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Last Updated : शनिवार, 31 दिसंबर 2016 (20:42 IST)

मोदी का संबोधन : नुकसान की भरपाई की चुनावी कोशिश

नोटबंदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 दिसंबर को नोटबंदी के बाद पहली बार देश के नाम अपने संबोधन में कृषक को कुछ राहत, छोटे व्यापरियों के लिए ‍कर्ज नियमों में राहत और मध्यम वर्ग के लिए घर बनाने के लिए कुछ लोक लुभावन घोषणाएं तो कीं, लेकिन उन्होंने नोटबंदी के दौरान हुई समस्याओं पर गहराई से बातें नहीं कीं। यह भाषण उत्तरप्रदेश और पंजाब में होने वाले चुनावों को देखते हुए लोक- लुभावन घोषणाओं की कोशिश अधिक लगा। मोदी ने अपने भाषण में यह भी नहीं बताया कि आखिर बैंकों में कैश लिमिट कब खत्म होगी? 
 
प्रधानमंत्री ने डिजिटल पेमेंट और कैशलेस के महत्व को समझाया, लेकिन नोटबंदी के दौरान 50 दिनों तक लोगों को जो परेशानी हुई, उसके लिए बैंकों को कटघरे में खड़ा कर दिया। नकद रुपया अगर आम लोगों तक समय से नहीं पहुंचा तो इसके ‍जिम्मेदार बैंक हैं या उनको नियंत्रित करने वाली सरकारी संस्थाएं? लोगों की परेशानी की जिम्मेदारी लेने की बजाय प्रधानमंत्री ने लोगों की धैर्य की प्रशंसा की और बैंकों को सारी असुविधाओं के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया।

बैंकों को नसीहत करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि निम्न, निम्न मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग को ध्यान में रखकर अपने कामों को अंजाम दें। बैंकें भी लोकहित और गरीब कल्याण के लिए काम करने के अवसर हैं। एक सवाल यह है कि बैंक तो सरकार के निर्देश पर काम कर रही है, फिर सरकार सवालों से मुक्त कैसे हो सकती है? जितने नोटबंद किए गए उनसे कुछ ही कम नोट बैंक में जमा हुए तो क्या नोटबंदी से कालेधन पर पूरी तरह लगाम कसी गई? इस बारे में प्रधानमंत्री ने कुछ कहा नहीं। एक सीमा से अधिक बैंकों से रुपया निकलाने पर कब रोक हटेगी, उसका जवाब भी मोदी ने अपने भाषण में नहीं दिया। 
 
प्रधानमंत्री ने अपनी घोषणाओं में गरीब को घर, किसानों को रुपए कार्ड और बुआई लोन में ब्याज छूट के साथ-साथ के किसानों के हित में नाबार्ड की रकम को दोगुना किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि नाबार्ड को जो नुकसान होगा उसे सरकार वहन करेगी।  मोदी की इन घोषणाओं में किसान, गरीब के घर, छोटे व्यापारी को लोन, डिजिटल पेमेंट की बातें तो थीं, लेकिन ऐसी कोई बात नहीं रही जिससे कि नोटबंदी के दौरान आम आदमी को हुई तकलीफ और परेशानी पर मरहम लग सके।