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दुनिया की साहसी महिलाओं का अभियान नदी और जल के सवाल पर

दुनिया की साहसी महिलाओं का अभियान नदी और जल के सवाल पर - Ganga cleaning campaign
- कुमार कृष्णन
 
गंगा का सवाल पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण सवाल है तो करोड़ों देशवासियों की आस्था का प्रतीक भी है। हमारे पर्व-त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान नदियों के किनारे होते हैं। वही एक बड़ी आबादी की जीविका का आधार भी है। देश की तमाम नदियां कचरा ढोने वाले मालवाहक के रूप में तब्दील हो गई हैं। इससे जहां प्रदूषण का स्तर बढ़ा है और तरह-तरह की बीमारियां हो रही हैं, वहीं आने वाले दिनों के लिए यह एक बड़े खतरे की घंटी भी है।
इस अभियान का नेतृत्व अमेरिका की शिक्षाविद् ऐन बैनक्रॉफ्ट कर रही हैं। उन्होंने 1986 में उत्तरी घ्रुव और 1992 में दक्षिणी घ्रुव की यात्रा कर साहसिक अभियान को अंजाम दिया है। इस टीम की दूसरी महिला नार्वे की लिव अर्नेसेन हैं, जो बिना किसी सहारे के वर्ष 2000 में स्की करके अंटार्टिका महाद्वीप गई थीं। भारत की कृष्णा पाटिल ने 2009 में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई कर सबसे कम उम्र में विजय पताका फहराई। उन्‍हें वर्ष 2009 के राजीव गांधी पुरस्कार से नवाजा गया है। न्यूजीलैंड की लीजा हे टू टू पर्यावरण वैज्ञानिक के साथ—साथ पायलट भी रह चुकीं हैं। चिली की मर्सिया गुटिव्रेज पवर्तारोही रह चुकी हैं। इजराइल की ऑल्फेट हैदर अपने देश में शांति कार्यकर्ता के रूप में काम करती हैं। चीन की जियाओ हू, मांउटेनिग इंजीनियर हैं। किम स्मिथ दक्षिण अफ्रीका से हैं।
 
दुनिया के इन देशों की महिलाओं का एकजुट होकर एक बड़े अभियान को लेकर निकलने के एक खास मायने हैं। वह मुद्दा है पानी और नदी का। ये महिलाएं 60 दिनों में गंगा किनारे यात्रा करते हुए 2525 किलोमीटर की यात्रा तय करेंगी। 23 अक्टूबर को इन्होंने गोमुख से अपनी यात्रा बोट से आरंभ की। यह यात्रा भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय में सूचीबद्ध हिमालयीन एक्सप्लोरेशन लिमिटेड की ओर से की जा रही है। इन सात लोगों की टीम के अलावा कमांडेंट एसपी आहूजा के नेतृत्व में 11 लोगों की टीम चल रही है। इस टीम को 23 नवम्बर को ही मुंगेर पहुंचना था। मार्ग के अवरोध आदि के कारण नियत तिथि को नहीं पहुंचकर 24 नवम्बर की देर मुंगेर पहुंचने में कामयाब हो गए। न कोई तामझाम, न कोई दिखावा, गंगा के तंबू लगाकर रहना, स्थितियों को समझना और दूसरे को वाकिफ कराना और शाम के समय या रात के लिए सोलर लाइट का इस्तेमाल करना।
 
अभियान दल का मकसद गंगा के किनारे बसे शहरों में जाकर लोगों को गंगा और देश की अन्य नदियों की स्थितियों से वाकिफ कराना और जनप्रयास के लिए प्रेरित करना है। यात्रा के क्रम में आम लोगों, जनसंगठनों और स्कूली बच्चों के साथ संवाद स्थापित कर रहे हैं। उन्हें इस बात से वाकिफ करा रहे हैं कि यदि नहीं चेते तो आने वाले समय में क्या होने वाला है। इनकी यात्रा गंगा सागर में 4 दिसंबर को समाप्त होगी, फिर ये लोग कोलकाता आएंगे और दिल्ली पहुंचकर मंत्रालय को भी वाकिफ कराएंगे। गंगा और पानी को लेकर एक डॉक्यूमेंट्री भी तैयार कर रहे हैं। सकारात्मक संदेश के साथ दुनिया की इन महिलाओं की यात्रा का एक खास अहमियत रखती है।
 
अभियान के सदस्यों ने बताया कि गोमुख से लेकर ऋषिकेश तक तो गंगा की स्थिति ठीक है। हरिद्वार आते—आते वह प्रदूषित होनी शुरू हो जाती है। कानपुर में तो सबसे भयानक स्थिति है। 500 मिलियन लीटर गंदा पानी प्रतिदिन गंगा में डाला जा रहा है। सीवरेज सिस्टम और ट्रीटमेंट प्लांट प्रभावी नहीं हैं। प्रदूषण के स्तर से कैंसर और अन्य बीमारियों के लोग शिकार हो रहे हैं।
 
अभियान का नेतृत्व कर रहीं अमेरिका की शिक्षाविद् ऐन बैनक्रॉफ्ट का कहना है कि पानी और नदी का मुद्दा किसी एक देश का नहीं, बल्कि वैश्विक है। इसलिए हम महिलाएं इस अभियान पर निकली हैं। पानी और नदी के संरक्षण की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार और कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के भरोसे नहीं छोड़ना होगा, बल्कि आम लोगों को जागरूक बनाना होगा। युवाओं तथा बच्चों में जज्बा पैदा करना होगा।
 
संवाद के क्रम में सूचना एवं जनसंपर्क विभाग मुंगेर प्रमंडल के उपनिदेशक कमलाकांत उपाध्याय ने गंगा में गाद की समस्या के संदर्भ में बातचीत की। साथ ही गंगा के सवाल पर बिहार सरकार के नजरिए और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल से उन्हें वाकिफ कराया, वहीं मुंगेर नगर निगम की महापौर कुमकुम देवी ने अपने क्षेत्र के गंगा तट की सफाई की बात कही। ऐन बैनक्रॉफ्ट को जब यह पता चला कि बिहार की सरकार ने निकायों में आधी आबादी को प्रतिनिधित्व दिया तो उनका कहना था कि नदी और पानी का सवाल महिलाओं से जुड़ा है। इसलिए निकाय प्रतिनिधियों का दायित्व बनता है कि ऐसे अभियानों में महिलाओं को ज्यादा भागीदार बनाएं। वहीं गंगा महासभा के प्रदेश अध्यक्ष निर्मल जालान ने बताया कि गंगा आरती तथा अन्य माध्यमों से लोगों को जागरूक किया जा रहा है।
 
सुरक्षित पेयजल का सवाल एक अहम सवाल है। यह सिर्फ नारों तक सीमित है। आज भी देश के अनगिनत परिवारों को सुरक्षित पेयजल मयस्सर नहीं है। इनसे रोजाना महिलाओं को दो—चार होना पड़ता है। जल संकट से सबसे अधिक स्त्रियां ही जूझती हैं। जल संकट का सर्वाधिक खामियाजा महिलाओं को भुगतना पड़ता है। घर में पानी भरने से लेकर बाहर से पानी ढोने का काम आज भी महिलाओं के जिम्मे है। देश के कई राज्यों में पानी लाने के लिए महिलाएं घंटों सफर तय करना होता है। पवर्तारोहण से जुड़ीं कृष्णा पाटिल कहती हैं कि इन सवालों को समझना होगा। इसे वैश्विक मुद्दा बनाना होगा वरना स्थिति इतनी भयावह होगी कि उसका मुकाबला कर पाना असंभव होगा। जाहिर है कि अब हर साल जिस लिहाज से बरसात में कमी आ रही है और देश के कई हिस्से सूखे की चपेट में हैं, उससे यह साबित होता है कि पानी का सवाल आने वाले समय में मानवीय जीवन से जुड़ी सबसे बड़ी चुनौती साबित होगा।
 
वैज्ञानिक काफी पहले ही चेता चुके हैं कि वर्ष 2025 तक दुनिया के दो तिहाई देशों में पानी की किल्लत हो जाएगी, जबकि एशिया और खासतौर पर भारत में 2020 तक ही ऐसा होने की आशंका है। पृथ्वी पर कुल पानी का महज 2.5 प्रतिशत जल ही मीठा जल यानी पीने योग्य है। इसलिए भूमिगत जल क्षमता को बढ़ाने के प्रयास जरूरी हैं। भंडारण और संसाधनों की कमी के चलते कुल 18 फीसदी वर्षा जल का ही उपयोग हो पाता है। हाल के वर्षों में भूजल स्तर में गिरावट और बरसात की कमी के साथ ही आम लोगों की जीवनशैली में भी परिवर्तन आया है। नतीजतन जल की खपत और कुप्रबंधन, दोनों ही बढ़े हैं। आज देश में 70 फीसदी खेती और 80 फीसदी घरों में इस्तेमाल होने वाला जल भूगर्भ जल ही है, जो तेजी से घट रहा है। भूमिगत जल के घटने के अनुपात में ही पेयजल संकट भी बढ़ रहा है। 
 
भूगर्भ के जलस्तर को रिचार्ज करने का माध्यम हैं नदियां, तालाब का भरा रहना और स्वच्छ होना। नदियों को भी यदि हम गंदा करते जाएंगे तो आने वाले समय की स्थिति क्या होगी? देश में पानी की खपत और आपूर्ति का अंतर तेजी से बढ़ा है। घरेलू, कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में जल की मांग सबसे अधिक है। वर्ष 2025 तक इस मांग में 40 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान है। 
 
एक सर्वे के अनुसार, 20 प्रतिशत लोगों को पीने का पानी लेने घर से आधा किमी दूर जाना पड़ता है। दिल्ली और मुंबई सहित देश के 71 बड़े शहरों में पानी की सही आपूर्ति की व्यवस्था और योजना नहीं है। इन शहरों में वितरित किए जाने वाले पानी का एक तिहाई हिस्सा लीकेज और खराब पाइपों से बह जाता है। देश में 97 प्रतिशत लोग शुद्ध पेयजल पाने में असमर्थ हैं। चीन के बाद भारत दूसरा ऐसा देश है जहां जनसंख्या के लिहाज से पानी की किल्लत सबसे ज्यादा है। अनुमान है कि वर्तमान में दूसरा सर्वाधिक आबादी वाला देश भारत 2050 तक चीन को पछाड़ते हुए पहले पायदान पर पहुंच सकता है। इस संकट को समय रहते समझना और इसके अनुरूप संभलना, दोनों ही जरूरी हैं। ये महिलाएं यही संदेश दे रही हैं।
 
पानी की कमी से जूझ रहे दुनिया के 20 शहरों में जापान की राजधानी टोक्यो नंबर एक पर है। इस फेहरिस्त में दिल्ली के अलावा भारत के चार शहर कोलकाता, चेन्नई, बंगलुरु और हैदराबाद के भी नाम शुमार हैं। गंभीर त्रासदी का विषय है कि जल संरक्षण और संवर्धन पर केन्द्रित न होकर आम लोगों का ध्यान पानी के अत्यधिक उपभोग पर ही केन्द्रित रहा है। साथ ही सरकार हो या जनसाधारण जल के उपभोग और बर्बादी को लेकर बातें अधिक और सकारात्मक भागीदारी कम ही देखने में आती हैं। इन अभियानों में अमूमन सरकारी भागीदारी ही रहती है। यह तो कुछ लोगों या अधिकारियों की दिलचस्पी का नतीजा है कि अभियान का संदेश लोगों तक पहुंच पा रहा है।