सपना न बन जाए अनिवार्य शिक्षा!
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मोहिनी माथुर कुछ दिनों पहले दिल्ली के एक स्कूल के प्राचार्य को जो विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को शिक्षा व पुनर्वास सेवाएँ प्रदान करता है - एक प्रशासनिक अधिकारी के कार्यालय में इसलिए बुलाया गया क्योंकि कमला (नाम बदला हुआ है) नामक एक श्रवणबाधित बच्ची को बस की समस्या की वजह से स्कूल में दाखिला नहीं दिया गया था। स्कूल बस जिस स्टॉप तक जाती है वहाँ से उसे लाने के लिए करीब 5-6 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता। अभिभावक से कहा गया कि वे स्टॉप तक बच्ची को ले आएँ और वहीं से ले जाएँ। इस बात के लिए परिवार तैयार नहीं था। स्वयंसेवी संगठन द्वारा संचालित स्कूलों व कई प्राइवेट स्कूलों की दिक्कत यह है कि उन्हें बच्चों की पढ़ाई पर होने वाला पूरा खर्च ही सरकार से नहीं मिलता, तो बस का अतिरिक्त खर्च उठाना तो उनके लिए और भी कठिन है। जहाँ तक अभिभावकों का सवाल है, शायद ही कोई अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में दाखिल कराना चाहते हों। मजबूरी की बात अलग है वरना गाँवों में भी लोग सरकारी स्कूल से परहेज करने लगे हैं। विकलांग व विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की समस्या और भी जटिल है। कारण कई हैं। पहला, सरकारी स्कूलों में उनके लिए किसी भी प्रकार की बस की व्यवस्था नहीं है। बच्चे को शारीरिक अक्षमता के बावजूद अपने आप ही स्कूल पहुँचाना होता है। दूसरे, इन स्कूलों की बिल्डिंगें सुविधाओं के अभाव में बच्चों के लिए अनुपयुक्त होती हैं। कई बच्चों ने दाखिला लेने के बाद स्कूल केवल इसलिए छोड़ दिया क्योंकि तीसरी-चौथी मंजिल पर ऊपर-नीचे आना-जाना उनके लिए मुश्किल है। तीसरे, सरकारी स्कूलों और ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों में भी अभी तक विभिन्न अक्षमताओं के बच्चों को पढ़ाने के लिए विशेष ट्रेनिंग प्राप्त अध्यापक उपलब्ध नहीं हैं। विशेष स्कूल में पढ़कर बच्चा जब आगे मुख्यधारा के स्कूल में पढ़ने जाता है तो वह पाता है कि वहाँ के शिक्षक उसे पढ़ा ही नहीं सकते। दृष्टिबाधित बच्चे क्लासों में पढ़ तो लेते हैं लेकिन उनकी कॉपी सिर्फ इसलिए चेक नहीं होती, क्योंकि स्कूल में नियुक्त शिक्षकों को ब्रेल लिपि पढ़ना नहीं आती। इन समस्याओं का उल्लेख इसलिए आवश्यक है कि सरकार की तरफ से समेकित शिक्षा की जोरदार मुहिम चलाई जा रही है। एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की कल्पना की जा रही है, जिसमें हर बच्चे यानी सामान्य तथा विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को एक साथ एक परिवेश में पढ़ाया जा सकेगा। कुछ वर्ष पहले एक संस्था में एक समारोह में उपस्थित दिल्ली सरकार के तत्कालीन शिक्षामंत्री को एक सुझाव दिया गया था कि चूँकि सरकार के पास धन व अन्य संसाधनों की कोई कमी नहीं हैं इसलिए उसे अपने स्कूलों को क्षेत्रवार बाँट देना चाहिए और घोषित कर देना चाहिए कि क्षेत्र के किन स्कूलों में समेकित शिक्षा उपलब्ध होगी। उन स्कूलों में विशेष प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति करनी चाहिए जिससे कि किसी भी प्रकार की अक्षमता से प्रभावित बच्चों को शिक्षा दी जा सके।