड़ती है जो कि उदाहरण के तौर पर मुंबई में दिखाई देती है। मेरी राय है कि नागरिकों को शहर को अपना बनाना चाहिए और साथ ही इसे प्यार भी करना चाहिए। 'चलता है भिया' जैसा टालू रवैया जो कि कुछेक क्षेत्रों में विद्यमान है, उसे छोड़ना ही पड़ेगा। मैं इस बात को मानती हूं कि मध्यप्रदेश के अन्य शहरों की तुलना में इंदौर ने अपनी बढ़त बनाए रखी है लेकिन क्या यह हमारी भावी यात्रा के लिए भी पर्याप्त होगी? हमें इस विषय पर गहराई से सोचने की जरूरत है।
 
कई मामलों में इंदौर का एक शानदार अतीत रहा है। इंदौर के शास्त्रीय संगीत के घराने की 'इंदौर घराने' के नाम से ख्याति थी, सीके नायडू के नेतृत्व में खेलने वाली होलकर क्रिकेट टीम विश्व प्रसिद्ध थी। कबड्‍डी और खो-खो से लेकर कुश्ती और हॉकी जैसी खेल गतिविधियां यहां आज भी लोगों के दिलोदिमाग में ताजी हैं।
 
इंदौर का एक समृद्ध सांस्कृतिक वैभव भी रहा है। इसके कपास के बाजार को न्यूयॉर्क एक्सचेंज में बहुत सम्मान हासिल था। कुछ विश्वप्रसिद्ध कलाकारों, वास्तुकलाविदों और शहरी योजनाकारों ने शाही संरक्षण में यहां काम किया और वे यहां रहे भी। इंदौर के लोगों की धर्म में गहरी आस्था है और इस प्रकार यह सामाजिक सद्‍भाव के लिए जाना जाता है। मुझे कहना चाहिए कि मालवा की भूमि वास्तव में कुछ विशेष है। 
 
जब मैं अपने आसपास देखती हूं तो मैं तमाम तरह के लोगों से मिलती हूं और मैं उनकी विभिन्न जरूरतों के प्रति अंजान नहीं हूं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए मैंने उपमहापौर होते हुए गांधी हॉल (शहर के सुंदर टाउन हॉल) में एक कला दीर्घा खोलने में मदद की थी। बच्चों के थिएटर ग्रुप को राज्यव्यापी बनाने में सहायता की। वर्ष 2001 में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन का आयोजन किया। इसी तरह से प्रतिवर्ष होने वाले अहिल्योत्सव समारोहों की शुरुआत की। यह ऐसा समारोह था जो कि इंदौरवासियों को देवी अहिल्याबाई की शिक्षाओं की याद दिलाने के उद्देश्य से आयोजित किया गया। हाल ही में, मुझे दो भिन्न आयोजन आयोजित करने का मौका मिला जिनमें से एक वेद महोत्सव और दूसरा पुरुष और महिलाओं के लिए एशियाई खो-खो प्रतियोगिता थी।  
 
इन दोनों आयोजनों का एक दूसरे से कोई स्पष्ट संबंध नहीं था, लेकिन अगर आप गौर से देखें तो दोनों के बीच एक सामान्य सूत्र देखने को मिलेगा। यह शहरवासियों के लिए गौर करने और इनसे अपने को जोड़ने का आग्रह था। एक ओर हम जहां भौतिकवादी इंदौर को रियल एस्टेट और अन्य कारोबारी गतिविधियों में बढ़ता देखते हैं, वहीं दूसरी ओर लोगों में अपनी जड़ों की ओर लौटने और इन्हें मजबूत करने की प्यास भी है। इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि अद्वितीय तीन दिवसीय वेद महोत्सव के दौरान सैकड़ों लोगों ने भाग लिया और वहां मौजूद आध्यात्मिक वातावरण में खुद को पूरी तरह से आत्मसात कर लिया। वे लोग मात्र इसलिए नहीं आए थे क्योंकि मैंने उन्हें आमंत्रित किया था वरन लोग अपने दिमागों में तनाव और लाचारी के समय में धार्मिक प्रवचनों से एक आंतरिक शांति पाने के लिए पहुंचे थे। 
 
मेरा एक विचार यह भी था कि देश के विभिन्न हिस्सों के शहरों से आकर इंदौर में बसे लोगों के दिमागों में इस शहर की सांस्कृतिक छाप को उनके दिमाग में छोड़ना भी था। इसी तरह खो-खो प्रतियोगिता का आयोजन एक प्राचीन खेल को नया जीवन देना था, जिसके चलते साठ और सत्तर के दशक में इंदौर प्रसिद्ध था। खो-खो, कबड्‍डी क्लबों ने इंदौर में पारिवारिक संबंधों को मजबूती दी थी। 
इनके प्रशिक्षकों (कोच) को प्रत्येक खिलाड़ी के माता-पिता के बारे में जानकारी थी। वे खेल संबंधी कुशलताओं की दुर्लभ जानकारी देने के अलावा प्रतियोगियों को टीम भावना, अनुशासन, ईमानदारी और प्रतिबद्धताओं की भी शिक्षा देते थे। इन सारी बातों की आज पहले से कहीं अधिक जरूरत है।
 
एक राजनीतिक नेता (वास्तव में इस शब्द के सच्चे अर्थों में मैं कोई राजनीतिक नेता नहीं हूं) होने के कारण मेरी भूमिका यह समझने में भी है कि समाज में क्या हो रहा है और संभव हो तो लोगों को सही दिशा दिखाऊं... और यह तभी संभव है जब सामाजिक संबंध मजबूत हों, हम एक दूसरे का आदर करें और इसके साथ ही विकास की अपनी निजी महत्वाकांक्षा भी रखें।
 
तेजी से हो रहा शहरीकरण और बहुआयामी तकनीकी विकास, समाज वैज्ञानिकों, राजनीतिज्ञों और अर्थशास्त्रियों के सामने समान रूप से नई-नई चुनौतियां पेश कर रहे हैं। विभिन्न तरह के अपराधों में बढ़ोतरी हो रही है। हमारी युवा पीढ़ी में व्यवहारगत परिवर्तन, सामाजिक निराशा के तौर पर सामने आ रहा है। अन्य शहरों की तरह से इंदौर में भी पर्यावरण के मोर्चे पर अपनी समस्याएं हैं। प्रवासियों के प्रतिमान और इनसे जुड़ी समस्याएं उस सामाजिक तानेबाने को तोड़ने पर आमादा हैं, जिस पर हम कभी गर्व करते थे। शब-ए-मालवा की भावना केवल किताबों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।
 
इसलिए एक शहर को जहां आधुनिकता को अपनाना पड़ता है, इसके साथ ही इसे अपनी समृद्ध सांस्कृतिक परम्पराएं और लोकाचार को भी अक्षुण्ण बनाए रखना पड़ता है। इंदौर को ऐसा सुखी, युवा, साफ-सुथरा, पर्यावरण हितैषी शहर होना चाहिए, जिसके लोग शांति और सामाजिक सद्‍भावना को अपनाएं। यह निश्चित तौर पर किए जाने योग्य काम हैं। यहां आधुनिकता और परम्परा हाथों में हाथ लिए रह सकती हैं। इंदौर एक महान शहर रहा है और इसे अपनी मूल खूबियों को नहीं छोड़ना चाहिए, ठीक उसी तरह से जैसे कोई तेंदुआ अपने निशानों को नहीं बदलता है।  (लेखिका लोकसभा की अध्‍यक्ष और इंदौर से सांसद हैं)