पाले में रहोगे तो मार जाएगा पाला
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया दो गुटों में बँट चुकी थी। एक था सोवियत रूस के नेतृत्व में साम्यवादी गुट और दूसरा था अमेरिका के नेतृत्व में पूँजीवादी गुट। दोनों एक-दूसरे को नीचा दिखाने का एक भी मौका नहीं छोड़ते थे। उनके बीच चलने वाले इस शीतयुद्ध या कोल्ड वार के कारण हमेशा तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका बनी रहती थी। भारत को अपने गुट में शामिल करने के लिए दोनों गुटों के प्रमुख, तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू पर दबाव डालने लगे। उनके पास विदेश मंत्रालय का प्रभार भी था। पहले तो वे टालते रहे, लेकिन दबाव बढ़ने पर उन्होंने एक दिन घोषणा कर दी कि भारत किसी गुट में शामिल नहीं होगा, क्योंकि इससे नीतिगत मामलों पर निर्णय लेने की स्वतंत्रता खत्म हो जाती। नेहरूजी ने गुटनिरपेक्ष का सिद्धांत देते हुए कहा कि हम दोनों गुटों के बीच सेतु की भूमिका निभाते हुए विश्व शांति की दिशा में कार्य करेंगे। शुरुआत में इस नीति को बड़े राष्ट्रों ने पसंद नहीं किया। लेकिन मिस्र के तत्कालीन राष्ट्रपति टीटो ने इसकी उपयोगिता को पहचानकर नेहरूजी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे सौ से अधिक देशों का निर्गुट दल तैयार हो गया, जिसने तीसरे विश्वयुद्ध को रोके रखने में प्रमुखता से काम किया।दोस्तो, सही राह पर चलने वाले को किसी गुट में शामिल होने या गुट बनाने की जरूरत नहीं होती। वह अकेला ही चल पड़े तो लोगों का समर्थन उसे मिलता जाता है, क्योंकि सभी को पता होता है कि इसका किसी से भी कोई लेना-देना नहीं। यह तो सभी का है। जो सत्य की राह पर चल रहा होगा, यह उसका साथ देगा और जो गलत होगा, उसका विरोध करेगा। इसलिए व्यक्ति को हमेशा गुटबाजी से दूर रहना चाहिए। किसी गुट विशेष से जुड़ने पर वह अपनी पहचान और विश्वसनीयता खो देता है, क्योंकि तब उसकी सोच पर गुट की सोच जो हावी होने लगती है।
इसलिए यदि आप किसी गुट विशेष के हिस्से हैं, तो जितनी जल्दी हो सके, अपने आपको उससे अलग करके तटस्थ बन जाएँ। वरना आप हमेशा सामने वाले को नीचा दिखाने के लिए मौके की तलाश में लगे रहेंगे। ऐसे में आप न तो कुछ सकारात्मक सोच पाएँगे और न कर पाएँगे। सामने वाले को भी जब आपकी ओर से कोई लूज बॉल मिलेगी तो वह उस पर चौका-छक्का जड़कर आपके तोते उड़ा देगा।कई बार तो मौका न मिलने पर अनर्गल आरोप-प्रत्यारोप के जरिए सामने वाले को मात देने की कोशिश की जाती है। यानी गुटबाजी से केवल नकारात्मकता को ही बढ़ावा मिलता है और व्यक्ति गलत राह पर चलकर नुकसान उठाता है। आप कई ऐसे प्रतिभावान लोगों को जानते ही होंगे, जिन्होंने ऑफिस पॉलिटिक्स या खेमेबाजी के चक्कर में पड़कर अपना करियर बर्बाद कर लिया। यदि वे इसमें नहीं पड़ते तो आज उनकी बात ही कुछ और होती। इसलिए यदि आप आगे बढ़ना चाहते हैं, तो कभी किसी पाले के सदस्य न बनें, तभी फायदे में रहेंगे वरना अच्छे अवसरों के लाले पड़ जाएँगे। कहते भी हैं कि किसी पाले में रहने वाले को एक दिन पाला ही मारता है। दूसरी ओर, कुछ लोग मानते हैं कि तटस्थता कायरता की निशानी है। यह सोच गलत है। तटस्थ रहना तो हिम्मत, साहस का काम है। इसमें आप दोनों खेमों को नाराज करते हुए बीच का रास्ता चुनते हैं। तटस्थ या गुटनिरपेक्ष रहने का मतलब निष्क्रिय बैठना नहीं होता, बल्कि बिना किसी पूर्वाग्रह के मुद्दों और घटनाओं पर विचार कर सही नतीजे पर पहुँचना होता है। तभी तो दो गुटों के झगड़े में जब समझौता करने की नौबत आती है, तो यह भूमिका कोई तटस्थ व्यक्ति ही निभाता है, क्योंकि दोनों पक्षों को उस पर भरोसा जो होता है। इसलिए खेमेबाजी से बचें और हमेशा तटस्थ रहें। किसी गुट विशेष से जुड़कर अपनी सोच को उसका गुलाम न बनाएँ। फिर वह गुट कैसा भी हो, कहीं भी हों। तभी आप निरंतर प्रगति करेंगे और आपके सितारे कभी अस्त नहीं होंगे। अरे भई, निर्दलीयों की तो आजकल चाँदी ही चाँदी है। हर कोई जुगाड़ में लगा है उन्हें अपने साथ मिलाने के लिए।