नई दिल्ली/ लखनऊ। महामारी कोविड-19 के खिलाफ छिड़ी जंग में मोर्चे पर तैनात 'कोरोना योद्धाओं' (Corona Warrior) में से एक रामकृष्ण को जब उनकी गाडड ने फोन कर उनसे प्रयोगशाला में लौटने की अपील की, वह उस समय तेलंगाना में अपने गांव में थे और खेती में अपने माता-पिता की मदद कर रहे थे। इस फोन के तुरंत बाद वह लखनऊ के लिए रवाना हो गए, जो वहां से करीब 1500 किलोमीटर दूर है।
लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल विश्वविद्यालय के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में पीएचडी स्कॉलर रामकृष्ण को उनके विभाग की प्रमुख अमिता जैन ने फोन किया था। तेजी से फैल रहे कोरोना वायरस संक्रमण के लिए नमूनों के परीक्षण में उनकी मदद की आवश्यकता थी।
युद्ध के मोर्चे पर बुलाए गए सैनिक की तरह रामकृष्ण एक घंटे में तैयार हो गए और सब कुछ छोड़कर लखनऊ रवाना हो गए। रामकृष्ण ने कहा कि उन्होंने तुरंत अपना सामान पैक किया और यहां तक कि अपने माता-पिता से झूठ बोला। कोरोना वायरस को लेकर उनके माता-पिता भी चिंतित थे।
29- वर्षीय माइक्रोबायोलॉजिस्ट ने कहा, मैंने शुरू में अपने माता-पिता से कहा था कि मैं गाँव के अपने दोस्तों के साथ हैदराबाद में रहूंगा, जो वहां पढ़ रहे हैं। लेकिन अब मुझे जो जानकारी मिली है, इससे वे जान गए हैं कि मैं कोरोना वायरस के खिलाफ जंग में लखनऊ में काम कर रहा हूं और उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया है।’
वह दिन 21 मार्च का था और रामकृष्ण ने तुरंत अपने माता-पिता को बताया कि वह अपनी थीसिस लिखने के लिए हैदराबाद एक दोस्त के पास जा रहे हैं। उनके माता-पिता बेटे को 270 किलोमीटर तक की यात्रा करने देने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन अंतत: वे तैयार हो गए।
वह 22 मार्च को हैदराबाद पहुंचे। उस दिन जनता कर्फ्यू के कारण सभी रास्ते बंद थे। 23 मार्च को तड़के वह हवाई अड्डे के लिए रवाना हुए।
रामकृष्ण ने कहा कि वहां जाना आसान नहीं था और उन्हें पुलिस ने रोक दिया। हालांकि, जब उन्होंने हवाई अड्डा जाने का कारण बताया, तो उन्होंने वहां पहुंचने में उनकी मदद की।
उन्हें लखनऊ के लिए एक उड़ान मिल गई। उनके वहां पहुंचने से गाइड और केजीएमयू की टीम खुश थी, जो हर दिन अधिक से अधिक नमूनों की जांच में जुटी थी।
रामकृष्ण चर्चा में उस समय आए जब कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने उनके बारे में ट्वीट किया। रामकृष्ण ने जोर देकर कहा कि वह इस महामारी से लड़ने के लिए चिकित्सा बिरादरी के अन्य लोगों की तरह अपना कर्तव्य निभा रहे हैं।
पीएचडी स्कॉलर ने 6 महीने पहले अपना प्रोजेक्ट पूरा किया था और अपने गांव लौट आए थे। इस दौरान वह अपनी थीसिस पर काम कर रहे थे और खेती में अपने माता-पिता की मदद भी कर रहे थे।
माइक्रोबायोलॉजी विभाग की प्रमुख जैन ने कहा कि उन्होंने अपने 4 छात्रों को मदद के लिए बुलाया था। 2 लखनऊ में थे और वे तुरंत आ गए। रामकृष्ण और एक अन्य व्यक्ति दूर थे लेकिन मदद के लिए आए।
यह पूछे जाने पर कि उन्होंने रामकृष्ण से फोन पर क्या कहा? जैन ने बताया, 'मैंने उनसे कहा कि हमें उनकी जरूरत है, अगर वह मदद कर सकते हैं। उन्होंने अपने माता-पिता को समझाने के लिए एक घंटे का समय मांगा और एक घंटे के भीतर उन्होंने कहा कि वह आ रहे हैं।'
जैन ने कहा कि उनके शोध स्कॉलर परीक्षण में उसी तरह मदद कर रहे हैं, जिस प्रकार युद्ध के समय में सैनिक अपनी बटालियनों को रिपोर्ट करते हैं। इन सैनिकों ने मास्क पहन रखा है।
प्रियंका गांधी ने रामकृष्ण के योगदान और प्रतिबद्धता को देखते हुए उन्हें एक प्रशंसा पत्र भेजा था और अपने सराहनीय कार्य के बारे में ट्वीट भी किया था। प्रियंका गांधी ने माइक्रोबायोलॉजिस्ट की सराहना करते हुए कहा कि भारत में लाखों ऐसे 'सैनिक' हैं जिन्हें सम्मानित और प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।