रविवार, 22 दिसंबर 2024
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नोटबंदी : क्यों जरूरी है कैशलेस अर्थव्यवस्था?

नोटबंदी : क्यों जरूरी है कैशलेस अर्थव्यवस्था? - currency ban for cashless economy
लाइन में लगना छोड़ना है तो कैशलेस अर्थव्यवस्था जरूरी है। इससे कालाधन, जाली नोट तो रुकेगें साथ ही अर्थव्यवस्था मजबूती की ओर बढ़ेगी जिसके चलते रुपये की अंतरराष्ट्रीय बाजार में किमत बढ़ेगी। रुपये की किमत बढ़ने से लोगों का जीवन स्तर और सुधरेगा तथा महंगाई दोगुना कम हो जाएगी।
क्यों नहीं होना चाहते लोग कैशलेस?
1.लोगों को कैशलेस लेन-देन अपनाने के लिए भले जितनी भी अपील की जा रही हो लेकिन बैंकिंग से लेकर सरकारी क्षेत्र में अब तक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें लोगों के लिए नकदी लेन-देन ही सस्ता आसान लगता है।
2.कार्ड से भुगतान लेने पर दुकानदारों को दो फीसदी तक शुल्क सिर्फ बैंक को ही देना पड़ता है। इसी तरह रेलवे की टिकट आप नकदी से लेते हैं तो सस्ती पड़ती है। सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों से पेट्रोल खरीदने पर भी क्रेडिट कार्ड पर अतिरिक्त शुल्क वसूला जा रहा है।
3.इसी तरह डेबिट कार्ड, इंटरनेट बैंकिंग या रूपे कार्ड पर भी प्रत्येक लेन-देन पर दस रुपये और उस पर सेवा कर लिया जाता है।
4.सरकारी उपक्रम होने के बावजूद रेलवे मोबाइल वॉलेट पर भी 1.28 फीसदी से लेकर 1.80 फीसदी तक ट्रांजेक्शन चार्ज अलग से वसूल जाता है। 
5.नोटबंदी के बाद से सरकार जोरशोर से प्रयास कर रही है कि लोग कैश की बजाए डिजिटल लेनदेन की तरफ बढ़ें। लेकिन डिजिटल लेनदेन के अपने फायदे-नुकसान हैं।
6.इसके अलावा इनकम टैक्स बचाने में नगद भुगतान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह बचा हुआ इनकम टैक्स काले धन के रूप में जमा होने लगता है। यह कुछ कारण है जिसके कारण दुकानदार, डॉक्टर, व्यापारी आदि कैशलेस नहीं होना चाहते हैं।
 
पहला कैशलेस गांव : नोटबंदी के बाद देश का पहला कैशलेसे गांव बना महाराष्ट्रा का धसई गांव। आप यहां अपने कार्ड से एक रुपये की चॉकलेट खरीद सकते हैं और लांड्री पर कपड़े भी धुलवा सकते हैं। सब्जी और दूध वाले के पास भी यहां स्वाइप मशिन है। जनधन योजना जब शुरू हुई तो तब यहां से सभी लोग इस योजना से जुड़ गए थे और अब सभी के खाते तो है ही साथ ही सभी के पास एटीएम और मोबाइल भी है। अब इस गांव के लोग व्यापारियों से लेकर सब्जी वाले तक को एटीएम कार्ड से पैसे का भुगतान करते हैं। लोगों की जेब में रुपया नहीं होता बस कार्ड होता है।
 
ठाणे जिले के धसई गांव के 15 हजार  निवासियों ने नकद लेन-देन को खत्म करने का फैसला करके एक नई मिसाल पेश की है। इस गांव के हर घर के सभी वयस्क सदस्यों के पास कार्ड है और गांव में कम से कम 40 कार्ड स्वाइप मशीनों है। मिड-डे की खबर के मुताबिक गांववाले नाई से लेकर डॉक्टर तक को एटीएम कार्ड से भुगतान करते हैं।
 
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री जनधन योजना का मुख्य उद्देश्य भारत की वित्तीय सेवाओं जैसे बैंकिंग, पैसे के लेन-देन , लोन, बीमा और पेंशन को उपयोगी और सुविधाजनक बनाना था। इस अभियान को अगस्त 2014 में शुरू किया गया था, जिसमे अब तक लगभग 25.68 करोड़ जन धन खातों में 72,834.72 करोड़ रुपये जमा हुए हैं यह अपने आप में एक बड़ा कदम था।
 
अब सवाल यह उठता है कि आखिर कैशलेस समाज बनाने की जरूरत क्या है?
1.नोटबंदी के बाद सरकार चाहती है कि लोग कैशलेस लेन-देन को अपनाएं ताकि कालेधन और नाजायद धंधों पर रोक लगे। इसका सीधा मतलब ये हुआ की लोग पेमेंट और फंड ट्रांस्फर के लिए यूपीआई, पेमेंट ई-वॉलेट, प्रीपेड, डेबिट और क्रेडिट कार्ड, यूएसएसडी यानि अनस्ट्रक्चर्ड सप्लीमेंट्री सर्विस डाटा और आधार लिंक्ड पेमेंट व्यवस्था को अपनाएं।
2.नगद रुपये का बाजार में ज्यादा प्रचलन होता है तो कई तरह की दिक्कतों का सामान करना पड़ता है। पहला यह कि जाली नोटों की संख्या बढ़ने लगती है जो अर्थव्यवस्था के लिए सबसे घातक है। दूसरा यह कि यदि अनुमान से अधिक काला धन जमा होने लगेगा तो हर वस्तु के दाम आसमान में जाने लगेगे। उक्त दोनों ही कारणों से एक समानांतर अर्थ व्यवस्था निर्मित हो जाती है, जिसके चलते अमीर और गरीब के बीच खाई इतनी बढ़ जाती है कि समाज में असंतोष और विद्रोह पनपने लगता है।
3. नगद के अत्यधिक प्रचलन, जाली नोटों की भरमार और बेहिसाब काले धन से नक्सलवाद, आतंकवाद और माफियाओं की समानांदर सरकार कायम हो जाती है जिसके चलते राज्य में विद्रोह और अपराधिक गतिविधियां इतनी बढ़ जाती है कि जिन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है।
 
उदाहरण:-
वेनेजुएला नाम का एक देश की अर्थव्यवस्था उक्त सभी कारणों से अब खत्म हो चुकी है। अर्थव्यवस्था के खत्म होने का अर्थ है देश का खत्म हो जाना। इस देश की अर्थ व्यवस्था खत्म होने का एक कारण यह भी है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की किमत आधी रह गई जिसके कारण इस देश की मुद्र भी घट गई। इसक एक कारण यह भी है कि इस देश में अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने का कभी कोई काम नहीं किया गया। इसीलिए वेनेजुएले में अब एक लीटर दूध लगभग 13 हजार रुपये में और एक अंडा 900 रुपये में बिक रहा है। सबसे आश्चर्य वाली बात तो यह कि वेनेजुएला में सामान के बदले नोट गिनकर नहीं तौलकर लिए जा रहे हैं। इसका मतलब यह कि मक्खन की एक स्लाइस के बदले उतनी वजन के नोट लिए जा रहे हैं।
 
नोटों के ऐसे इस्तेमाल के चलते एटीएम में पैसे ही नहीं बच रहे। हर तीन घंटे पर मशीनें नोट से भरी जा रही हैं। इसके साथ ही भारत की ही तरह यहां भी एटीएम पर लंबी-लंबी लाइनें लगी देखी जा रही हैं। वेनेजुएला में आर्थिक संकट 2014 से शुरु हुआ, जब अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में कच्चे तेल की कीमत दो तिहाई कम हो गई। दो साल में तेल ब्रिकी से होने वाली इनकम आधी हो गई और देश इस कगार पर पहुंच गया। डॉलर के मुकाबले बॉलिवर (मुद्रा) कमजोर होने के चलते कौड़ियों के भाव हो गई है।
 
वेनेजुएला में अब लोग पर्स का इस्तेमाल नहीं करते, क्योंकि महंगाई के चलते उनके पर्स में इतने नोट नहीं समा पाते। दरअसल महंगाई के कारण कुछ सालों में वेनेजुएला की करंसी के मूल्य में जबरदस्त गिरावट आई है। मार्केट में 5 यूएस सेंट के बदले वेनेजुएला के 100 बोलीवर्स मिल रहे हैं। लोग रोजमर्रा की खरीदारी के लिए झोले में नोटभर कर लाते हैं। वेनेजुएला में करंसी के गिर रहे मूल्य को देखते हुए यहां की सरकार ने एक साथ ज्यादा करेंसी छापने की जरूरत भी महसूस की। करीब तीन साल पहले तक यहां पर कैश की मात्रा बहुत कम होती थी। उस समय इस कैश को घर लेकर जाना आसान होता था। मगर अब ये मात्रा बढ़ गई है और इससे जोखिम भी बढ़ गया है।