केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार आने के बाद राजकाज में हिन्दी का दबदबा बढ़ गया है। चारों ओर हिन्दी की चर्चा होने लगी है। देश का हृदय कहे जाने वाले मध्यप्रदेश के अलग-अलग अंचलों में भले ही स्थानीय बोलियां रही हों लेकिन संपर्क भाषा के रूप में हमेशा से ही हिन्दी का बोलबाला रहा है। मध्यप्रदेश ने देश को हिन्दी के अनेक श्रेष्ठ साहित्यकार, पत्रकार और हिन्दीसेवी दिए हैं। राज्य में वैसे तो हर सरकार ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिए काम किया है लेकिन पिछले 10 सालों से हिन्दी की ताकत को बढ़ाने के लिए राज्य में विशेष प्रयास हुए हैं और इसका श्रेय मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान को दिया जाना चाहिए जिन्होंने हमेशा जनसामान्य की इस भाषा की प्रतिष्ठा को बढ़ाने के प्रयास किए। पिछले कुछ सालों के दौरान न सिर्फ प्रदेश में हिन्दी के गौरव को बढ़ाने वाले संस्थानों की स्थापना हुई है बल्कि मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय स्तर पर भी अनेक अवसरों पर हिन्दी के हक की लड़ाई लड़ी है। इस मायने में शिवराजसिंह चौहान को हिन्दी का सेनानी कहा जा सकता है।
मध्यप्रदेश में पिछले एक दशक के दौरान हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इनमें सबसे प्रमुख है भोपाल में पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी के नाम पर हिन्दी विश्वविद्यालय की स्थापना। हिन्दी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित करने को लेकर बातें तो कई बार होती रही हैं लेकिन इसको लेकर वास्तविक प्रयास अटलबिहारी वाजपेयी ने किया था जिन्होंने पहली बार राष्ट्र संघ के सहस्राब्दी सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए अपना भाषण हिन्दी में दिया था। इसलिए प्रदेश में स्थापित हिन्दी विश्वविद्यालय का नामकरण इससे बेहतर और क्या हो सकता था?
दरअसल, हिन्दी इस देश को जोड़ने वाली ताकत रही है लेकिन किसी न किसी कारण से इस ताकत को दरकिनार करने या यूं कहें कि इसे न पहचानने की भूल राजनीतिक स्तर पर होती रही है। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी ने हिन्दी को ही अपने चुनाव अभियान का प्रमुख माध्यम बनाते हुए न सिर्फ अपनी सरकार के गठन का मार्ग प्रशस्त किया बल्कि हिन्दी की राजनीतिक ताकत को भी प्रतिष्ठित कर दिया। केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद अब देशभर में हिन्दी को लेकर एक नई लहर चली है, लेकिन मध्यप्रदेश जैसे राज्य तो पिछले कई वर्षों से हिन्दी की इस ताकत को पहचानते हुए इस दिशा में उल्लेखनीय कार्य करते रहे हैं।
वर्तमान सरकार ने हिन्दी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाते हुए मध्यप्रदेश में न केवल शिक्षा के स्तर पर हिन्दी को बढ़ावा दिया है बल्कि अपनी सुशासन की अवधारणा का आधार भी इसी को बनाया है। हिन्दी के उपयोग की जब भी बात होती है, आमतौर पर यह कहा जाता है कि आधुनिक विज्ञान और तकनीक से जुड़े विषयों पर हिन्दी में जानकारी उपलबध नहीं है। मध्यप्रदेश में स्थापित हिन्दी विश्वविद्यालय ने इस काम का बीड़ा उठाया है और यहां चिकित्सा तथा अभियांत्रिकी जैसे विषयों की किताबें हिन्दी में तैयार करने का काम हो रहा है। आने वाले दिनों में यह काम देश के उन लाखों युवा विद्यार्थियों के लिए वरदान साबित होगा, जो अंग्रेजी का ज्ञान न होने के कारण मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं।
डॉक्टरी और इंजीनियरिंग के साथ ही साइंस की विभिन्न विधाओं, वाणिज्य और प्रबंधन के शिक्षण-प्रशिक्षण की व्यवस्था भी हिन्दी भाषा में करने की ओर यहां काम किया जा रहा है। इन विषयों को हिन्दी माध्यम से विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए देश में इस तरह का यह पहला प्रयास है। हिन्दी विश्वविद्यालय में ज्ञान-विज्ञान की विभिन्न विधाओं में पी-एचडी तथा एमफिल के साथ ही स्नातकोत्तर, स्नातक, प्रतिष्ठा, पत्रोपाधि, प्रमाण-पत्र और प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किए गए हैं। इन उपाधियों और पाठ्यक्रमों के मूल्यांकन के लिए नवीनतम मूल्यांकन प्रणालियों का उपयोग किया गया है। विश्वविद्यालय में 18 संकाय खोले गए हैं और 200 से अधिक पाठ्यक्रम बना लिए गए हैं।
हिन्दी के बारे में अकसर कहा जाता है कि यह आम बोलचाल की भाषा तो है, लेकिन सरकारी कामकाज में अफसरशाही की विशिष्ट मानसिकता के चलते वहां अंग्रेजी ही हावी रहती है। लेकिन मध्यप्रदेश में सरकारी कामकाज में भी हिन्दी का ही बोलबाला है। यहां पंचायत स्तर के निर्माण कार्यों के मसौदे हिन्दी में ही तैयार किए जा रहे हैं। इसके अलावा मध्यप्रदेश का संस्कृति विभाग हिन्दी की बोलियों के संरक्षण और उनके विकास की दिशा में काम कर रहा है।
सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देने में भी मध्यप्रदेश अग्रणी है। मुख्यमंत्री ने इस काम में विशेष रुचि ली है। हाल ही में शुरू की गई मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 181 के लिए पूरा सॉफ्टवेयर हिन्दी में तैयार किया गया है। प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए कम्प्यूटर से किए जाने वाले शासन के सभी कार्यों में यूनीकोड को अनिवार्य कर दिया गया है। इससे हिन्दीभाषियों को कम्प्यूटर दक्ष बनाने में अच्छी सफलता मिली है। उच्च न्यायालय से निर्णयों का हिन्दी अनुवाद उपलब्ध करवाने का भी अनुरोध किया गया है।
हाल के वर्षों में मध्यप्रदेश ने राष्ट्रीय स्तर पर भी हिन्दी के हक की लड़ाई पूरी ताकत से लड़ी है। यूपीए सरकार के समय जब संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में अंग्रेजी की अनिवार्यता का मसला आया तो प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने पुरजोर तरीके से हिन्दीभाषियों की आवाज उठाई। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह को लिखे पत्र में इस कदम का विरोध करते हुए कहा कि अंग्रेजी में प्राप्त अंक अंतिम गणना में जोड़ने से भारत के ग्रामीण एवं आदिवासी अंचलों के युवाओं की संभावनाओं पर ही नहीं, बल्कि शहरी मलिन बस्तियों व शहरी गरीबों एवं मध्यवर्गीय युवाओं के मनोबल और भविष्य पर भी निर्मम आघात हुआ है। शिवराजसिंह ने इस मामले पर एक तरह से हिन्दीभाषी राज्यों की अगुवाई करते हुए सभी मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा और उनसे तत्कालीन केंद्र सरकार के कदम का विरोध करने का आग्रह किया।
यह संभवत: पहला मौका था, जब किसी एक राज्य के मुख्यमंत्री ने हिन्दीभाषियों के हितों को लेकर अन्य राज्यों को साथ लेते हुए आवाज उठाई हो। उन्होंने कहा कि ‘इस निर्णय से यह सिद्ध होता है कि अंग्रेजी को एकाधिकारी स्थान दिया जा रहा है। इससे राजभाषा हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति हमारे परिवारों में अरुचि का वातावरण पैदा होगा। संघ लोक सेवा आयोग की पात्रता परीक्षा में उम्मीदवारों को किसी भी भारतीय भाषा में स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। ऐसा करने से अति निर्धन और वंचित परिवारों के भी ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार सिविल सेवाओं में शामिल हो सकेंगे।'
यहां एक बात और ध्यान देने की है कि आमतौर पर जब भी हिन्दी की बात होती है तो उसे अंग्रेजी के विरोध का रूप दे दिया जाता है। लेकिन मध्यप्रदेश ने उस तरह से अंग्रेजी का कभी विरोध नहीं किया बल्कि मुख्यमंत्री का तो कहना है कि ‘अंग्रेजी का न केवल भाषा बल्कि ज्ञान के एक विपुल भंडार तक पहुंचने के साधन के रूप में जितना महत्व है, हिन्दी तथा अन्य भारतीय जनभाषाओं का जन-जन तक पहुंचने में भी उतना ही महत्व है।'
निश्चित रूप से हिन्दी के प्रति यह सकारात्मक सोच ही समय की मांग है। हिन्दी को लेकर केवल जुबानी हायतौबा मचाने से स्थिति में बदलाव नहीं होगा, बल्कि उसके लिए ठोस और व्यावहारिक प्रयास जरूरी है, मध्यप्रदेश ऐसे प्रयास करने में अग्रणी है।